2122—1122—1122—22 |
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मेरी नींदों को सताने से बता क्या होगा? |
इस तरह ख़ाब में आने से बता क्या होगा? |
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आज अहसास का सागर जो कहीं गुम यारों |
इश्क का दरिया बहाने से बता क्या होगा? |
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जो तेरे बस में नहीं आज मना तू कर दे |
इस तरह बातें बनाने से बता क्या होगा? |
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बद-खयालों से भरा आज तलक तेरा दिल |
रोज गंगा में नहाने से बता क्या होगा? |
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याद करने से भला कौन मज़ा आता हैं? |
अब उन्हें भूल भी जाने से बता क्या होगा? |
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बेवफ़ा की ये जफ़ा की ये खफा की बातें |
ये पिटे राग सुनाने से बता क्या होगा? |
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जो गए, लौट के वापिस तो नहीं आ सकते |
आँख से धार गिराने से बता क्या होगा? |
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एक दूजे की भला पीठ खुजायें कब तक |
इस तरह दाद भी पाने से बता क्या होगा |
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कितने सच्चे हैं मियां खूब खबर दुनिया को |
माँ कसम ढेर भी खाने से बता क्या होगा? |
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------------------------------------------------------------ टीप- ये ग़ज़ल लगभग दस-बारह साल पहले लिखी थी लेकिन किसकी जमीन पर लिखी थी ये याद नहीं है. उसे आज बह्र अनुसार कुछ मिसरों को थोड़ा सा संशोधित कर प्रस्तुत कर रहा हूँ. आज आदरणीय जयनित जी की ग़ज़ल पढ़कर अचानक इसकी याद आई तो पुरानी डायरी खंगाली और ये मिल भी गई. |
Comment
आदरणीय शिज्जु भाई जी, हार्दिक आभार... ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु..... सादर
आदरणीय विजय शंकर सर ग़ज़ल की सराहना, मुखर अनुमोदन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आभार
आदरणीय गुमनाम सर, जी जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आभार
आदरणीया प्रतिभा जी ग़ज़ल की आत्मीय प्रशंसा, सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आभार
आदरणीय जयनित जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आभार
बधाई सुन्दर ग़ज़ल के लिए आदरणीय मिथिलेश जी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अपनी डायरी खंगालते रहिये और ऐसे ही और कई नायाब ज़ज्बात लाते रहिये , बधाई सुन्दर ग़ज़ल के लिए आदरणीय मिथिलेश जी
आदरणीय सौरभ सर, सराहना और मार्गदर्शन के लिए आभार. आपने सही कहा. संशोधित करता हूँ. सादर
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