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गज़ल - वतन को लहू की नज़र कर दिया है - इमरान

122 122 122 122

सियासी जमातो! ग़दर कर दिया है,
वतन को लहू की नज़र कर दिया है।

निशाँ भी नहीं है कहीं रोशनी का,
के हर सू अँधेरा अमर कर दिया है।

डरी और सहमी है औलादे आदम,
ज़हन पर कुछ ऐसा असर कर दिया है।

नई नस्ले नफरत को पाने की धुन में,
रगों में रवाना ज़हर कर दिया है।

यहाँ कल तलक थी हज़ारों की बस्ती,
बताओ के उसको किधर कर दिया है।

ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,
मगर और देखो लचर कर दिया है।

गबन बेतहाशा किये इतने सारे,
के क़ौमी ख़ज़ाना सिफर कर दिया है।

निगाहों से अंधा व कानों से बहरा,
अपाहिज नगर का नगर कर दिया है।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 2:16am

समसामयिकता को बखूबी स्वर मिले हैं.  बहुत खूब !

दाद कुबूल करें भाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 23, 2014 at 1:11pm

हालाते हाज़रा पर बहुत ही शानदार पुरसर अश'आर हुए हैं आ० इमरान खान जी 

डरी और सहमी है औलादे आदम,
ज़हन पर कुछ ऐसा असर कर दिया है।...........बहुत खूब 

निगाहों से अंधा व कानों से बहरा,
अपाहिज नगर का नगर कर दिया है।.............उफ्फ! कितनी लाचारगी है.न दिखाई देता है न सुनायी देता है..की लोग चाहते ही नहीं देखना और सुनना ...बहुत खूब 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by नादिर ख़ान on April 17, 2014 at 11:23pm

अदरणीय इमरान भाई सभी अशआर रवानगी लिए हुये हैं। कहने का अंदाज़ भी बहुत उम्दा है। हमारी तरफ से शानदार गज़ल के लिए मुबारकबाद ..

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:39pm

बहुत खूब इमरान साहब, अच्छी ग़ज़ल है। दाद कुबूलें।

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 3:01pm

आदरणीय इमरान साहेब
खूब तंज़ किया है आपने.. अच्छे अश्आर कहे है आपने.

ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,
मगर और देखो लचर कर दिया है।

गबन बेतहाशा किये इतने सारे,
के क़ौमी ख़ज़ाना सिफर कर दिया है।

निगाहों से अंधा व कानों से बहरा,
अपाहिज नगर का नगर कर दिया है।

 

बहुत खूब
 

Comment by इमरान खान on April 17, 2014 at 2:21pm
आपकी सराहना पर हार्दिक धन्यवाद जनाब चन्द्र शेखर पाण्डेय साहब
Comment by इमरान खान on April 17, 2014 at 2:19pm
डा0 आशुतोष साहब गजल को इतना मान देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by इमरान खान on April 17, 2014 at 2:13pm
जनाब गिरीराज भण्डारी साहब हौसला अफज़ाई पर आपका पुर खुलूस शुक्रिया
Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 16, 2014 at 12:58pm

वाह जनाब क्या गजल कही है, 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 16, 2014 at 12:33pm

आदरणीय इमरान जी बेहतरीन ग़ज़ल ..हर शेर उम्दा है ..बिशेष रूप से ये शेर मुझे बेहद भाये ..आपको तहे इल बधाई के साथ सदर 

नई नस्ले नफरत को पाने की धुन में,
रगों में रवाना ज़हर कर दिया है।

ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,
मगर और देखो लचर कर दिया है।

निगाहों से अंधा व कानों से बहरा,
अपाहिज नगर का नगर कर दिया है  

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