For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अँधेरा मुझमे सो रहा है, माँ तेरे बिन,
डर को मुझमे बो रहा है, माँ तेरे बिन,


घर में घुस आईं हैं, धूल लेकर आंधियां अब,
कि जीना मुस्किल हो रहा है, माँ तेरे बिन,

ठोकरें लौट आई हैं, भर कर पत्थर राहों में,
नज़रों से उन्जाला खो रहा है, माँ तेरे बिन,

उखाड़ दी खिड़कियाँ, दरवाजा भी तोड़ डाला,
जहाँ घर का सामान ढो रहा है माँ तेरे बिन,

तकलीफ कैसे बांधूं, शब्दों में नहीं ताकत,   
अश्क मुझको धो रहा है, माँ तेरे बिन,

उंगली पकड़ चला दो, क़दमों में नही बल है,
देख तेरा बेटा रो रहा है, माँ तेरे बिन.......

Views: 417

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 11:20am

आदरणीय अम्बरीश जी, आपको ये रचना पसंद आई बहुत आभारी हूँ. जैसे की आपने मुझे बताया है मैं नित नियम प्रयास कर रहा हूँ त्रुटियों को दूर करने में. ओ. बी. ओ. से जुड़ने के बाद बहुत कुछ सीखा है.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 13, 2012 at 11:06am

//उंगली पकड़ चला दो, क़दमों में नही बल है,
देख तेरा बेटा रो रहा है, माँ तेरे बिन.......//

अरुण जी,  माँ ही सब कुछ है इसे ...बहुत अच्छा प्रयास किया है आपने ! बधाई स्वीकारें ! फिर भी इस रचना में शिल्प के स्तर पर सुधार की बहत गुंजायश है....सतत अभ्यास जारी रखें धीरे-धीरे शिल्प भी आ जाएगा ..... . सस्नेह

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 10:53am

आदरणीय भ्रमर जी, मित्र आशीष जी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 10:53am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, रेखा जी और दीप्ति जी. आपको अच्छा लगा और आपने सराहना की. शुक्रिया

Comment by आशीष यादव on July 13, 2012 at 12:19am

माँ के बिन, जिन्दगी सचमुच अवलम्बहीन लगने लगती है। आपने बखूबी लिखा है। बहुत-बहुत बधाई।

Comment by Rekha Joshi on July 13, 2012 at 12:05am

सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई अरुण जी 

Comment by deepti sharma on July 12, 2012 at 10:48pm

तकलीफ कैसे बांधूं, शब्दों में नहीं ताकत,   
अश्क मुझको धो रहा है, माँ तेरे बिन,

उंगली पकड़ चला दो, क़दमों में नही बल है,
देख तेरा बेटा रो रहा है, माँ तेरे बिन....

बहुत ही सुंदर रचना बधाई आपको

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 12, 2012 at 10:23pm

घर में घुस आईं हैं, धूल लेकर आंधियां अब,
कि जीना मुस्किल हो रहा है, माँ तेरे बिन,

ठोकरें लौट आई हैं, भर कर पत्थर राहों में, 
नज़रों से उन्जाला खो रहा है, माँ तेरे बिन, 

अनन्त जी ...सटीक हालात दर्शाती और जोश भरती रचना ...शब्दों पर थोडा ध्यान रखें  ...बधाई 

.मुश्किल , उजाला 

 

भ्रमर ५  ..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2012 at 10:20pm

बहुत भावनात्मक दिल को छू गई रचना 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
9 hours ago
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. रवि जी,ग़ज़ल तक आने और उत्साह वर्धन का धन्यवाद ..ऐ पर आपसे सहमत हूँ ..कुछ सोचता हूँ…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service