For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझे आज तुमसे कुछ कहना है

प्रिय, मुझे आज तुमसे कुछ कहना है ...

जानता है उल्लसित मन, मानता है मन

तुम बहुत, बहुत प्यार करती हो मुझसे

गोधूली-संध्या समय तुम्हारा अक्सर चले आना, 

गलें में बाहें, गालों पर चुम्बन, अपनत्व जताना

झंकृत हो उठता है मधुरतम पुरस्कृत मन-प्राण

मैं बैठा सोचता, सपने में भी कोई इतना अपना

आत्म-मंदिर में अपरिसीम मधुर संगीत बना

निज का साक्षात प्रतिबिम्ब बन सकता है कैसे

पलता है मेरी आँखों में प्रिय, यह प्यार तुम्हारा

फिर भी प्रिय, मुझे आज तुमसे कुछ कहना है ...

कभी दिनों-दिनों तक तुम्हारा अचानक दूर हो जाना

याद दिलाता है मुझको .. हर क्षण की क्षण-भंगुरता

आ जाता है एकाकीपन, कुछ गीलापन भी मन में

डगमगाता आत्म-विश्वास, लघु हो जाता है मेरा संसार

तीव्रतम संघर्ष भीतर, अनाश्रित-सी दयनीय दशा 

चढ़ जाता है मानो मेरी आत्मा पर भी कोई बुखार

ठेल देता हूँ मन से मैं असंतोष का भार हर बार

दे देता हूँ नाम इसे तुम्हारी "मजबूरी" का

पर यह भी सच है प्रिय कि ऐसे में मेरे भीतर

कुछ है जो टुकड़े-टुकड़े होकर बँट जाता है

मन करता है पूछ लूँ तुमसे चाहे कुछ डरते-डरते

यह जिसको मैंने नाम दिया है तुम्हारी मजबूरी का

यह वास्तव में तुम्हारी मानवीय मजबूरी है क्या ? 

या, कह दो थक गई हो तुम प्यार का पथ चलते-चलते

सोच में असामान्य बिखराव की भयानक उलझन

हृदय में छिपाए अजीब-सी कष्ट-ग्रस्त धकधक

दीवार पर टंगी कोई गहरी आत्मीय पहचान ...

तुम्हारी तस्वीर को टाँगते, उतारते, टाँगते

भीतर मि्ट्टी के ढेले-सा कुछ अँश-अँश हो जाता है

इसीलिए प्रिय, मुझे आज तुमसे कुछ कहना है

दु:स्वप्न के आवेश से घबराया सोचता रहता हूँ मैं

कहीं ऐसा न हो कि इक दिन तुम न आओ लौट कर

और हृदय में उमड़ रहे स्नेह के समुद्र को संभालते

मैं बैठा ठगता रहूँ शेष जीवन भर अंत तक मन को

कि यह भी शायद कोई तुम्हारी मजबूरी ही होगी

प्रिय, क्षमाप्रार्थी हूँ, शायद तुम्हारे दिल को दुखाया

निर्जीव पत्तों में भी छटपटाहट तो होती है

जानती हो न छटपटाहट में सोचना मेरी आदत है

दोष मेरा है, तुम्हारा कहीं कोई दोष नहीं है

जानता हूँ प्रिय, बहुत प्यार करती हो तुम मुझसे

मन न माना, मन को कब से यह तुमसे कहना था

                     ---------

                    

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 449

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 1, 2020 at 8:02pm

आपका हार्दिक आभार मेरे प्रिय मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2020 at 1:54pm

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है , हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on March 1, 2020 at 12:55pm

आपका हार्दिक आभार मेरे भाई समर कबीर जी।

Comment by Samar kabeer on February 28, 2020 at 11:37am

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, बहुत अच्छी रचना हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
4 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
4 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
4 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
5 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
10 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service