असली -नकली . . . .
सोच समझ कर पुष्प पर, अलि होना आसक्त ।
नकली इस मकरंद पर , प्रेम न करना व्यक्त ।।
गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।
सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।
गुलशन सूने से लगें, भौंरे लगें उदास ।
नकली फूलों से भला, कब बुझती है प्यास ।।
मरीचिका सी जिन्दगी, यहाँ प्यास ही प्यास ।
पतझड़ के परिधान में, मुस्काता मधुमास ।।
अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।
नकली फूलों का नहीं, मुरझाता संसार ।।
सुशील सरना/ 2-10-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बढ़िया दोहे हैं आदरणीय सुशील सरना जी। ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए।
नकली = नक़ली, जिन्दगी = ज़िन्दगी, कागज = काग़ज़।
सादर।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने , बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय सुशील कुमार सरना जी आदाब, वाह... क्या दर्शन है!
नकली फूलों के संदर्भ में शानदार और मनमोहक दोहे रचने के लिए बधाई स्वीकार करें।
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