कई दिनों से तलाश रहा हूँ
एक भूली हुई डायरी
कुछ कहानियाँ
जो स्मृतियों में धुंधली हो गई हैं |
कई सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद
मुड़ कर देखता हूँ
कदमों के निशान
जो ढूढें से भी नहीं मिलते हैं |
कामयाबी के बाद बाँटना चाहता हूँ
हताशा और निराशा
के वो किस्से
जो रहे हैं मेरी जिंदगी के हिस्से |
पर उसे सुनने का वक्त
किसी पे नहीं है
और ये सही है की
नाकामयाबी सिर्फ अपने हिस्से की चीज़ है…
ContinueAdded by somesh kumar on July 17, 2018 at 8:30am — 1 Comment
जिंदगी यूँ तो लौट आएगी
पटरी पर
पर याद आएगा सफ़र का
हर मोड़
कुछ गडमड सड़कों के
हिचकोले
कुछ सपाट रस्तों पर बेवजह
फिसलना
और वक्त-बेवक्त तेरा
साथ होना |
याद आएगा एक पेड़
घना छाँवदार
जिसके आसरे एक पौधा
पेड़ बना |
मौसमों की हर तीक्ष्णता का
सह वार
पौधे को सदा दिया
ओट प्यार |
निश्चय ही मौसम बदलने से
होगा कुछ अंकुरित
पर वो रसाल है मेरी जड़ो…
ContinueAdded by somesh kumar on July 16, 2018 at 10:30am — 6 Comments
नींद आँखों से खफा –खफा है /
चली है ठंडी हवा वो याद आ रह है /
लिखा था मौसम किसी कागज़ पे/
टहलती आँख लफ्ज़ फड़फड़ा रहा है /
सिलवटें बिस्तरों पे नहीं सलामत /
दिल का साँचा हुबहू बचा हुआ है/
नक्ल करके नाम तो पा सकता हूँ /
पर मेरा वजूद इसमें क्या है?
वो आज भी रहता है मेरे आसपास /
मेरे बच्चे में मुस्कुरा रहा है |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित…
ContinueAdded by somesh kumar on July 5, 2018 at 7:24am — 5 Comments
पुश्तैनी घर में होने वाले रोज़-रोज़ के झगड़े से तंग आ चुका था और मंशा थी की अपना एक अलग घोसला बनाया जाए |श्री वर्मा जी जो की मेरे शिक्षक,मार्गदर्शक एवं प्रेरणाश्रोत रहे हैं उनसे इस सिलसिले में मिलने पहुँचा |
मिलते ही उन्होंने प्रश्न किया-सबसे पहले यह बताओ की कितनी नकद राशि है और घर लेने की क्या योजना है |
“पैसे तो छह-सात लाख के आसपास हैं बाकि पैसे लोन करा लूँगा |सोच रहा हूँ की कोई जड़ सहित मकान या फ़्लोर मिल जाए |”मैंने हिचकिचाते हुए कहा
“लेकिन या परंतु बाद में ---सबसे पहले…
ContinueAdded by somesh kumar on July 2, 2018 at 9:59am — 4 Comments
कलावती से आज मैं पहली बार अकेले नेहरु पार्क में मिल रहा था |इससे पहले उससे विज्ञान मेले में मिला था |वहीं पर उससे मुलकात हुई थी |उसका माडल मेरे माडल के साथ ही था |वह हमेशा खोई-खोई और उदास लगती थी |मैंने ही उससे बात शुरू की और पत्नी द्वारा बनाया गया टिफ़िन शेयर किया |लाख कोशिशों के बाद वह ज़्यादा नहीं खुली पर बात-बात में पता चला की वह अपने पति से अलग अपने बेटे को लेकर मायके में रहती है |उसकी नौकरी पक्की नहीं है और वह अपने और बेटे के भविष्य को लेकर काफ़ी परेशान है |विज्ञान मेले के आखिरी दिन मैंने…
ContinueAdded by somesh kumar on June 3, 2018 at 5:30pm — No Comments
आ नहीं पाऊँगा फ़ोन काटकर राजबीर कुर्सी पर बैठ गया |हालाँकि समय ऐसा नहीं था की वो बैठे |घर में ढेरों काम बाकी थे और वक्त बहुत कम |मामा जी अभी-अभी कानपुर से आए हैं |ताऊ दो घंटे में पहुँच जाएँगे |मौसी कल ही दीपक के साथ आ चुकी हैं |सभी लोगों के नाश्ते का प्रबंध करना है और हलवाई का अता-पता नहीं है |
रिश्तेदारों के लिए शहर नया है और पड़ोसियों से कोई उम्मीद बेकार |कुल मिलाकर अमित ही था जो उसकी मदद कर सकता था पर अब !
“फ़िक्र ना कर मैं और तेरी भाभी एक रोज़ पहले पहुँच जाएँगे और तेरी…
ContinueAdded by somesh kumar on May 28, 2018 at 5:41pm — 2 Comments
“सर,इस सेम की बेल को खंबे पर लिपटने में मुश्किल आएगी |” मैंने सुरेंदर जी की तरफ़ देखते हुए कहा
“हाँ,मैं सोच रहा था की सामने वाली इमली में कील ठोककर बेल को उधर मोड़ दिया जाए |”
“ पेड़ में कील ! क्या यह पेड़ के लिए जानलेवा नहीं होगा |” मैंने कुछ परेशान होकर पूछा
“लोग पेड़ों में पूरा का पूरा मन्दिर बना देते हैं और तुम कहते हो की कील से पेड़ को नुकसान होगा |” उन्होंने मेरी तरफ़ मुस्कुराते हुए कहा
“सर ,मैंने पेड़ों से मार्ग की बात तो सुनी है पर क्या हमारे देश में कोई ऐसा पेड़…
ContinueAdded by somesh kumar on May 25, 2018 at 4:40pm — No Comments
पन्द्रह दिन पूर्व
निधि का फोन था |मैंने फोन उठाकर कहा की अभी कुछ व्यस्त हूँ |बाद में बात करते हैं |
“दो मिनट में मैं घर पहुँच जाऊँगी |” उसने कुछ बुझी आवाज़ में कहा
“सब ठीक-ठाक है ?” मैंने चिंता जताते हुए कहा |
“बहुत से भूचाल हैं |”
“ससुराल में फिर कुछ हुआ ?”
“वो तो लगा ही रहना है |मुझे लगता है मैं इन लोगों के साथ तालमेल नहीं बिठा सकती |पर कुछ और बताना है पिंकी के बारे में --” निधि का गला भर्राया हुआ था
“क्या हुआ !”
“मुझे लगता है…
ContinueAdded by somesh kumar on May 4, 2018 at 11:00am — 1 Comment
जाति-पाती पूछे हर कोई
“हो गईल चन्दवा क शादी |” पत्नी मोबाईल कान से लगाए मेरी तरफ देखते हुए बोली
मैं दफ्तर से लौटा तो समझ गया की पत्नी जी अपनी माता से फ़ोन पर लगी पड़ी हैं |मैंने बिना कोई रूचि दिखाए अपना बैग रखा और हाथ-मुँह धोने चला गया |
थोड़ी देर बाद पत्नी चाय लेकर आई और सामने बैठ गयी |मैं समझ गया कि वो मुझे कुछ बताने के लिए बेताब है और यह भी कि यह चंदा के विषय में है पर सिद्ध-पुरुष की तरह मैं प्लेट से कचरी उठाकर खाने लगा और अपने व्हाट्सएप्प को…
ContinueAdded by somesh kumar on April 29, 2018 at 5:26pm — 4 Comments
“ रात महके तेरे तस्सवुर में
दीद हो जाए तो फिर सहर महके “
“अमित अब बंद भी करो !बोर नहीं होते |कितनी बार सुनोगे वही गजल |” सुनिधि ने चिढ़ते हुए कहा
प्रतिक्रिया में अमित ने ईयरफोन लगाया और आँखें बंद कर लीं |
कुछ देर बाद सुनिधि ने करवट बदली और अपना हाथ अमित की छाती पर रख दिया |पर अमित अपने ही अहसासों में खोया रहा और उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी |
“ऐसा लगता है तुम मुझे प्यार नहीं करते |” सुनिधि ने हाथ हटाते हुए कहा पर अमित अभी भी अपने ख्यालों में खोया…
ContinueAdded by somesh kumar on March 30, 2018 at 12:00am — 2 Comments
रात भर महकती रही यादें
लुत्फ़ आया बहुत जुदाई का
विरह से उठा रोग दबा हुआ
पता लेता हूँ अब दवाई का |
सिक्के जेब को काटने लगे
खर्च ने हाल पूछा कमाई का
नमक-मिर्च से मुँह जलाकर
पूछा भाव फिर से मिठाई का |
हर रात सिराहन से शिकायतें
ढिंढोरा कब तलक ढिठाई का
हथेलियाँ-हथेलियों के लिए तड़पी
इश्क ने हाल पूछा रुसवाई का |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
Added by somesh kumar on March 25, 2018 at 2:30pm — No Comments
तीसरे माले पर वो करवट बदलते हैं तो खटिया चर्र-चर्र बोलती है |अंगोछा उठाकर पहले पसीना पोंछते है फिर उस से हवा करने लगते हैं |
“साsला पंखा भी ---“ बड़बड़ा कर बैठ जाते हैं और एक साँस में बोतल का शेष पानी गटक जाते हैं
“अब क्या ? अभी तो पूरी रात है |”
भिनभिनाते मच्छर को तड़ाक से मसल देते हैं |
दूसरे माले का टी.वी. सुनाई देता है – “तू मेरा मैं तेरी जाने सारा हिंदुस्तान |”
“बुढ़िया को क्या पड़ी थी पहले जाने की ---“
गला फिर सूखने लगा तो जोर–जोर से खाँसना…
ContinueAdded by somesh kumar on March 20, 2018 at 8:00pm — 9 Comments
रामदीन |” अख़बार एक तरफ रखते हुए और चाय का घूंट भरते हुए पासवान बाबू ने आवाज़ लगाई
“जी बाबू जी |”
“मन बहुत भारी हो रहा है |दीपावली गुजरे भी छह महीने हो गए | सोचता हूँ दोनों बेटे बहुओं से मिल लिया जाए|---- ज़िन्दगी का क्या भरोसा !”
“ऐसा क्यों कहते हैं बाबूजी !हम तो रोज़ रामजी से यही प्रार्थना करते हैं की बाबूजी को लंबा और सुखी जीवन दे |”
“ये दुआ नहीं मुसीबत है |बुढ़ापा ---अकेलापन----तेरे माई जिंदा थी तब अलग बात थी पर अब ---“ वो गहरी साँस भरते हुए कहते हैं
“हम क्या…
ContinueAdded by somesh kumar on March 18, 2018 at 11:00pm — 8 Comments
आदित्य और नियति(शादी के पहले छह महीने )
खाना लगा दूँ ?” घर लौटे आदित्य से नियति ने पूछा
“दोस्तों के साथ बाहर खा लिया |”
“बता तो देते |” नियति ने मुँह गिराते हुए कहा
“कई बार तो कह चुका हूँ कि जब दोस्तों के साथ बाहर जाता हूँ तो खाने पर इंतजार मत किया करो |”आदित्य ने तेज़ आवाज़ में कहा
नियति की आँखों में आँसू आ गए आदित्य
“अच्छा बाबा सॉरी !अब प्लीज़ ये इमोशनल ड्रामा बंद करो |” आदित्य ने कान पकड़ते हुए कहा और नियति अपने आँसू पोछने लगी
रात को…
ContinueAdded by somesh kumar on March 17, 2018 at 11:25am — 4 Comments
आखिरी मुलाकात
आखिरी लम्हा
आखिरी मुलाकात का
अथाह प्यास
जमी हुई आवाज़
उबलते अहसास
और दोनों चुप्प !
आतूूर सूरज
पर्दा गिराने को
मंशा थी खेल
और बढ़ाने को
आखिरी दियासलाई
अँधेरा था घुप्प !
सुन्न थे पाँव
कानफोड़ू ताने
दुधिया उदासी पे
लांछन मुस्काने
आ गया सामने
जो रहा छुप्प |
वक्त रुका नहीं
आँसू ढहे नहीं
पत्थर बहा…
ContinueAdded by somesh kumar on March 14, 2018 at 10:33pm — 6 Comments
खुशियों का बँटवारा
“पापा,बड़े कमरे में चलों “ मनीष ने मैच देख रहे अजीत गुप्ता का हाथ खींचते हुए कहा
“अरे चल रहा हूँ मेरे लाडले,इतनी उतावली क्या है !”
और कमरे में प्रवेश करते ही- सरप्राइज !
“क्यों पापा कैसी लगी डेकोरेशन !” मझली बेटी आनंदी ने पूछा
“एक्सीलेंट!”
“अभी एक और सरप्राइज है “ मिसीज अजीत ने चॉकलेट केक आगे बढ़ाते हुए कहा
“यार ! तुम भी बच्चों के साथ बच्ची बन रही हो |क्या यह उम्र है बर्थडे मनाने की ---केक काटने…
ContinueAdded by somesh kumar on March 12, 2018 at 11:23pm — 3 Comments
अहमियत
“सुनते हो !” रीमा ने सहमते हुए मोबाईल पर गेम खेल रहे प्रकाश को धीरे से छूकर कहा
“क्या यार ! तुम्हारे चक्कर में मेरा खिलाड़ी मारा गया -----बोलों क्या आफ़त आ गई |” प्रकाश ने झल्लाते हुए कहा
“मौसीं का फ़ोन आया था------नानी सीढ़ियों से गिर गईं हैं |” रीमा ने सहमते हुए कहा
“वेरी बैड ----ज़्यादा चोट तो नहीं आई ---“ प्रकाश ने बिना उसकी तरफ़ देखे गेम में लगे हुए ही कहा
“नहीं !” रीमा चुपचाप बगल में बैठ गई
"सबकी बैंड बजा रखी है मैंने ---मुझसे अच्छा…
ContinueAdded by somesh kumar on March 11, 2018 at 9:18am — 5 Comments
प्रवासी पीड़ा
शहर पराया गाँव भी छूटा
चाँदी के चंद टुकड़ों ने
हमको लूटा-हमको लूटा-हमको लूटा |
भूख खड़ी थी जब चौखट पे
कदम हमारे निकल पड़े थे
मिल गई रोटी शहर में आकर
पर अपनों का अपनेपन का
हो गया टोटा-हो गया टोटा-हो गया टोटा |
माल कमाया सबने देखा
रात जगे को किसने देखा
मेहमां-गाँव से ना उनको रोका
एक कमरे की ना मुश्किल समझी
दिल का हमको
कह दिया छोटा-कह दिया छोटा-कह दिया छोटा…
ContinueAdded by somesh kumar on March 8, 2018 at 6:07pm — 2 Comments
आदमी और नदी
पहाड़ों से निकलतीं थीं झूम-झूम कर
खो जाती थीं एक-दुसरे में घूम-घूम कर
विशद् धारा बन जाती थी
एक नदी कहलाती थी
समुंदर में जाकर प्रेम करती सुरूप
हो जाती एकरूप |
आदमी भी कुछ ऐसा था
स्वीकारता दुसरे को
चाहे दूसरा जैसा था
आदमी होना प्रथम था
बाद में ज़मीन-पैसा था |
आदमी का मेल-मिलाप /सभ्यता रचता था
इसी तरह एक राज्य/एक देश बसता था |
बाद में नदी को जरूरत के…
ContinueAdded by somesh kumar on March 7, 2018 at 8:00pm — 3 Comments
खोया बच्चा
हिन्दू घर से खोया बच्चा
माँ मम्मी कह रोया बच्चा
गुरूद्वारे का लंगर छक कर
मस्जिद में जा सोया बच्चा |
गली मोहल्ला ढूंढ रहा था
उसकों घर घर थाने थाने
दीवारें सब हाँफ रहीं थीं
नींव लगी थी उन्हें बचाने |
खुली नींद फिर वो भागा
एक पग में दस डग नापा
थक हार देखी एक बस्ती
निकली चर्च से हँसती अंटी |
“तुम शायद घर भूल गया है !
चलों तुम्हें घर से…
ContinueAdded by somesh kumar on March 4, 2018 at 2:00pm — 4 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |