For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - जलते नयन बेतहाशा - इमरान

221 221 22

ठंडी पवन बेतहाशा,
जलते नयन बेतहाशा।

धरती पराई, सताये,
यादे वतन बेतहाशा।

ज़िन्दा अगर हो तो सुन्न क्यों,
ख़ूने बदन बेतहाशा।

मैला बदन कैसे पहनूँ,
उजला क़फन बेतहाशा।

मौसम चुनावी, मिलेंगे,
झूठे वचन बेतहाशा।

नेता न छोड़ेंगे करने,
भारी गबन बेतहाशा।

माज़ी जिगर का बना है,
कोई वज़न बेतहाशा।

मिलने लगे हैं कुछ अपने,
डाले शिकन बेतहाशा।

देखो न अंधा बना दे,
सिक्कों की खन बेतहाशा।

आकर न दें वो गवाही,
भेजे समन बेतहाशा।

उबरे हर इक बार हमने,
झेले पतन बेतहाशा।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 927

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by इमरान खान on April 10, 2014 at 4:56am
धन्यवाद श्याम नारायण साहब
Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on April 9, 2014 at 11:13pm

मौसम चुनावी, मिलेंगे,
झूठे वचन बेतहाशा।

बहुत खूब.... छोटी बह्र में एक शानदार गजल हुई भाई !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2014 at 6:57pm

आदर्नीय इमरान भाई , छोटी बह्र मे लाजवाब ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें !!

इस मिसरे की तक्तीअ पुनः करे के देख लीजियेगा ॥ 

 ज़िन्दा अगर हो तो सुन्न क्यों,

Comment by विजय मिश्र on April 9, 2014 at 4:06pm
सही में ,हर जगह बढ़ी है - गुनाह बेलगाम बेतहाशा | बहुत खूबसूरत पैमाइश |शुक्रिया इमरान भाई |
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2014 at 12:27pm

आदरणीय इमरान भाई , बेहतरीन गजल कही हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 8, 2014 at 12:16pm

वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह इमरान भाई जी छोटी बह्र पर शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने'

ठंडी पवन बेतहाशा,
जलते नयन बेतहाशा।--क्या कहने 

धरती पराई, सताये,
यादे वतन बेतहाशा। ---सच कहा परदेश में जाकर यही भाव उमड़ते हैं बहुत उम्दा शेर 

मिलने लगे हैं कुछ अपने,
डाले शिकन बेतहाशा।----कमाल 

देखो न अंधा बना दे,
सिक्कों की खन बेतहाशा।-----यहाँ खन का अर्थ समझ नहीं आया ..क्या कोई उर्दू शब्द है ?

बहुत बढ़िया ग़ज़ल दिली दाद कबूलें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 8, 2014 at 12:25am

मिलने लगे हैं कुछ अपने,
डाले शिकन बेतहाशा

उबरे हर इक बार हमने,
झेले पतन बेतहाशा

बेहतरीन गजल कही आदरणीय इमरान साहब , दिली दाद कुबूल कीजिये

Comment by वेदिका on April 8, 2014 at 12:01am
ठंडी पवन बेतहाशा,
जलते नयन बेतहाशा
सुन्दर प्रयोग बेहतरीन गजल
शुभकामनाएं आ0 इमरान जी
Comment by gumnaam pithoragarhi on April 7, 2014 at 4:30pm

धरती पराई, सताये,
यादे वतन बेतहाशा।

नेता न छोड़ेंगे करने,
भारी गबन बेतहाशा।

उबरे हर इक बार हमने,
झेले पतन बेतहाशा।

खूब सर जी बहुत खूब ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by coontee mukerji on April 7, 2014 at 3:52pm


देखो न अंधा बना दे,
सिक्कों की खन बेतहाशा।....बहुत खूब.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service