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सब की प्यारी माँ.

छहः साल  का नन्हा सा बच्चा था रोहन, लेकिन बड़ा होशियार.मम्मी पापा सब की आँखों का तारा . पढने में जितना होशियार उतना ही बड़ा खिलाडी.हमेशा कोई न कोई नयी हरकत कर के माँ को चौंका देता था. एक दिन  शाम  को काफी अँधेरा हो चला  लेकिन रोहन खेल कर घर नहीं लौटा. माँ की डर के मारे  हालत ख़राब होने लगी. उलटे सीधे विचार मन में आने लगे..बेहाल हो कर ढूंढने  निकली तो देखा की जनाब शर्ट को पेट पर आधा  मोड़े हुए उस में कोई  चीज़ बटोरे लिए चले आ रहे हैं. ख़ुशी से चेहरा लाल हुआ है. मुस्कान है कि रोके नहीं रुक रही..माँ डांटना  वाटना  भूल कर   आश्चर्य में पड़   गयी कि आखिर कौन सा खज़ाना मिल गया ..रोहन ने पास आ कर माँ को  खुशी ख़ुशी  बताया कि आज उन्हों ने एक गिलहरी के नन्हे से बच्चे को कैसे पकड़ा और  कैसे गोद में उठा कर   ले  आये  हैं , अब इसे पालतू बनाएंगे और अपने रूम में रखेंगे.......

माँ के गुस्से का ठिकाना न रहा..कहने लगी .." तुम्हारी खुराफातें दिन पर दिन बढती ही जा रही हैं, गिलहरी का  बच्चा माँ से अलग हो कर कैसे रहेगा ?"
रोहन की आँखों से टप टप आंसू  गिरने लगे .."तुम्हे क्या पता माँ, मैं ने कितनी मेहनत की है इस को यहाँ  तक  लाने में.. "
"लेकिन ..ये खायेगा क्या?"
रोहन को कुछ आशा बंधी. बोला "बिस्किट,अमरुद, रोटी, .....कुछ भी खा लेगा..."
"और रहेगा कहाँ?..तुम्हारी शर्ट में?" 
अब सोचने की बारी रोहन की थी......बोला .."माँ, तुम  किचेन    वाली वो बास्केट दो न...जिस में टमाटर रखती हो."
जल्दी जल्दी उसके रहने के लिए पुरानी कॉपी के पन्नों का बिस्तर लगाया गया , उस में रोहन ने बिस्किट और मूंगफली के दाने रख कर, टोकरी का ढक्कन लगा दिया , और जम कर वहीँ बैठ  गया..गिलहरी का बच्चा दहशत में था...उस ने कोई भी चीज़ नहीं छुई.केवल चीं, चीं करता रहा...
रोहन की माँ बोली..."देखो तुम ने उसे उस की माँ से दूर कर दिया , वो इसी लिए दुखी है."
रोहन को बात  पसंद नही आयी....विरोध के स्वर में बोला ..."इतना अच्छा खाना कहीं उस की माँ खिलाती होगी..."
रात हो गयी ...रोहन ने होम वर्क भी कर लिया, खाना भी खा लिया , सोने चला , लेकिन गिलहरी का बच्चा वैसे ही गुमसुम एक किनारे बैठा रहा .रोहन ने मूंगफली के दाने गिने...जितने उस ने डाले थे , सब पूरे  के पूरे  मौजूद थे...माँ भी देखने आयी...दुखी हो कर बोली..."वो नहीं  खायेगा, उसे अपनी माँ की याद आ रही है."   बच्चा वैसे ही गुमसुम सा एक किनारे    बैठा चीं चीं करता रहा.....
रोहन अन्दर ही अन्दर सहम गया, अब क्या करे? पता नहीं इस की माँ अब कहीं मिलेगी या नहीं? कहीं ये बेचारा भूखा न मर जाये...लेकिन क्या कर सकता था..रात काफी हो गयी थी...उस ने चुप चाप टोकरी उठाई और उसे  खिड़की की चौड़ी सतह पर रख कर सोने चला गया...
रात भर उसे अजीब अजीब सपने आते रहे, देखा कि  वो माँ का हाथ पकडे घूम रहा है तभी एक  राक्षस उसे  छीन कर भागा  और ले जा कर पहाड़  की चोटी  पर बैठा दिया ...वो चीख कर उठ बैठा...माँ ने उसे  और चिपका  कर सुला लिया लेकिन फिर भी उसे ठीक से नींद न आयी...
सुबह होते ही वो सब से पहले भाग कर अपने  नन्हे मेहमान के पास पहुंचा, और वहां का दृश्य देख कर हतप्रभ रह गया.........
खिड़की के उस पार उस नन्हे बच्चे की माँ सीखचों से चिपक कर बैठी थी और इधर वो बच्चा टोकरी की जाली से.... माँ के पंजों में एक छोटा सा कच्चा अमरुद था, जिसे वो बीच में रखे हुए थी और उस का बच्चा बड़े मज़े से , टोकरी के  के अन्दर से ही कुतर कुतर के अमरुद खा  रहा था.
इतने में रोहन की मम्मी भी  पीछे से आ गयी...
रोहन को अपना रात वाला सपना याद आ  गया.....वो माँ  सेलिपट गया..
माँ ने कहा......."देखा....मैं ने कहा था न, वो माँ के बिना  खाना नही खायेगा.. तुम खाते हो कहीं, मेरे बिना..?"
अब जा के रोहन को बात समझ में आई..लेकिन तब तक गिलहरी इन लोगों को  देख कर भाग गयी थी और बच्चा बड़े जोर से चीं चीं चिल्ला  रहा था मानो माँ  को देख कर उसे संजीवनी शक्ति मिल गयी हो...
माँ ने रोहन को समझाया "वो कही गयी नहीं होगी, वहीँ बाहर कहीं बैठी होगी.तुम इस बच्चे को टोकरी से निकाल कर गार्डेन में ले जाओ , देखना वो खुद ही आ जाएगी.."
रोहन ने दुखी मन से डरे हुए बच्चे को टोकरी से निकाला.. फिर से अपनी शर्ट में सम्हाल कर रखा ,और भारी क़दमों से गार्डेन में आ गया, बच्चे को हौले से घास पर रख कर वापस घर के  दरवाज़े तक आया तो देखता क्या है कि एक पेड़  के पीछे से निकलकर माँ गिलहरी सर्र से आई  और उतनी ही तेज़ी से बच्चे के साथ सामने वाले पेड़  पर चढ़ कर गायब हो गयी....
देखते ही देखते रोहन का रात का मेहमान विदा हो  गया......रोहन उस खाली टोकरी के पास वापस आया और मूंगफली के दाने गिनने लगा.....सारे के सारे  दाने वैसे ही पड़े थे........

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Comment by Rekha Joshi on May 17, 2012 at 10:56pm

सरिता जी माँ बच्चे का अटूट रिश्ता होता है ,बहुत अच्छी प्रस्तुति ,बधाई |

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 11, 2012 at 10:06pm

माँ ने कहा......."देखा....मैं ने कहा था न, वो माँ के बिना  खाना नही खायेगा.. तुम खाते हो कहीं, मेरे बिना..?"

माँ की ममता का जितना भी बखान किया जाए कम है ..कोई उसका सानी नहीं ..सुन्दर प्रवाह ..मन को छू गयी ये कहानी  ...आभार  --भ्रमर ५ 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 11, 2012 at 8:56pm

माँ का स्थान दुनिया में कोई नहीं ले सकता , माँ शब्द की पवित्रता शब्दों से बयां करना मुमकिन नहीं है , गिल्लू के बहाने बहुत ही सार्थक सन्देश यह कहानी दे रही है | बधाई स्वीकार करें |

Comment by AVINASH S BAGDE on May 11, 2012 at 5:09pm

......रोहन उस खाली टोकरी के पास वापस आया और मूंगफली के दाने गिनने लगा.....सारे के सारे  दाने वैसे ही पड़े थे....umda kahani...Sarita ji..

Comment by Sarita Sinha on May 11, 2012 at 1:51pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी, नमस्कार,

जी हाँ, जीवों में भी संवेदनाएं होती हैं, बच्चों,  बड़ो , सब  को   ये बात समझनी चाहिए..आपको भाव अच्छे लगे इस के लिए धन्यवाद...
Comment by Sarita Sinha on May 11, 2012 at 1:48pm

जवाहर भाई, नमस्कार,

कहानी का सन्देश आपको अच्छा लगा, इस के  लिए धन्यवाद..
Comment by Sarita Sinha on May 11, 2012 at 1:46pm

मान्यवर अशोक जी, नमस्कार,

कहानी का मर्म समझने के  लिए आप का धन्यवाद  ,... 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 9, 2012 at 5:29pm

सरिता जी आपकी यह कहानी भाव विव्हल कर गई छोटे बच्चों का इन नन्हेजानवरों  से बड़ा लगाव होता है  आपने कहानी के माध्यम से बहुत सुन्दर सन्देश दिया है 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 9, 2012 at 5:22am

आदरणीय सरिता बहन, नमस्कार!

इतनी अच्छी सन्देश परक, 'मदर'स डे' (मातृ दिवस) के उपलक्ष्य पर यह कहानी और भी महत्वपूर्ण हो जाती है! बधाई!

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2012 at 10:04pm

सरिता जी सादर,
                         इतनी सुन्दर संदेशात्मक और  भावुक कर देने वाली कहानी बधाई स्वीकार करें.    

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