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कब रुका जो आज रुकेगा, वक़्त है ये तो चलता रहेगा

वक्त पर हकूमत कर सके ऐसा, नहीं जन्मा जो अब जन्मेगा ||

 

संग में इसके हँसना-रोना, सबको संग में इसके चलना पड़ेगा

अटल होकर चल रहा जो, उसे, वक़्त के आगे झुकना पड़ेगा ||

 

बेदर्दी ये वक़्त बड़ा है, घाव-क्लेश तो देता रहेगा

खुशियों के पल छोटे करके, दशा पर तेरी हँसता रहेगा ||

 

आस बांधता, विश्वास दिलाता, विश्वासघात भी करता रहेगा

गिरगिट जैसा रूप बदल कर, अनुभव खट्टे-मीठे देता रहेगा ||

 

धरी रह जायेगी तेरी कमाई भी, सब रह जाएंगे रोते-बिलखते

कोई, कुछ भी नहीं कर पायेगा, जब वक़्त तुझे ले जायेगा ||

 

सच भी यही है, वक्त के आगे चलती कहाँ है

चलना ही तो इसकी गति है, बिन अवरोध ये बढ़ता रहेगा ||

 

वक़्त का चक्र तो चलता रहेगा, धूप-छांव भी करता रहेगा

आज तेरा तो कल मेरा है, वक़्त भी एक सा नहीं रहेगा||

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 5, 2020 at 7:38am

आ. भाई फूल सिंह जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on December 4, 2020 at 5:18pm

जनाब फूल सिंह जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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