घर चलता है नर नारी से , नर का चले सारा अधिकार | |
घर का काम करे सब नारी , फिर भी रहे नर से लाचार | |
संग रहे भाई बचपन में , बात बात में देता ताना | |
एक दिन ससुराल जाओगी , वहाँ होगा तेरा ठिकाना | |
सदा कहा भाई की होती , बहन का नहीं चले बहाना | |
रोकर चुप हो जाती बहना , दबा लेती आंसू की धार… |
Added by Shyam Narain Verma on June 1, 2019 at 2:30pm — No Comments
माता की ममता की तुलना , कभी कोई कर सकता नहीं | |
जग में जो खुशी माँ से मिले , कोई और दे सकता नहीं | |
हर कोई माँ से ही आया , मां बिना कोई आया नहीं | |
ये ज़िंदगी जो माँ से मिली , कोई कर्ज भर पाया नहीं | |
प्रसव में जो पीड़ा माँ सहे , पिता उसे कहाँ बाँट पाये | |
सटा कर रखे जो सीने से , ये मजा शिशु को कहाँ आये | |
अपने गीले में… |
Added by Shyam Narain Verma on June 14, 2018 at 3:51pm — No Comments
दहक रहा हर कोना कोना , सूरज बना आग का गोला | |
मुश्किल हुआ निकलना घर से , लू ने आकर धावा बोला | |
तर बदन होता पसीने से , बिजली बिना तरसता टोला | |
बाहर कोई कैसे जाये , विकट तपन ने जबड़ा खोला | |
पशु पक्षी ब्याकुल गरमी से , जान बचाते हैं छाया में | |
चले राही लाचार होकर , आग लगी है जब काया में | |
तेज… |
Added by Shyam Narain Verma on May 26, 2018 at 3:30pm — 2 Comments
एक एक कर काटे डाली , ठूंठ खड़ा मन करे विचार | |
बीत गए दिन हरियाली के , निर्जन बना पेड़ फलदार | |
दिन भर चहल पहल रहती थी , जब होता था छायादार | |
पास नहीं अब आये कोई , सूखा तब से है लाचार | |
भरा रहा जब फल फूलों से , लोग आते तब सुबह शाम | |
कोई खाये मीठे फल को , कोई पौध लगा ले दाम | |
रंग… |
Added by Shyam Narain Verma on May 4, 2018 at 2:30pm — 8 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ |
भाई बैरी से मिलके भाई को मार डाले | |
जिस ने नाजों से पाला उसको ही जार डाले | |
अनबन गर कभी हो जाये बोले ना भाई से , |
जलता है दिल में जैसे… |
Added by Shyam Narain Verma on June 30, 2017 at 6:14pm — 3 Comments
किसी से कम रहो ना बेटी , पढ़ो बढ़ो तुम आगे जाओ | |
अडिग रहो अपने ही पथ पर , तुम कदम ना पीछे हटाओ | |
नाम करो अपना इस जग में , बढ़ो सुता तुम कदम बढ़ाओ | |
हर मुश्किल में रहे हौसला , हर गम सहकर बढ़ते जाओ |… |
Added by Shyam Narain Verma on June 3, 2017 at 4:39pm — 4 Comments
दो चार कहीं लगते पौधे , |
रोज कटते हैं पेड़ हज़ार | |
वन झाड़ी का होत सफाया , बाग कानन का मिटता नाम | |
कहीं पेंड नज़र नहीं आते , कहाँ जा करे राही विश्राम… |
Added by Shyam Narain Verma on August 9, 2016 at 2:26pm — 10 Comments
Added by Shyam Narain Verma on May 25, 2016 at 5:21pm — 4 Comments
फूल बिना भौंरे का जीवन , जग में है कितना लाचार । |
जब बाग वन कहीं खिले कली , आ जाये बिकल बेकरार । |
रंग रूप ना दूरी देखे , नैनों से करता इजहार । |
खार वार कुछ भी ना देखे , जोश में आये बार… |
Added by Shyam Narain Verma on December 30, 2015 at 12:30pm — 1 Comment
लावनी छंद |
नारी की असीम ताक़त है , मिट्टी को करती सोना |
जंगल में मंगल कर देती , सारे रश्मों को ढोना |
बनती बेटी ससुराल बहू , माँ को छोड पड़े रोना |
अजनवी घर अपना बनाती , हर सुख दुःख पड़े ढोना |
नारी जीवन की धारा है , साथ साथ साथ निभाती |
खुशी खुशी बच्चों को पाले , सबके संग घर चलाती |
घरनी बिन घर सूना लागे , जब छोड़ मायके जाती |
आये जब घर आँगन खिलता , जीवन में खुशियाँ लाती |
पति जाये जब गलत राह पर , विनय कर उसे समझाती |
पर अपने को अबला समझे…
Added by Shyam Narain Verma on December 12, 2015 at 6:00pm — 2 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ - रमल मुसम्मन सालिम
जो ख़ुशी से दान दे वो ग़म कभी करता नही है।
जो किसी पे जान दे वो आह भी भरता नहीं है ।
है अगर दिल में ख़ुशी तो चैन से सोते सभी हैं,
गम समाया है कहीं तो नींद भी भरता नहीँ है ।
हार हो या जीत हो ये तो कहीं वश में नहीं है ,
दिल लगाकर छोड़ देता वो कभी डरता नहीं है।
राह में चलते हुए भी घर बसा लेते कहीं भी ,
रेत का घर जब गिरे ग़म कोई भी हरता नहीं है ।
फूल हो जब डाल पे झूमे हवा में हर ख़ुशी में ,
तोड़ कर कोई रखे जब आह…
Added by Shyam Narain Verma on November 21, 2015 at 4:30pm — 2 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ - रमल मुसम्मन सालिम |
ज़िंदगी कैसे चले जब साथ कोई छोड़ जाये | |
जब खुशी हो पास आये ग़म पड़े दिल तोड़ जाये | |
दूर का जब हो सफर तब आसरा सब ढूढ़ते हैं… |
Added by Shyam Narain Verma on May 19, 2015 at 3:47pm — 10 Comments
२२१२ २२१२ २२१२ २२१२ - रजज मुसम्मन सालिम |
कोई दबा घर में कहीं आशा लगाये और का | |
इस जिंदगी का क्या भरोसा ये मुद्दा है गौर का | |
बारिश कहीं आँधी कहीं आकर गिराये घर नगर … |
Added by Shyam Narain Verma on April 29, 2015 at 3:01pm — 11 Comments
२१२२ / २१२२/ २१२२/ २१२ |
राह चलते दिल मिला फिर याद बनकर रह गया | |
ख़्वाब जो देखा कभी वो अश्क बनकर बह गया | |
रात बीती चांदनी में खाब आँखों में लिये… |
Added by Shyam Narain Verma on March 31, 2015 at 4:38pm — 6 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ - हजज मुसम्मन सालिम |
चमन में फूल खिलते हैं खुशी का राज होता है | |
ख़ुशी में झूमते भौंरे मजे से काज होता है | |
खिले जब फूल डाली में नजारा ही बदल जाये… |
Added by Shyam Narain Verma on March 23, 2015 at 12:15pm — 12 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ - रमल मुसम्मन सालिम |
छोड़ कर आतंक का दर नेक कोई काम करते | |
जान लेने के सिवा सारे जहाँ में नाम करते | |
लोग जो आये जहाँ में चाँदनी सब के लिए है ,… |
Added by Shyam Narain Verma on March 17, 2015 at 3:03pm — 14 Comments
११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ कामिल - मुतफ़ाइलुन |
हक़ के लिये लड़ते सभी झगड़ा कभी थमता नहीं | |
शक है वहीँ डर है कहीं प्रिय पास है समता नहीं | |
जब साथ है हर बात है कटु… |
Added by Shyam Narain Verma on March 13, 2015 at 12:03pm — 17 Comments
२२१२ २२१२ २२१२ 2212 |
मौसम कहाँ जाये बदल जानें कहाँ बरसात हो | |
दहशत भरे माहौल में जाने कहाँ पर घात हो | |
कैसे करे दोस्ती कहीं जा कर किसी भी देश में ,… |
Added by Shyam Narain Verma on March 11, 2015 at 2:30pm — 10 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ |
कामयाबी रंग लाये तब जमाना पास आये | |
रंज बैरी भूल जाये हाथ थामे रास आये | |
पात ना आये अगर डाली कहीं सूखी हुई हो , |
फूल डाली पर खिले जैसे नजारा खास आये |… |
Added by Shyam Narain Verma on March 3, 2015 at 1:00pm — 12 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ |
नज़र के फेर में कितने फ़साने रोज बनते हैं | |
कहीं राधा कहीं मोहन बने लाचार जलते हैं | |
नज़ारा और होता है खिले जब फूल डाली में , |
कहीं खुशबू… |
Added by Shyam Narain Verma on February 18, 2015 at 5:30pm — 13 Comments
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