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यथार्थ के रंग ..

1.

मैं 

मेरा
हमारा
बीत गया
जीवन सारा
साँझ ने पुकारा
लपटों ने संवारा

2.

मैं
तुम
अधूरे
हैं अगर
देह देह की
प्रीत भाल पर
स्नेह चंदन नहीं

3.

हे
राम
तुम्हारा
करवद्ध
अभिनन्दन
प्रभु कृपा करो
हरो हर क्रन्दन

4.

क्या
जीता
क्या हारा
मैं निर्बल
मैं बेसहारा
प्रभु शरण लो
मैं अंश तुम्हारा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on August 1, 2016 at 1:32pm

आदरणीय उस्मानी भाई साहिब इस विधा के प्रथम प्रयास पर आपकी आत्मीय सराहना पाकर सृजन को बल मिला है। आपका हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on August 1, 2016 at 1:32pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी पिरामिड में प्रथम प्रयास को अपने स्नेह से अलंकृत करने के लिए हार्दिक आभार।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 1, 2016 at 12:37am
आपकी वर्ण-पिरामिड रचनाएँ पढ़कर बहुत ख़ुशी हासिल हुई है आदरणीय सुशील सरना जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 1, 2016 at 12:35am
वाह, अनुपम बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सुशील सरना जी।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 12:05am
वाह ।सुन्दर पिरामिड ।

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