बह्र : 22 22 22 22
जब तक पैसे को पूजोगे
चोर लुटेरे को पूजोगे
जल्दी सोकर सुबह उठोगे
तभी सवेरे को पूजोगे
खोलो अपनी आँखें वरना
सदा अँधेरे को पूजोगे
नहीं पढ़ोगे वीर भगत को
तुम बस पुतले को पूजोगे
ईश्वर जाने कब से मृत है
कब तक मुर्दे को पूजोगे
अब तो जान चुके हो सच तुम
कब तक झुट्टे को पूजोगे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जयनित जी
आदरणीय धर्मेन्द जी, उम्दा ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई आपको।
शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब। आप सही कह रहे हैं ये मिसरा बदलना पड़ेगा।
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें , आपकी ग़ज़ल के क़वाफ़ी दुरुस्त हैं I
'नहीं पढ़ोगे भगतसिंह को' इस मिसरे पर ध्यान दें,मात्राएँ पूरी हैं लेकिन गेयता नहीं है I
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी साहब आप सही कह रहे हैं ये मिसरा बदलना पड़ेगा
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।
'मृत्यु हो चुकी है ईश्वर की' यह मिसरा रवानी में नहीं है, मात्रा गणना आपने कैसे की?
आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, यहाँ ए की मात्रा को हटाने के बाद पैस और लुटेर निरर्थक शब्द बचते हैं इसलिए ईता का दोष नहीं बनता| लुटेरे का ऐरे निकाल दें तब भी पैस तो निरर्थक ही रहेगा इसलिए भी ईता नहीं बनता| अर्थात यहाँ किसी प्रकार से ईता नहीं बनता| आप कुछ और बताना चाहते हैं तो स्पष्ट करें|
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