For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिथिलेश वामनकर's Blog (122)

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करना

आऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।

मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरी

कह दूं मैं, बस रोक दे वो शोर करना।

पंक्तियों के बीच पढ़ना आ गया है

भूल बैठा हूं मैं अब इग्नोर करना।

ये नजर अब आपसे हटती नहीं है

बंद करिए तो नयन चितचोर करना।

याद बचपन की न जाती है जेहन से

अब अखरता खुद को ही मेच्योर करना।

आज को जैसे वो जीना भूल बैठे

बस उन्हें धुन अपना कल सेक्योर…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on April 13, 2024 at 10:33pm — 1 Comment

पंख था कतरा हुआ : ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

2122 - 2122 - 2122 - 212

ये उड़ानों का भला फिर हौसला कैसा हुआ।

आपने जो भी दिया हर पंख था कतरा हुआ।

देखिए विज्ञापनों का दौर ऐसा आ गया

काम होने से जरूरी है दिखे होता हुआ।

जब रपट आई तो सारे एक स्वर में कह गए

कुछ हुआ हो ना हुआ हो आंकड़ा अच्छा हुआ।

चूर कर दी शख्सियत यूं जख्म भी दिखता नहीं

ये तरीका चोट करने का बहुत संभला हुआ।

दे रहें हैं आप लेकिन मिल न पाया आज तक

आपका सम्मान भी लगता है बस मिलता…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on March 30, 2022 at 6:11pm — 11 Comments

गीत- मिथिलेश वामनकर

न गुनगुनाना न बोल पड़ना,

अभी अधर पर सघन हैं पहरे।



अगर तिमिर को सुबह कहोगे

तभी सुरक्षित सदा रहोगे

अभी व्यथा को व्यथा न कहना

कथा कहो या कि मौन रहना

न बात कहना निशब्द रहना

सुकर्ण सारे हुए हैं बहरे।

न तार छेड़ो सितार के तुम

बनो न भागी विचार के तुम

हवा बहे जिस दिशा बहो तुम

स्वतंत्र मन को विदा कहो तुम।

यही समय की पुकार सुन लो

सवाल सारे दबा दो गहरे।

मशाल रखना गुनाह घोषित

वहाँ करें कौन दीप पोषित।

प्रकाश की हर…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on March 4, 2019 at 3:50am — 13 Comments

मिथिलेश कह सके न कभी

221—2121—1221—212

 

कविता में सम्प्रदाय लिखा-सा मिला जहाँ

शब्दों के साथ जल गई सम्पूर्ण बस्तियाँ

 

धीरे से छंट रहा था कुहासा अनिष्ट का

कुछ शिष्टजन ही लेके चले आये बदलियाँ

 

शासक, प्रशासकों से ये संचार-तंत्र तक

घूमे असत्य भी अ-पराजित कहाँ कहाँ

 

ये फलविहीन वृक्ष लगाने से क्या मिला ?

दशकों से गिड़गिड़ाती, ये कहती हैं नीतियाँ

 

अँकुए में सिर उठाने का दृढ़ प्रण है बीज का

आती हैं तीव्र वेग से, तो…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on February 10, 2017 at 6:30pm — 9 Comments

तुम्ही बता दो कैसे आऊँ - (गीत) - मिथिलेश वामनकर

तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,

सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?

 

एक कृषक कल तक थे लेकिन अब शहरी मजदूर बने।

सृजक जगत के कहलाते थे, वो कैसे मजबूर बने?

वे बतलाते जीवन गाथा, पीड़ा से घिर जाता हूँ।

कितने दुख संत्रास सहे हैं, ये लिख दूँ, फिर आता हूँ।

कर्तव्यों के नव बंधन को तोड़ तुम्हारे पास प्रिये,

तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,

सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?

 

कौन दिशा में कितने पग अब कैसे-कैसे है चलना?

अर्थजगत के नए मंच पर, कैसे या कितना…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2017 at 2:00pm — 23 Comments

गीत लिखो कोई ऐसा --(गीत)-- मिथिलेश वामनकर

गीत लिखो कोई ऐसा जो निर्धन का दुख-दर्द हरे।

सत्य नहीं क्या कविता में,  

निर्धनता का व्यापार हुआ?

 

जलते खेत, तड़पते कृषकों को बिन देखे बिम्ब गढ़े।

आत्म-मुग्ध होकर बस निशदिन आप चने के पेड़ चढ़े।

जिन श्रमिकों की व्यथा देखकर क्रंदन के नवगीत लिखे।

हाथ बढ़ा कब बने सहायक, या कब उनके साथ दिखे?

इन बातों से श्रमजीवी का

बोलो कब उद्धार हुआ?

 

अपनी रचना के शब्दों को, पीड़ित की आवाज कहा।

स्वयं प्रचारित कर, अपने को धनिकों से…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 6:00pm — 26 Comments

शांत है सोया हुआ जल --(गीत)-- मिथिलेश वामनकर

उफ़! करो कोई न हलचल,

शांत सोया है यहाँ जल ।

 

नींद गहरी, स्वप्न बिखरे आ रहे जिसमें निरंतर।

लुप्त सी है चेतना,  दोनों दृगों पर है पलस्तर।

वेदना, संत्रास क्या हैं? कब रही परिचित प्रजा यह?

क्या विधानों में, न चिंता, बस समझते हैं ध्वजा यह।

कौन, क्या, कैसे करे?  जब,

हो स्वयं निरुपाय-कौशल।

 

पीर सहना आदतन, आनंद लेते हैं उसी में।

विष भरा जिस पात्र में मकरंद लेते हैं उसी में।

सूर्य के उगने का रूपक, क्या तनिक भी ज्ञात…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 11, 2017 at 3:00pm — 27 Comments

निस्संकोच कृपाण धरो - (गीत) - मिथिलेश वामनकर

भटकन में संकेत मिले तब अंतर्मन से तनिक डरो।

सब साधन निष्फल हो जाएँ, निस्संकोच कृपाण धरो।

 

व्यर्थ छिपाये मानव वह भय और स्वयं की दुबर्लता।

भ्रष्ट जनों की कट्टरता से सदा पराजित मानवता ।

सब हैं एक समान जगत में, फिर क्या कोई श्रेष्ठ अनुज?

मानव-धर्म समाज सुरक्षा बस जीवन का ध्येय मनुज।

प्रण-रण में दुर्बलता त्यागो, संयत हो मन विजय वरो।

 

शुद्ध पंथ मन-वचन-कर्म से, सृजन करो जनमानस में।

भेदभाव का तम चीरे जो,  दीप जलाओ  अंतस में…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 5, 2017 at 10:30pm — 25 Comments

दोहा गीत - मिथिलेश वामनकर

पिया खड़े है सामने,

घूंघट के पट खोल।

 

चुप रहने से हो सका, आखिर किसका लाभ,

आज समय की मांग है, नैनो में रक्ताभ।

आधी ताकत लोक की,

अपनी पीड़ा बोल।

 

पौरुषता का वो करें, अहम् हजारों बार,

लेकिन तेरे बिन सखी, बिलकुल है लाचार।

वो आयेंगे लौटकर,

सारी धरती गोल।

 

जननी से बढ़कर भला, ताकत किसके पास,

आज संजोना है तुम्हें, बस अपना विश्वास।

हिम्मत से मिटना सहज,

जीवन का ये झोल।

 

अपने…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 10:00am — 31 Comments

लेकिन आगे कैसे बढ़ लें? - (गीत) - मिथिलेश वामनकर

नई नई कुछ परिभाषाएँ, राष्ट्र-प्रेम की आओ गढ़ लें।

लेकिन आगे कैसे बढ़ लें?

 

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।

महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।

अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।

हम भारत के  धीर-पुरुष हैं,  कष्ट सहें, यशगान करें सब।

चित्र वीभत्स मिले जो कोई,

स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।

 

मर्यादा के पृष्ट खोलकर, अंकित करते भ्रम का लेखा।

राष्ट्रवाद का कोरा डंका, निज…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2016 at 11:30pm — 23 Comments

जल रहें हैं गीत देखो (गीत) - मिथिलेश वामनकर

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

विश्व का परिदृश्य बदला और मानवता पराजित,

इस धरा पर खींच रेखा, मनु स्वयं होता विभाजित ।

इस विषय पर मौन रहना, क्या न अनुचित आचरण यह ?

छोड़ना होगा समय से अब सुरक्षित आवरण यह।

कुछ कहो, कुछ तो कहो,

मत चुप रहो यूँ मीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

मन अगर पाषाण है, सम्वेदना के स्वर जगा दो।

उठ रही मष्तिष्क में दुर्भावनायें,  सब भगा…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 11:00am — 18 Comments

कोई प्रेम-कथा उतरी है (ग़ज़ल) - मिथिलेश वामनकर

2122 – 1122 – 1122  - 22

 

केश विन्यास की मुखड़े पे घटा उतरी है  

या कि आकाश से व्याकुल सी निशा उतरी है

 

इस तरह आज वो आई मेरे आलिंगन में

जैसे सपनों से कोई प्रेम-कथा उतरी है

 

ऐसे उतरो मेरे कोमल से हृदय में प्रियतम

जैसे कविता की सुहानी सी कला उतरी है

 

मेरे विश्वास के हर घाव की संबल जैसे   

तेरे नयनों से जो पीड़ा की दवा उतरी है

 

पीर ने बुद्धि को कुंदन-सा तपाया होगा

तब कहीं जाके हृदय में भी…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 8:30pm — 40 Comments

बदले-बदले लोग - मिथिलेश वामनकर

बदले-बदले लोग

============

 

बहुत दिन हो गए,

हमने नहीं की फिल्म की बातें।

न गपशप की मसालेदार,

कुछ हीरो-हिरोइन की।

न चर्चा,

किस सिनेमा में लगी है कौन सी पिक्चर?

 

पड़ोसी ने नया क्या-क्या खरीदा?

ये खबर भी चुप।

सुनाई अब न देती साड़ियों के शेड की चर्चा।

कहाँ है सेल, कितनी छूट?

ये बातें नहीं होती।

 

क्रिकेटी भूत वाले यार ना स्कोर पूछे हैं।

न कोई जश्न जीते का,

न कोई…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 21, 2016 at 3:00pm — 18 Comments

सॉनेट : एक प्रयास (मिथिलेश वामनकर)

क्या है जीवन, आज समझने मैं आया हूँ

कठिन समय का दर्द सदा ही पाया मैंने

बस आशा का गीत   हमेशा गाया मैंने

जब तुम बनते धूप, बना तब मैं साया हूँ

 

जन्म काल से सत्य एक जो जुड़ा हुआ है

मानव की उफ़ जात बनी ये आदत कैसी

सदा ज्ञात यह बात मगर क्यों भूले जैसी

वहीँ शून्य आकाश एक पथ मुड़ा हुआ है

 

आया है जो आज उसे निश्चित है जाना

इस माटी का मोह, रहे क्यों साँझ सकारे?

इस माटी का रूप बदल जायेगा प्यारे 

फिर भी रे इंसान…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on March 22, 2016 at 10:44pm — 31 Comments

तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी--(ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

2122—1122—1122—22

 

दिल तो है पास, तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी

और ये बात जमाने से छुपाना बाक़ी

 

ज़िंदगी इतनी-सी मुहलत की गुज़ारिश सुन लो…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 8:41pm — 30 Comments

मैं तमन्ना नहीं करता हूँ कभी पोखर की--(ग़ज़ल)--मिथिलेश वामनकर

2122—1122—1122—22

मैं तमन्ना नहीं करता हूँ कभी पोखर की

मेरी गंगा भी हमेशा से रही सागर की



रूठने के लिए आतुर है दिवारें घर की

सिलवटें देखिये कितनी है ख़फा बिस्तर की



एक पौधा भी लगाया न कहीं पर जिसने

बात करता है जमाने से वही नेचर की



अम्न के वासिते मंदिर तो गया श्रद्धा से

बात होंठों पे मगर सिर्फ़ वही बाबर की



आसमां का भी कहीं अंत भला होता है

ज़िंदगी कितनी है मत पूछ मुझे शायर की



ये सहर क्या है, सबा क्या है,…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 8, 2015 at 1:30am — 30 Comments

दुख देने को आये जो हालात, सुनो-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

22---22---22---22---22---2

 

दुख देने को आये जो हालात, सुनो

अपना दिल भी पहले से तैनात सुनो

 

दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on November 24, 2015 at 11:25am — 22 Comments

चैनो-सुकून, दिल का मज़ा कौन ले गया-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

221-2121-1221-212

 

चैनो-सुकून, दिल का मज़ा कौन ले गया

दामन की वो तमाम दुआ, कौन ले गया?

 

ताउम्र समंदर से मेरी दुश्मनी…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on November 18, 2015 at 10:12pm — 10 Comments

तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122 - 1122 - 1122 - 22 या 112

 

तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन

रोजे-अव्वल से ही बदनाम रहा हूँ लेकिन

 

हक़ जताने से कभी हक़ नहीं होता…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on November 16, 2015 at 11:30am — 16 Comments

मखमली चाँदनी रोज आया करो---(ग़ज़ल)--- मिथिलेश वामनकर

212---212---212---212

 

मखमली चाँदनी रोज आया करो

पर सितारों से आमद छुपाया करो

 

तितलियों ने लिए है नए पैरहन

ऐ…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on November 13, 2015 at 9:00am — 16 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2019

2017

2016

2015

2014

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
12 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service