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शीशे की तरह दिल में, इक बात साफ़ है,
ये दिल दिल्लगी के, बिलकुल खिलाफ है,


खता इतनी थी कि उसने, मज़बूरी नहीं बताई,
फिर भी उसकी गलती, तहे-दिल से माफ़ है,

लगने लगी है सर्दी, अश्कों में भीगने से,
इतना हल्का हो गया, तन का लिहाफ है,

हर आस मर चुकी है, बस सांस ऑन है,
और दिल भी जल-२ के, बुझ हुआ ऑफ है,

मौत है कि बक्श देती है, मुझको बार-बार,
तेरे बाद जिंदगी में, अब जीने का खौफ है,

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 1:58pm

मित्र संदीप जी ,
मेरा मकसद आपको पीड़ा पहुँचाने का कतई नहीं था. मैंने आपके हृदय को आहत किया क्षमा प्राथी हूँ.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 13, 2012 at 3:59pm

प्रिय अरुण जी, वास्तव में सभी शेर दिल से ही कहे हैं आपने ..........जिसके लिए दिली मुबारकबाद स्वीकारें......परन्तु काम सिर्फ दिल से ही नहीं चलता अपितु दिलोदिमाग से ही चलता है .....अतः गज़ल में काफिया रदीफ़ के निर्वहन के साथ साथ बह्र का विन्यास, तनाफुर, तकाबुले रदीफ़, इता, सिनाद, शुतुर्गुर्बा आदि  देखना भी बहुत आवश्यक है ! जिसका पालन आपकी इस गज़ल में नहीं हो सका है ....अधिक जानकारी के लिए ओ बी ओ पर आदरणीय तिलकराज जी की गज़ल की कक्षा में प्रवेश लें.....

बचपन में पढ़ा हुआ एक दोहा आपको समर्पित है .....

मीठी वाणी बोलिए मन का आपा खोय.

औरन को शीतल करे आपहुं  शीतल होय..

सस्नेह

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 11:11am

मुझे लगता था मित्र कह देना ही काफी होता है
ये बताने के लिए की दिल है या नहीं
बहरहाल आपको मेरी शुभकामनाएं दिल से लिखते रहिये
रही दिमाग की बात तो वो तो शारदे की कृपा से कितना है ये आपको बताने की आवश्यकता नहीं है
मुझे आपने अपशब्द कहे हैं वो आप कभी वापस नहीं ले सकेंगे
किन्तु समय बलवान है आपकी गलतियाँ आपको स्वतः जबाब दे देंगी की गलती तो गलती होती है
छोटी अपितु बड़ी नहीं
और हाँ दिल में आग भर के भाई जैसे शब्दों का अपमान ना करें
हाँ मुझसे जो गलती हुई है आपको मित्र कह देने की उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 11:00am

संदीप भाई,
लगता है मुखमंडल में आग रखते हो,
सीने में दिल नहीं, दिमाग रखते हो.

माफ़ कीजिये संदीप जी मुझे महसूस हो रहा है की आपके पास दिल नहीं दिमाग है, क्यूंकि त्रुटियाँ दिल में नहीं दिमाग में होती है. मन तो सदैव शुद्ध रहता है कभी मन से पढियेगा अच्छा लगेगा. क्यूंकि मैं दिल से लिखता हूँ दिमाग से नहीं.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2012 at 10:55am

आदरणीया रेखा जी और आदरणीय भ्रमर जी आपको मेरी ये ग़ज़ल पसंद आई. तहे दिल से शुक्रिया बस अपना आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखिये मुझपर.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 12, 2012 at 10:10pm

खता इतनी थी कि उसने, मज़बूरी नहीं बताई,
फिर भी उसकी गलती, तहे-दिल से माफ़ है,

हाँ अनंत जी ऐसे ही प्यार में  सौ खून माफ़ ...सुन्दर गजल ..हिंदी अंग्रेजी का तड़का .... और दिल भी जल-२ के, बुझा  हुआ ऑफ है,  

भ्रमर ५  ..

 

Comment by Rekha Joshi on July 12, 2012 at 8:50pm

मौत है कि बक्श देती है, मुझको बार-बार,
तेरे बाद जिंदगी में, अब जीने का खौफ है,,क्या बात है अरुण जी ,बहुत खुबसूरत गजल ,बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 8:46pm

इस ग़ज़ल में बहुत कमियाँ हैं मित्रवर
मैं समीक्षा करने में स्वयं अभी असमर्थ हूँ सीख रहा हूँ
गुरुजन इसकी समीक्षा अवश्य करेंगे समय मिलते ही
मेरी और से बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 4:14pm

अलबेला SIR आपको पसंद आई, शुक्रिया

Comment by Albela Khatri on July 12, 2012 at 3:00pm

bahut pyari aur  umda gazal kahi  aapne

waah !

achha laga baanch kar

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