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ग़ज़ल -दिल लगाना छोड़ दें

2122 2122 2122 212

1

अश्क पीना छोड़ दें हम दिल लगाना छोड़ दें 

एक उनकी मुस्कुराहट पर ज़माना छोड़ दें

2

हर किसी के आप दिल में आना जाना छोड़ दें

इश़्क को सौदा समझ क़ीमत लगाना छोड़ दें

3

कह दें अपनी चूड़ियों से खनखनाना छोड़ दें 

दिल के रिसते ज़ख़्मों पर यूँ सरसराना छोड़ दें

4

लग गए हों ताले ख़ामोशी के जिनके होठों पर 

उनसे उम्मीदें सदाओं की लगाना छोड़ दें 

5

कब तलक फिरते रहेंगे आप ग़म के सहरा में 

इस सराब-ए-दिल से अब तो धोका खाना छोड़ दें

6

चाहते हैं शिद्दत-ए-एहसास-ए-गम कम करना तो 

रात दिन यूँ आप अश्कों को बहाना छोड़ दें

7

कान के कच्चे जहाँ के सब दर-ओ-दीवार हों

उस जगह को राज़-दाँ अपना बनाना छोड़ दें

8

गर्दिश-ए-अय्याम आती ही है जाने के लिए 

आप इसके डर से 'निर्मल' सर झुकाना छोड़ दें 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Rachna Bhatia on April 10, 2022 at 12:45pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' भाई आपने सहीह कहा सर् की इस्लाह के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गई है।

आपका हार्दिक आभार।

Comment by Rachna Bhatia on April 10, 2022 at 12:43pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी नमस्कार। आपने बिल्कुल सही कहा आदरणीय समर कबीर सर् के द्वारा दी गई इस्लाह के बाद उसमें न केवल और सुधार की गुंजाइश नहीं रहती बल्कि ग़ज़ल भी ग़ज़ल कहलाने लाइक़ हो जाती है। इसके लिए हम सब समर कबीर सर् के बहुत बहुत आभारी हैं।

आदरणीय ग़ज़ल में रह गई त्रुटि को इंगित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद,पर मुझे इस शे'र में एब दिखाई नहीं दे रहा है। कृपया आप इसे थोड़ा बारीकी से समझाएँ व शे'र ठीक करने के लिए कुछ सुझाव दें।

सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2022 at 6:45am

आ. रचना बहन सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। भाई समर जी के सुझाव से यह और निखर गयी है । हार्दिक बधाई।

Comment by Chetan Prakash on April 9, 2022 at 1:40pm

नमन, आदरणीया, अच्छी  ग़ज़ल हुई हुई है, और श्रद्धेय  समर कबीर साहब  ने भी बहुत अच्छे  से बारीकियाँ  सोदाहरण  समझाईं हैं ! फिर  भी ' कान के कच्चे  जहाँ सब दर ओ दीवार  हों' मुझे लगता है, उक्त   ऊला मिसरे  में एब-ए-तनाफुर का दोष  है, देखिएगा,  सादर  !

Comment by Rachna Bhatia on April 8, 2022 at 8:18pm

आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी, नमस्कार। आपने बिल्कुल सही कहा सर् की इस्लाह के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गई है।

हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 7, 2022 at 5:25pm

आदरणीय रचना जी बाऊजी ने समुचित सुझाव दिए हैं, इसलिए इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर और कहने की आवश्यकता नहीं है। उनके सुझावों को अमल में लायें.... लेखनी में निखार आएगा।

Comment by Rachna Bhatia on April 6, 2022 at 3:13pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर्, आपने बेहतरीन इस्लाह दी जिस कारण ग़ज़ल अच्छी हो गई।आपका बेहद शुक्रिय:।

Comment by Samar kabeer on April 6, 2022 at 2:55pm

मुह्तारमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I 

'रात दिन गर आप अश्कों को बहाना छोड़ दें'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा :-

'रात दिन यूँ आप अश्कों को बहाना छोड़ दें '

'कान की कच्ची जहाँ की हर दर ओ दीवार हो

उस जगह को राज़-दाँ अपना बनाना छोड़ दें'

इस शे`र को उचित लगे तो यूँ कहें :-

'कान के कच्चे जहाँ के सब दर-ओ-दीवार हों 

उस जगह को राज़ दाँ अपना बनाना छोड़ दें'

'गर्दिश-ए-अय्याम आतीं हीं हैं जाने के लिए'

आप उनके डर से "निर्मल" सर झुकाना छोड़ दें'

इस शे`र को यूँ कहें :-

गर्दिश-ए-अय्याम आती ही है जाने के लिए 

आप इसके डर से 'निर्मल' सर झुकाना छोड़ दें '

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