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1222    1222    1222    1222     1222

हुनर की बात है सबको गमों में यूँ हँसाना तो नहीं आता
सभी के हाथ यारो ये मुहब्बत का खजाना तो नहीं आता

है हसरत तो  हमारी भी  लगाएँ दिल  हसीनों से जमाने में
हमें पर नाज कमसिन का जरा भी यों उठाना तो नहीं आता

हमेशा  लौट आता कारवाँ गर्दिश  का जैसे दोस्तों फिर फिर
कि वैसे लौटकर फिर  से  बुलंदी का जमाना तो नहीं आता

लगेगी जिंदगी कैसे  सजा से हट   किसी ईनाम के जैसी
सभी को यार होठों पर तबस्सुम को सजाना तो नहीं आता

चले हैं छोड़ घर अपना कटेगी अब तो बस खानाबदोशी में
निकलती है नदी जब राह में फिर से मुहाना तो नहीं आता

किया करता है वादे तो बहुत सबसे ‘मुसाफिर’ वो तहे दिल से
निभाना चाहता  भी  है मगर  उसको निभाना  तो नहीं आता

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 670

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Comment by Rahul Dangi Panchal on March 7, 2016 at 7:08pm
सुन्दर
Comment by amita tiwari on March 7, 2016 at 6:34pm

बहुत बढ़िया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 7, 2016 at 12:28am

मुफाईलुन 5 बार .... बहुत खूब 

Comment by Samar kabeer on March 5, 2016 at 5:47pm
जनाब लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 5, 2016 at 3:40pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!बेहतरीन गज़ल!

हमेशा  लौट आता कारवाँ गर्दिश  का जैसे दोस्तों फिर फिर
कि वैसे लौटकर फिर  से  बुलंदी का जमाना तो नहीं आता 

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