रणभेरी बजने से पहले अच्छा है तुम घर जाओ
वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ
कितनी ही आशाएं तुमसे लगी हुई है, टूटेंगीं
कितनी ही तकदीरें तुमसे जुड़ी हुई हैं, रूठेगीं
तेरे पीछे मुड़ जाने से कितने सिर झुक जाएंगे
कितने प्राण कलंकित होंगे कितने कल रुक जाएंगे
उतर गए हो बीच समर तो कौशल भी दिखला जाओ
हिम्मत के बादल बन कर तुम विपदाओं पर छा जाओ
तप कर और प्रबल बनकर तुम शोलों बीच सँवर जाओ
वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ
आशीष यादव
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्री Chetan Prakash सर प्रणाम,
सर मैंने केवल अपने मनोभावों को कलमबद्ध करने की कोशिश की है। मुझे 'नगमा' इत्यादि के बारे में जानकारी नहीं है।
आपसे प्रार्थना है कि कृपया उचित मार्गदर्शन करें।
आदरणीय श्री Aazi Tamaam सर, बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरणीय श्री लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर सर कविता पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जनाब आशीष जी आदाब, रचना का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
ये रचना किस विधा में है? बताने का कष्ट करें ।
सुंदर रचना है सहृदय बधाई आ आशीष जी
आ. भाई आशीष जी, वीररस की सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई.
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