क़लम कोमा मे आ गयी है मेरी,
ब्रेनस्ट्रोक ज़बरदस्त लगा है इसको,
रगों मे दौड़ती स्याही पे बड़ा प्रेशर है,
क्या लिखे, क्या ना लिखे, कितना चले, कैसे चले,
सुना था तेज़ चलेगी ये तलवार से भी,
इस दफ़ा खुद ही कट के रह गयी ज़ुबान इसकी,…
Added by Sarita Sinha on March 5, 2013 at 4:30pm — 3 Comments
पत्थरों के शहर मे दिल ही टूटते थे अभी,
भरम भी टूट गया अब के, अच्छा ही हुआ..
दोस्ती लफ्ज़ से नफ़रत थी हमको पहले भी,
रहा सहा यकीं भी उठ गया अच्छा ही हुआ..
खुली थी आँखें फिर भी नींद आ गयी जाने,
तुमने झकझोर के जगा दिया अच्छा ही हुआ..
ज़मीन होती क़दम तले तो भला गिरते क्यों,
हवा मे उड़ने का अंजाम मिला अच्छा ही हुआ..
ख्वाब था या के हादसा था जो गुज़र ही गया,
यकीं से अपने यकीं उठ गया अच्छा ही हुआ..
यूँ भी मुर्दे पे सौ मन मिट्टी थी पहले से,
एक मन और पड़ गयी…
Added by Sarita Sinha on February 13, 2013 at 11:52pm — 16 Comments
ख्वाबों की दुकान से ख़रीदे थे अरमानो के बीज,
Added by Sarita Sinha on June 14, 2012 at 3:30pm — 4 Comments
(1)
जो ग़ालिब थे , मेरे जैसी ही उन पर भी गुज़रती थी,
अगर और जीते वो तो उनको क्या मिला होता....
डुबोया हम दोनों को अपने अपने जैसे होने ने,
वो न होते तो क्या होता , मैं न होती तो क्या…
Added by Sarita Sinha on May 18, 2012 at 2:30pm — 20 Comments
छहः साल का नन्हा सा बच्चा था रोहन, लेकिन बड़ा होशियार.मम्मी पापा सब की आँखों का तारा . पढने में जितना होशियार उतना ही बड़ा खिलाडी.हमेशा कोई न कोई नयी हरकत कर के माँ को चौंका देता था. एक दिन शाम को काफी अँधेरा हो चला लेकिन रोहन खेल कर घर नहीं लौटा. माँ की डर के मारे हालत ख़राब होने लगी. उलटे सीधे विचार मन में आने लगे..बेहाल हो कर ढूंढने निकली तो देखा की जनाब शर्ट को पेट पर आधा मोड़े हुए उस में कोई चीज़ बटोरे लिए चले आ रहे हैं. ख़ुशी…
ContinueAdded by Sarita Sinha on May 8, 2012 at 1:00am — 24 Comments
स्नेही मित्रों, सुना है, 8 मई को मदर्स ' डे मनाया जाता है...यानि कि साल का एक दिन माँ के नाम...इस की शुरुआत कब और क्यूँ हुई, ये मुझे नहीं पता , न जानना चाहती हूँ..बस अचम्भा इस बात का होता है कि मदर्स ' डे की शुरुआत करने वाले ने यह नहीं बताया कि साल के बाकी दिनों में माँ के लिए कौन से जज़्बात रखने हैं...
अगर किसी और दिन माँ को याद करना हो या अपने उद्गार व्यक्त करने हों तो कही उस के लिए कोई सज़ा तो निर्धारित नहीं है...फिलहाल मुझे…
Added by Sarita Sinha on April 27, 2012 at 8:00pm — 18 Comments
हम तो बादल हैं ...........
बरसे कभी नहीं बरसे.....
सफ़र किया था शुरू बेपनाह दरिया से,
झूमे खेले लहर की गोदी में,
जिन के सीने में मोती और तन पे चाँदी थी,
तभी पड़ी जो वहां तेज़ किरन सूरज…
ContinueAdded by Sarita Sinha on April 19, 2012 at 5:00pm — 15 Comments
Added by Sarita Sinha on April 12, 2012 at 10:00am — 24 Comments
किसका किसका हिसाब बाक़ी है,
जाने क्या क्या अज़ाब बाक़ी है......
नब्ज़ देखो अभी भी चलती है,
हसरते टूट गयीं जान अब भी बाक़ी है.....
दिलों के ज़ख्म हैं आँखों की राह रिसते हैं,
तुम समझते हो कि आँसू हमारे बाक़ी हैं.....
सुनो एक बात पूछनी थी, मगर रहने दो,
तुम को क्या पता एहसास कहाँ बाक़ी है.....
मेरे गुनाहों की…
ContinueAdded by Sarita Sinha on April 11, 2012 at 6:11pm — 15 Comments
Added by Sarita Sinha on April 6, 2012 at 2:30pm — 9 Comments
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