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जान हथेली पर ले चलते , भारत माँ के वीर जवान |

जागे रहते वीर जवान | 
जान हथेली पर ले चलते , भारत माँ के वीर जवान |
देश दुनिया शांती चाहते , मेरा देश कितना  महान |
छुप छुप कर बैरी वार करें , मुश्किल में दे देते जान |
सात समुंदर पार गरजते , भारत माँ की है पहचान |
करें सफाया डाकूवों का ,  आतंकी होते हैरान  |
देश विदेश  सह परेशानी , बढ़ाते हैं  देश की शान |
कहीं पड़ते जब थपेड़े में , दे देते हैं अपनी जान |
हर पल तत्पर ही  रहते हैं , शेर की  तरह सीना तान |  
जल थल नभ से हैं चौकन्ना , फ़ौरन चलें होकर सवार | 
भारत माँ की शान बढाते , शोभें  लेकर नव हथियार |
हर मौसम में चलते रहते , चाहे चले कोई बयार |
वतन से दूर रह  खुश रहते , छोड़ दूर  अपना परिवार |
सीमा की करते रखवाली , पड़ोसियों का रखते ध्यान |
आतंकी बस  घूस न  जाये ,  देश भी ना सहे अपमान |
जंगल या कोई हो पहाड़ , बढ़ते रहते सीना तान | 
वर्मा लोग चैन से सोते , जागे रहते वीर जवान | 
श्याम नारायण वर्मा 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on April 14, 2013 at 11:54pm

सुंदर रचना, बधाई.....

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 10:01pm

जवानो की सराहना में रचना के लिए, उन्हें जाग्रत करती रचना के लिए बधाई श्री श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2013 at 5:27pm

आदरणीय वर्मा जी 

सुन्दर प्रयास 

बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 14, 2013 at 3:53pm

भारत माँ के वीर जवानों को समर्पित इस गौरवगान के लिए बधाई आ० श्याम नारायण वर्मा जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 14, 2013 at 10:33am

देश के गौरव वीर जवानो की शौर्य गाथा में चली आपकी कलम को नमन इंगित की हुई त्रुटियों के सुधार से रचना और निखर जायेगी हार्दिक बधाई आपको जय हिन्द 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 13, 2013 at 9:40pm

बहुत ही सुन्दर और सहजता के साथ आपने वीरों का सौर्यगान किया है 

बहुत बहुत बधाई हो ......जय हिन्द जय माँ भारती 

तत 

आदरणीय बागी सर और अशोक सर  के कहे से सहमत हूँ 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 13, 2013 at 7:06pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सादर, देश के वीर जवानो का स्तुति गान और उनके शौर्य का बखान करती सुन्दर रचना पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.  आदरणीय बागी जी की बात से मैं सहमत हूँ साथ ही कुछ त्रुटियों पर भी कार्य की अपेक्षा करता हूँ. "डाकूवों" डाकुओं, "घूस" घुस. और एक पंक्ति "वतन से दूर रह खुश रहते" यह पंक्ति तो सिपाही  के कार्य के विपरीत कथन है.मुझे आशा है आप मेरे कहे को अन्यथा नहीं लेंगे. मैंने मित्रवत  त्रुटी जान आपका ध्यान आकर्षित कराने का प्रयास किया है.सादर. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2013 at 3:24pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, देश प्रेम से ओत प्रोत बहुत ही सुन्दर भाव पिरोयें है, आप १६,१५ मात्रा पर रचने का प्रयास किया है, फिर भी आतंरिक संयोजन के कारण गेयता बाधित है, यदि इस रचना को गुनगुनाते हुए कुछ शब्दों में हेर फेर किया जाय तो यह रचना और अधिक अच्छी हो सकेगी । 

इस अभिव्यक्ति पर अतिशय बधाई प्रेषित है । 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 13, 2013 at 3:14pm

अतिसुन्दर!  हार्दिक बधाई।  सादर,

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