For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़

२१२२  १२२२   २

झोपड़ी को डुबाने निकले
सारे बादल दिवाने   निकले

खेत घर हो गए बंजर से
बच्चे बाहर कमाने  निकले

द्रोपदी सी प्रजा है बेबस
जब से राजा ये काने  निकले

आदमी भूल आदम की पर
पाक खुद को बताने  निकले

जब्त गम को किया तब हम भी
इस जहां को हँसाने  निकले

माँ को खोया तो समझा मैंने
हाथ से जो खजाने  निकले

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Views: 602

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आदित्य श्रीराधेकृष्ण सोऽहं on July 27, 2014 at 3:16pm

बहुत सुन्दर! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 24, 2014 at 2:54pm

आदरणीय गुमनाम भाई , बढ़िया गज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ !!

द्रोपदी सी प्रजा है बेबस
जब से राजा ये काने  निकले ------- बहुत खूब ! भाई जी बधाइयाँ ॥

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 24, 2014 at 8:03am

धन्यवाद दोस्तो आपकी बातें हौसला बढ़ाती हैं

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 24, 2014 at 12:42am
आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी , बात है और बात में दम है , रचना के लिए बधाई .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2014 at 11:35pm

द्रोपदी सी प्रजा है बेबस
जब से राजा ये काने  निकले ..

बहुत खूब !

आपकी ग़ज़ल का अंदाज़भा गया, भाईजी.. सतत प्रयार रहें.

शुभेच्छाएँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 23, 2014 at 11:12pm

आदमी भूल आदम की पर
पाक खुद को बताने  निकले

माँ को खोया तो समझा मैंने
हाथ से जो खजाने  निकले

बहुत बेहतरीन शे'र कहे आपने आदरणीय गुमनाम जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 23, 2014 at 4:49pm

dhanywaad dosto

Comment by Santlal Karun on July 23, 2014 at 4:07pm

आदरणीय गुमनाम जी,

अच्छी ग़ज़ल ; साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"खेत घर हो गए बंजर से 
बच्चे बाहर कमाने  निकले 

द्रोपदी सी प्रजा है बेबस 
जब से राजा ये काने  निकले"

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 23, 2014 at 11:38am

गुमनाम जी

बहुत अच्छी गजल हुयी है i

 

जब्त गम को किया तब हम भी
इस जहां को हँसाने  निकले

माँ को खोया तो समझा मैंने
हाथ से जो खजाने  निकले

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2014 at 11:12am

आ0 भाई गुमनाम जी , इस गजल के लिए हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service