For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अजनबी गलियाँ

चलते चलते
महसूस हुआ
गलियाँ बेगानी लगीं
देखते रहे
इधर उधर
नज़रे बैमानी लगीं
थे बहुत अपने यहाँ
पर सभी बेगाने लगे
खोजा बहुत उन सबको
शायद कोई अपना लगे ।
तंग गलियों में
चिपके हुए घरों के बीच
बस देखती रही यूँही ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 479

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 10, 2016 at 12:48pm
धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2016 at 8:49am

आदरनीया कल्पना जी , छोटी पर अच्छी कविता रची है आपने , हार्दिक बधाई ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 6, 2016 at 8:14pm
आदाब जनाब समर साहब । जी आपने सही कहा दसवी पंक्ति में एना ही होना चाहिए । सादर ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 6, 2016 at 8:13pm
सादर धन्यवाद आदरणीय सुशील सरना जी । आपको ये कविता पसंद आई सार्थक हुआ यह प्रयास । त्रुटियों के क्षमा चाहती हूँ। सादर
Comment by Samar kabeer on November 6, 2016 at 3:03pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,मुख़्तसर लेकिन दमदार कविता लिखी है आपने,अपने जज़्बात को अच्छे अल्फ़ाज़ दिए हैं ,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
दसवीं पंक्ति में 'शायद कोई अपने लगे' को "शायद कोई अपना लगे"करना उचित होगा क्या ?
Comment by Sushil Sarna on November 6, 2016 at 2:18pm

वाह आदरणीया कल्पना जी  ... कम शब्दों में भावों की गहनता को आपने बड़ी ही शिद्दत से पेश किया है। दिल से बधाई स्वीकार करें। ''मेहसूस '' को कृपया महसूस  कर लेवें। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
22 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service