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इक ग़रीब औरत की बेबसी का क़िस्सा है
सादगी समझते हो, सादगी का क़िस्सा है

मैं सुना रहा हूँ और आप मुस्कुराते हैं
थोड़ा सोचकर देखें आप ही का क़िस्सा है

एक था सख़ी हातिम ये वही रिवायत है
मेरे मोहतरम महमाँ ये उसी का क़िस्सा है

एटमी धमाकों का इन पे क्या असर होगा
अब भी इनके मकतब में जलपरी का क़िस्सा है

बुलबुलों के होटों पर गुलशनों की बातें हैं
आदमी के होटों पर आदमी का क़िस्सा है

रोज़ ही वो सुनते थे, पूछ ही लिया इक दिन
किस हसीं की बातें हैं किस गली का क़िस्सा है

-------- समर कबीर
(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 748

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Comment by Samar kabeer on February 13, 2015 at 10:24pm
जनाब मुकेश श्रीवास्तव जी,आदाब,बहुत बहुत शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on February 13, 2015 at 10:21pm
जनाब ख़ुर्शीद जी,आदाब,ज़र्रा नवाज़ी के लिये शुक्रिया |
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on February 13, 2015 at 1:48pm

बुलबुलों के होटों पर गुलशनों की बातें हैं
आदमी के होटों पर आदमी का क़िस्सा  BHUT KHOOB MITRA

Comment by khursheed khairadi on February 12, 2015 at 12:45am

मैं सुना रहा हूँ और आप मुस्कुराते हैं
थोड़ा सोचकर देखें आप ही का क़िस्सा है

एक था सख़ी हातिम ये वही रिवायत है
मेरे मोहतरम महमाँ ये उसी का क़िस्सा है

आदरणीय कबीर साहब उम्दा ग़ज़ल हुई है ,शेर दर शेर दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |

Comment by Samar kabeer on February 11, 2015 at 10:38pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,बहुत बहुत शुक्रिया अदा करता हूँ,आप के जज़बात जानकर "अमीर मीनाई" का एक शैर आपकी नज़्र करना चाहता हूँ:-
"ख़न्जर चलें किसी पे तड़पते हैं हम "अमीर"
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है" |
Comment by Samar kabeer on February 11, 2015 at 10:28pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,डा.विजय शंकर जी,जनाब हरि प्रकाश दुबे जी,जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब अर्ज़ करता हूँ,ज़र्रा नवाज़ी के लिये आप सभी हज़रात का बहुत बहुत शुक्रिया |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 11, 2015 at 9:56pm

आदरणीय समर कबीर जी क्या खूब ग़ज़ल कही है गुनगुनाने में आनंद आ गया.... इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 8:35pm

आदरणीय समर कबीर साहब ,

इक ग़रीब औरत की बेबसी का क़िस्सा है
सादगी समझते हो, सादगी का क़िस्सा है.....शानदार ! बधाई आपको इस रचना पर !

Comment by दिनेश कुमार on February 11, 2015 at 3:21pm
आदरणीय समर कबीर साहब , क्या कहूँ , शब्द कम पड़ रहे हैं और दिमाग साथ नहीं दे रहा। शायद मैं ज्यादा भावुक हूँ। शब्द सीधे दिल में उतर रहे हैं। कई बार गुनगुना कर पढ़ चुका हूँ, मजा बढ़ता ही जा रहा है।
गुनगुना के जब मैंने आपकी ग़ज़ल देखी
जाने क्या हुआ मुझको आँख मेरी भर आई
इतनी बेहतरीन ग़ज़ल हमारे साथ शेयर करने का बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर जी
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 11, 2015 at 10:47am
बहुत ही रोचक, बधाई , आदरणीय समर कबीर जी , सादर।

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