घिर आई है शाम
यादें भटके जंगल-जंगल
नींद गई वनवास
अच्छे दिन परदेशी ठहरे
फ़ाग मिलन की आस |
बचपन यादें गहरी रंगी
खेले-कूदे संग
यौवन की लाल चुनरिया
डूबी पीया के रंग |
नंदे-देवर निकले हरजाई
करें ठिठोली छेड़ |
माघ कली झुलस चली
आन करो ना देर |
कीरत अर्जित करते जाते
तीर्थ है किस धाम
छोड़ो-अपनाओं दिल से
जब जोड़ा है नाम |
मीरा जैसा जीवन काटा
रुक्मणी बस नाम
आकर दीपक बारों फिर
घिर आई है शाम |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित) `
Comment
मीरा जैसा जीवन काटा
रुक्मणी बस नाम
आकर दीपक बारों फिर
घिर आई है शाम |
आदरणीय सोमेश जी ,बहुत ही सरस और सुन्दर रचना हुई है |सादर अभिनन्दन |
शुक्रिया शिज्ज जी
बहुत सुंदर आदरणीय सोमेश भाई बहुत बधाई इस रचना के लिये
sukriya sbhi aadrniy jno evm prm mitron ka ,mithlesh bhai sukriya mujhe chnd gyaan to nhin tha pr rchna aap ko bhi bhai to accha mhsus kr rha hun
बहुत सुंदर प्रस्तुति, आदरणीय सोमेश भाई जी. हार्दिक बधाई आपको
भाई सोमेश जी बहुत सुन्दर और प्यारी रचना है. सुन्दर पद हुए है. 16-11 की यति.... ये तो सरसी छंद हो गया. हार्दिक बधाई इस सुन्दर पदावली के लिए
यादें भटके जंगल-जंगल
नींद गई वनवास
अच्छे दिन परदेशी ठहरे
फ़ाग मिलन की आस |
बचपन यादें गहरी रंगी
खेले-कूदे संग
यौवन की लाल चुनरिया
डूबी पीया के रंग |------------------सुन्दर रचना i
सोमेश भाई, सुन्दर रचना ....
यादें भटके जंगल-जंगल
नींद गई वनवास
अच्छे दिन परदेशी ठहरे
फ़ाग मिलन की आस | हार्दिक बधाई ! सादर
सुन्दर रचना हुई है ...................
आ० सोमेश भाई , सुन्दर रचना हुई है हार्दिक बधाई .
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