दिल में रहने वाले मुझसे नकाब क्यों ?
इतना मुझे बता दे मुझसे हिज़ाब क्यों?
साकीं यह सुना तू है मदिरा का सागर
लाखों को तूने तारा मुझको जवाब क्यों?
मेरे गुनाह लाखों होंगे ये मैंने है माना
गैरों से कुछ न पूछा मुझसे हिसाब क्यों?
तूने जिसको अपनाया उसको खुदा बनाया
उनका नसीब है अच्छा मेरा खराब क्यों?
छोटी सी ये हस्ती में है कुल कमाल तेरा
बेहद का है तू दरीया फिर मैं हुबाब क्यों?
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
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साकीं यह सुना तू है मदिरा का सागर
लाखों को तूने तारा मुझको जवाब क्यों?
मेरे गुनाह लाखों होंगे ये मैंने है माना
गैरों से कुछ न पूछा मुझसे हिसाब क्यों?
आदरणीय हरिप्रकाश जी सर ,बहुत बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है |काफ़िये रदीफ़ बहुत अच्छी तरह से निभाये गये हैं |बह्र कहीं कहीं भ्रमित कर रही है |दिलीदाद कबूल फरमावें |सादर |
आदरणीय हरिप्रकाश जी, उम्दा गज़ल के लिये बधाइयाँ.........
क्या शिकेयते शेर कहा है पूरी गजल अच्छी बनी है भाई हरि प्रकाश जी बधाई
मेरे गुनाह लाखों होंगे ये मैंने है माना
गैरों से कुछ न पूछा मुझसे हिसाब क्यों?
ग़ज़ल अच्छी हुई है, आपके माध्यम से सभी सदस्यों से अनुरोध है कि गजल का वजन और कठिन उर्दू शब्दों का हिंदी अर्थ अवश्य लिखें. बधाई आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी इस प्रस्तुति पर.
मेरे गुनाह लाखों होंगे ये मैंने है माना
गैरों से कुछ न पूछा मुझसे हिसाब क्यों?
सुंदर कोशिश भाई जी |प्रयास पर बधाई |
आ० हरि प्रकाश जी
बहुत सुन्दर रचना i बधाई हो i
इस खूबसूरत रचना पर हार्दिक बधाई आ.हरिप्रकाश जी |
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