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मायाजाल ...

ये मकड़ी भी
कितनी पागल है
बार बार गिरती है
मगर जाल बुनना
बंद नहीं करती
बहुत सुकून मिलता है उसे
अपने ही जाल के मोह में
स्वयं को उलझाए रखने में
वो स्वयं को
वासनाओं के जाल में
लिप्त रखना चाहती है
शायद वो जानती है
जिस दिन भी वो
अपना कर्म छोड़ देगी
वो अपनी पहचान खो देगी
पाकीज़गी उसे मोक्ष तक ले जाएगी
लेकिन इस तरह का मोक्ष
कभी उसकी पसंद नहीं होता
उसे तो अपनी वही दुनियां पसंद है
जिसे उसने अपनी
आपूरित वासनाओं की पूर्ती के लिए
जाल के रूप में सृजित किया है
इसीलिये वो बार बार गिर के भी
अपनी दुनिया को बुनती है
वो चाहती है कि ग़र
उसका आगाज़ ये मायाजाल है तो
अंत भी यही मायाजाल हो

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on June 15, 2016 at 7:20pm

आदरणीय    गिरिराज भंडारी      जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय देने का हार्दिक आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 5:09pm

आदरणीय सुशील सरना भाई , इंसानी प्रवृत्ति को मकड़ी के सापेक्ष रख कर बहुत सही बात कही आपने ! हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Sushil Sarna on June 14, 2016 at 8:40pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker     जी प्रस्तुति के भावों पर आपकी  मन मुदित करती प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on June 14, 2016 at 8:38pm

आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति में समाहित गहन भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2016 at 8:38pm
अपना अपना मायाजाल सभी को पसंद आता है , आदरणीय सुशील सरना जी , इस खूबसूरत , अलग सी रचना के लिए हार्दिक बधाई , सादर।
Comment by pratibha pande on June 14, 2016 at 7:30pm

उसे तो अपनी वही दुनियां पसंद है 
जिसे उसने अपनी 
आपूरित वासनाओं की पूर्ती के लिए 
जाल के रूप में सृजित किया है 
इसीलिये वो बार बार गिर के भी 
अपनी दुनिया को बुनती है ....सांसारिक मायाजाल हम स्वयं बुनते हैं और अपनी इच्छा से उसमे फंसे रहना चाहते हैं ..इन भावों के साथ ये अनुपम सृजन है आपका आदरणीय    हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको 
 

Comment by Sushil Sarna on June 14, 2016 at 3:45pm

आदरणीय  kanta roy जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by kanta roy on June 14, 2016 at 1:23pm

बहुत सुकून मिलता है उसे 
अपने ही जाल के मोह में 
स्वयं को उलझाए रखने में ----अद्वितीय सम्प्रेष्ण है यहाँ  मकड़ी के पागल होने के भावों में . बहुत-बहुत बधाई .

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 7:14pm

आदरणीय  Sheikh Shahzad Usmani     जी प्रस्तुति के भावों पर आपकी  मन मुदित करती प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 7:13pm

आदरणीय   Rajendra kumar dubey      जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय देने का हार्दिक आभार।

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