For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : ये प्रेम का दरिया है इसमें

बह्र : 22  22 22 22 22 22 22 22

 

ये प्रेम का दरिया है इसमें सारे ही कमल मँझधार हुए

याँ तैरने वाले डूब गये और डूबने वाले पार हुए

 

फ़न की खातिर लाखों पापड़ बेले तब हम फ़नकार हुए

पर बिकने की इच्छा करते ही पल भर में बाज़ार हुए

 

इंसान अमीबा का वंशज है वैज्ञानिक सच कहते हैं

दिल जितने टुकड़ों में टूटा हम उतने ही दिलदार हुये

 

मजबूत संगठन के दम पर हर बार धर्म की जीत हुई

मानवता के सारे प्रयास, थे जुदा जुदा, बेकार हुये

 

जिन चट्टानों को अपनी सख़्ती पर था ज़्यादा नाज़ यहाँ

उन चट्टानों के वंशज ही सबसे ज़्यादा सुकुमार हुये

 

 सौ बार गले सौ बार ढले सौ बार लगे हम यंत्रों में

पर जाने क्या अशुद्धि हम में थी, बागी हम हर बार हुये

 

जब तक सबका कहना माना सबने कहना ही मनवाया

जब से सबको इनकार किया तबसे हम ख़ुदमुख़्तार हुये

-------------

(मौलिक एवँ अप्रकाशित)

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 6, 2015 at 6:08pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2015 at 3:43am

मजा आ गया आदरणीय धर्मेन्द्रजी.. बहुत खूब !

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2015 at 10:11am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 3:14am

वाह वाह वाह .... शानदार ग़ज़ल हुई  है सभी अशआर लाजवाब है

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी शेर दर  शेर के लिये दाद हाज़िर है

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 22, 2015 at 12:21pm
शुक्रिया आ. शिज्जू जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 22, 2015 at 12:20pm
शुक्रिया आ. राहुल जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 22, 2015 at 12:20pm
शुक्रिया आ. गोपाल नारायन जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 21, 2015 at 9:27pm

वाह मुकम्मल ग़ज़ल ही लाजवाब है आदरणीय  धर्मेन्द्र जी हर शेर के लिये दाद हाज़िर है

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 21, 2015 at 8:31pm
सुन्दर ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 20, 2015 at 1:11pm

इंसान अमीबा का वंशज है वैज्ञानिक सच कहते हैं

दिल जितने टुकड़ों में टूटा हम उतने ही दिलदार हुये---------बहुत बहुत उम्दा  आ०धर्मेन्द्र जी.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service