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एक सूनी डगर रहा हूँ मैं (ग़ज़ल)

2122 1212 22

टूटकर अब बिखर रहा हूँ मैं।
खुद को आईना कर रहा हूँ मैं।

मुझको दुनिया की है खबर लेकिन
खुद से ही बेखबर रहा हूँ मैं।

चोट खा-खा के, अश्क़ पी-पीकर,
आजकल पेट भर रहा हूँ मैं।

फिर भँवर पार कर के आया हूँ,
फिर किनारे पे डर रहा हूँ मैं।

उम्र-भर ढूँढता रहा खुद को,
उम्र-भर दर-ब-दर रहा हूँ मैं।

पास मंज़िल के आ गया, फिर क्यों,
हर कदम पर ठहर रहा हूँ मैं?

क्या गुज़रता भला कोई उसपर,
एक सूनी डगर रहा हूँ मैं।

एक दरिया के दो किनारे हम,
वो उधर,तो इधर रहा हूँ मैं।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2016 at 7:29pm

फिर भँवर पार कर के आया हूँ,
फिर किनारे पे डर रहा हूँ मैं।

जब भँवर पार कर के आया हूँ,
क्यों किनारे पे डर रहा हूँ मैं ? 

ऐब को जानना बहुत ही ज़रूरी है. जब अभ्यास से सारा कुछ रच-बस जाय, तब सोचना उचित होता है कि कौन सा ऐब कितना प्रासंगिक है. लोग इस विन्दु को कायदे से नहीं समझते. और इंगित किये जाने पर चीख-पुकार मचाने लगते हैं. खैर..  

बाकी, सभी गुनीजनों ने कह दिया है. ध्यान दीजियेगा.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:20pm

आदरणीय जयनित भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , और आ. समर भाई की सलाह भी उचित है , इस गज़ल के लिये ऐबे तनाफुर को जाने दें क्यों कि पूरी गज़ल को ही सुधारना पड जायेगा , आगे से खयाल रखियेगा । ये मेरी सलाह है , पर सुधारना अगर सम्भव है आपके लिये तो ज़रूर सुधारना चाहिये ।  आपको बहुत बधाई ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2016 at 12:16pm

आ० भाई जयनित जी सूंदर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2016 at 4:41pm

भाई जय्नित जी बेहतरीन शेरो की इस शानदार ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2016 at 3:33pm

बहुत सुंदर भाई जयनित जी बहुत बहुत बधाई, समर साहब के सुझाव के बाद शे र और निखर गया है

Comment by जयनित कुमार मेहता on August 1, 2016 at 3:16pm
आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, इससे बढ़कर ख़ुशी की बात और क्या होगी एक रचनाकार के लिए।

हार्दिक धन्यवाद आपको।
Comment by जयनित कुमार मेहता on August 1, 2016 at 3:13pm
आदरणीय समर कबीर जी, मेरी रचना पर उपस्थित होकर मार्गदर्शन करने के लिए हमेशा की तरह इस बार भी आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
हालाँकि इस ऐब के बारे में मैंने पढ़ा था, लेकिन ग़ज़ल कहते समय बिलकुल भी ध्यान नहीं रहा कि मैं एक दोषयुक्त काफिये और रदीफ़ पर ग़ज़ल कह रहा हूँ।
अब समझ नहीं आ रहा क्या करूँ?

हाँ! चौथे शेर पर आपके द्वारा दिए गए सुझाव से बहुत ख़ुशी हुई। मैं आप वरिष्ठ एवं गुणी जनों ये इसी प्रकार के मार्गदर्शन का इंतज़ार रहता है।
पुनः आपके प्रति बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूँ। सादर!
Comment by Ravi Shukla on August 1, 2016 at 3:03pm

आदरणीय जयनित जी बधाई गजल के लियेे । बढि़या कलाम है । 

Comment by Sushil Sarna on August 1, 2016 at 2:34pm

टूटकर अब बिखर रहा हूँ मैं।
खुद को आईना कर रहा हूँ मैं।

मुझको दुनिया की है खबर लेकिन
खुद से ही बेखबर रहा हूँ मैं।

बहुत खूब आदरणीय जयनित कुमार जी ... खूबसूरत अहसासों से सजे अशआर दिल को भा गए ... हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by Samar kabeer on August 1, 2016 at 1:38pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
कुछ सुझाव हैं अगर आप मुनासिब समझें तो,हालांकि आजकल ऐब-ए-नाफुर पर कोई ध्यान नहीं देता,लेकिन ऐब फिर भी ऐब होता है, आपकी पूरी ग़ज़ल के साथ ये ऐब चल रहा है"डर रहा"विचार कीजियेगा ।
चौथा शैर अगर इस तरह करें तो शैर में रवानी आ जायेगी:-
"इक भँवर पार कर के आया हूँ
पर किनारे से डर रहा हूँ में"
बाक़ी शुभ शुभ

कृपया ध्यान दे...

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