For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1

बिन जाने ह्रदय की पीड़ा पिया , दिल तोड़ के ऐसे जाते हो
मैं बैठी राह को तकती यहाँ, मुह मोड़ के ऐसे जाते हो
क्यूँ रूठे हो जरा हमसे कहो, बिन बात के कैसे जानूं मैं
प्रिय मेरे साथ में तुम थे चले, अब छोड़ के ऐसे जाते हो

2

धरा रंगीन लगती है खिलें जब फूल बगिया में
यही संगीन लगती है चुभें जब शूल बगिया में
गुलाबी ये छटा तुम देख के यूँ फस नहीं जाना
छलावे के अलावा कुछ नहीं मौसूल बगिया में

Views: 378

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 3, 2012 at 10:30am

बहुत बढ़िया

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 9:20pm

दोनों ही बढ़िया मुक्तक. बधाई संदीप जी.

Comment by Abhinav Arun on May 26, 2012 at 2:59pm

पढ़ कर मन उपवन बाग़  बाग़  हो गया हार्दिक बधाई आपको दोनों मुक्तक बहुत प्रभावी है !!

Comment by आशीष यादव on May 26, 2012 at 9:35am

दोनो मुक्तक शानदार है।
बधाई स्वीकारें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 25, 2012 at 11:39pm

क्यूँ रूठे हो जरा हमसे कहो, बिन बात के कैसे जानूं मैं
प्रिय मेरे साथ में तुम थे चले, अब छोड़ के ऐसे जाते हो

सुन्दर ..गुनगुनाने को मन करता है ....अब तो बोल भी दो ....भ्रमर ५ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 25, 2012 at 1:22pm

सुन्दर प्रवाहयुक्त मुक्तक 

Comment by Yogi Saraswat on May 25, 2012 at 11:48am

धरा रंगीन लगती है खिलें जब फूल बगिया में
यही संगीन लगती है चुभें जब शूल बगिया में
गुलाबी ये छटा तुम देख के यूँ फस नहीं जाना
छलावे के अलावा कुछ नहीं मौसूल बगिया में

बहुत ही बढ़िया पंक्तियाँ !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 24, 2012 at 5:41pm

 आदरणीय संदीप  जी, सादर 

दूसरा पहले पे भारी 
पहला दूसरे पे भारी 
कैसे अलग करून इनको 
आपके लेखन पे वारी
बधाई. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 24, 2012 at 5:08pm

वाह वाह, क्या बात है, दोनों मुक्तक कमाल के हैं, बहुत ही सुन्दर प्रवाह, बधाई स्वीकार हो संदीप जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service