For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समय के साय

समय पास आकर, बहुत पास 

कोई भूल-सुधार न सोचे

अकल्पित एकान्तों में सरक जाए

झटकारते कुछ धूमैले साय अपने 

गहरे,  कहीं गहरे बीच छोड़ जाए

कुछ ऐसे घबराय बोझिल साय 

भरमाय मन में कटे-पिटे गुमसुम

सुनसान कमरों में कोई इस कोने

कोई उस कोने आसन बिछाए 

मानो कोई पथिक युग से थका हारा

राह चलते रुक जाए और होले-होले

कंधे से समय की गठरी उतार

भावविभोर, अभिलषित गाँठें खोले

कोई एक साया, एक  साया "विशेष"

पूज्य-पुण्य अमोल-रत्न हो मानो

आने वाला हर नया नाता संवेदित

उस अमुक विशेष साय की

प्रदक्षिणा करते नहीं थकता

और हम नए हर रिश्ते की धड़कन में

आवाज़ में, चाल में, विचार में 

"विशेष" पुराने उस साय की पदचाप सुनते 

 जीते हैं आशंकाहत, रगों में बरसों चौकन्ने 

वह अमुक साया हर नए साय का तीर्थ बना

भविष्य की संभावनाओं को हमसे ठगता

वास्तव में "कैंसर"-सा रोग बन जाता है

बढ़ते-बढ़ते अनियंत्रित वह "कैंसर"

अब सारे शरीर में फैला

हँसता जाता है, हँसता ही जाता है

अनबूझे उपहास में दानव-सी हँसी

नया रिश्ता ऐसे में मानो घुट मरते

खिलने से पहले छोड़ देता है दम

रह जाता है भीतर-बाहर अनेकानेक

असीम असहनीयअकेलेपन का मातम

झुर्रियों में उलझी मस्तक-रेखाएँ

सफ़ेद हो रहे बाल

खाली हथेली पर मिटती जुड़ती-कटती

सलवटों भरी अधटूटी लकीरें

अपना सब कुछ हार कर अंत में

ज़िन्दगी से दूर हो जाती है अपनी ही पहचान

यादें हमारी कि जैसे कोई रेलगाड़ी के डब्बे 

असीम अनिश्चितता का गंभीर भान लिए 

रेंगती पटरियों से छूटे, धड़ाम-धड़ाम गिरे

समय के साय में उस पल

समाप्त हो जाती है ’हमारी’ सृष्टि

बंद कर लेती है ज़िन्दगी 

वेदना के द्वार भी

खोजने को अब कुछ बाकी नहीं

                --------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 534

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 5, 2020 at 4:51pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार, मित्र लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2020 at 5:01am

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on February 2, 2020 at 11:09am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, प्रिय भाई समर कबीर जी।

Comment by Samar kabeer on January 31, 2020 at 3:03pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
13 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
14 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service