For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - भूल जा संवेदना के बोल प्यारे // --सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२

फ़र्क करना है ज़रूरी इक नज़र में
बदतमीज़ों में तथा सुलझे मुखर में

शांति की वो बात करते घूमते हैं
किन्तु कुछ कहते नहीं अपने नगर में

शाम होते ही सदा वो सोचता है-
क्यों बदल जाता है सूरज दोपहर में

भूल जा संवेदना के बोल प्यारे
दौर अपना है तरक्की की लहर में

हो गया बाज़ार का ज्वर अब मियादी
और देहाती दवा है गाँव-घर में

आदमी तो हाशिये पर हाँफता है
वेलफेयर-योजनाएँ हैं ख़बर में

क्यों न फिर बरसात का मौसम मज़ा दे
चल रही जब नाव, काग़ज़ की, लहर में

पत्रकारों के बनाये राष्ट्र-नेता
बिक रहे अख़बार जैसे.. देश भर में

हँस रहा ’सौरभ’ अगर.. तो साथ हँसिये..
देखनी क्यों कील उसके पाँव-सर में ?
***************
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1250

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 11:17pm

शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 11:17pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आपसे मिली सराहना केलिए आपका सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2016 at 11:15pm

प्रस्तुति को सराहने केलिए सादर आभार आदरणीय अशोक जी. 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 1, 2016 at 8:30pm

मोहतरम जनाब सौरभ  साहिब ,  बहर रमल मुसद्दस सालिम में अच्छी ग़ज़ल , शेर दर शेर  दाद और  मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --
 शेर -२  के उला मिस रे पर एक बार नज़र डाल लीजिए --शुक्रिया

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2016 at 7:53pm

बहुत अंदर तक कचोटती ग़ज़ल है ..बधाई ..
.
एक शेर मेरी ओर से तोहफा समझ के स्वीकार कीजिये .
.
पीछे, घर बिकने को आमादा खडा है,  
आगे, साहिब मस्त हैं,, अगले सफ़र में ...  
 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2016 at 6:11pm

आदरणीय सौरभ भाई , क्या कहने इस गज़ल के , वाह ! एक एक शेर सीधे दिल में उतर रहे हैं , सरल शब्दों मे खूबसूरत कहन का एक उदाहरण है , हम जैसे सीखने वालों के लिये ।

फ़र्क करना है ज़रूरी इक नज़र में  --  वर्तमान के लिये बहुत ज़रूरी सबक
बदतमीज़ों में तथा सुलझे मुखर में

भूल जा संवेदना के बोल प्यारे    -----  क्या बात है -- सौ टका सच
आदमी गढ़ने लगे हैं आज फरमें

ये दो शेर मेरे मन की बात कह रहे हैं ,

पत्रकारों के बनाये राष्ट्र-नेता
बिक रहे अख़बार जैसे.. देश भर में

हँस रहा ’सौरभ’ अगर.. तो साथ हँसिये..
देखनी क्यों कील उसके पाँव-सर में ?  ----   वाह !   पूरी गज़ल ही कामयाब है , ये कुछ शे र मुझे बहुत पसंद आये , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2016 at 4:59pm

आ० सौरभ जी , बहरे रमल मुसद्दस सालिम में  बड़ी खूबसूरत गजल प्रस्तुत की आपने . बेहतरीन मतला . कुछ अशआर   बहुत उम्दा हैं -

भूल जा संवेदना के बोल प्यारे
आदमी गढ़ने लगे हैं आज फरमें 

 
आदमी तो हाशिये पर हाँफता है
वेलफेयर-योजनाएँ हैं ख़बर में

क्यों न फिर बरसात का मौसम मज़ा दे
चल रही जब नाव, काग़ज़ की, लहर में

पत्रकारों के बनाये राष्ट्र-नेता
बिक रहे अख़बार जैसे.. देश भर में

हँस रहा ’सौरभ’ अगर.. तो साथ हँसिये..
देखनी क्यों कील उसके पाँव-सर में ?

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 1, 2016 at 4:46pm

क्यों न फिर बरसात का मौसम मज़ा दे 
चल रही जब नाव, काग़ज़ की, लहर में ---क्या बात कही 

पत्रकारों के बनाये राष्ट्र-नेता 
बिक रहे अख़बार जैसे.. देश भर में ---वाह्ह्ह्हह वह्ह्ह 

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० सौरभ जी दाद लीजिये 

Comment by Sushil Sarna on July 1, 2016 at 1:46pm

क्यों न फिर बरसात का मौसम मज़ा दे
चल रही जब नाव, काग़ज़ की, लहर में 

पत्रकारों के बनाये राष्ट्र-नेता
बिक रहे अख़बार जैसे.. देश भर में

हँस रहा ’सौरभ’ अगर.. तो साथ हँसिये..
देखनी क्यों कील उसके पाँव-सर में ?

नमन अपकी लेखनी को , नमन अपकी कल्पनाशीलता को अादरणीय सौरभ सर ... सच्चाई को उजागर करती अापकी इस दिलकश खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिल से शुक्रिया कबूल फरमाएं सर।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 1, 2016 at 7:53am

भूल जा संवेदना के बोल प्यारे
आदमी गढ़ने लगे हैं आज फरमें.........वाह ! सत्य कहा है आपने.

पत्रकारों के बनाये राष्ट्र-नेता
बिक रहे अख़बार जैसे.. देश भर में..........वाह ! बहुत खूब.

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, बहुत खूबसूरत गजल कही है आज की हकीकतों को मुखर करते बढ़िया अशआर हुए हैं. मतले से  ही गजल के तेवर दिखने लगते हैं. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
17 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service