For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूखी हुई है आज मगर इक नदी है तू...( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

सूखी हुई है आज मगर इक नदी है तू
मैं जानता हूँ रेत के नीचे दबी है तू

मरना है एक दिन ये नई बात भी नहीं
जी लूँ ऐ ज़िंदगी तुझे जितनी बची है तू

आँखों को चुभ रही है अभी तेरी रौशनी
काँटा समझ रहा था मगर फुलझड़ी है तू

ऐ मौत कोई दूसरा दरवाजा खटखटा
आवाज़ मेरे दर पे ही क्यों दे रही है तू

हर बार ये लगा है तुझे जानता हूँ मैं
महसूस भी हुआ है कभी अजनबी है तू

आज़ाद हो रही हैं ये शह्रों की लड़कियाँ
खूँटे से गाँव में तो अभी तक बँधी है तू

साबित किया है तूने सुलह कर के बारहा
हर बार मैं ग़लत हूँ हमेशा सही है तू

* मौलिक एवं अप्रकाशित.

Views: 1084

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on September 29, 2020 at 11:23pm

प्रिय रुपम
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on September 29, 2020 at 11:22pm

बहन डिंपल शर्मा जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on September 29, 2020 at 11:17pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.सुझाव पर तामील शीघ्र होगी मुुुहतरम.

Comment by सालिक गणवीर on September 29, 2020 at 11:13pm

आदरणीय निलेश 'नूर' साहब
सादर अभिवादन
ग़ज़ल फर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार. कमियों पर ध्यानाकर्षित करने के लिये अलग से शुक्रिय:.सभी गुणीजनों की इस्लाह के बाद सारे सुझावों पर तामील संभावित है. एक और शैर कहा है..
हर बार ये लगा कि तुझे जानता हूँ मैं
महसूस क्यों हुआ है अभी अजनबी है तू
सादर.टिप्पणी अपेक्षित है.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 29, 2020 at 8:00pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई । शेष छिटपुट कमियों के बार नीलेश भाई कह ही चुके हैं । सादर..।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 29, 2020 at 9:32am

आ. सालिक साहब,

अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई।

चौथे शेर में मिरे लिख कर बहर तोड़ दी आपने।

पाँचवें शेर का मतलब समझ नहीं सका मैं।

अन्तिम शेर में तुम और तू आने से शुतुरगुरबा हो रहा है।

देखियेगा।

सादर

Comment by Chetan Prakash on September 29, 2020 at 7:01am

बढिया साफ सुथरी गज़ल हुई है, बंधुवर सालिक गणवीर महोदय, नाचीज़ की बधाई स्वीकार करें। बस एक जगह तीसरे शेर के सानी मिसरे के पहले हिस्से आप मुझे चूकते दिखाई दिए,
आवाज़ "मिरे दर पे" ( 1 2 2 ), मेरी अल्प बुद्धि से "मेरे दर पे" होना चाहिए। इति

Comment by Dimple Sharma on September 29, 2020 at 5:49am

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते, ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service