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SANDEEP KUMAR PATEL's Blog – July 2012 Archive (34)

कह मुकरियाँ

कह मुकरियाँ



एक प्रयास किया है मुकरियाँ लिखने का दोस्तों आशा करता हूँ मार्गदर्शन मिलेगा



जब आती है नए ख्वाब दिखाती है

फिर अपनी बात से ही मुकर जाती है

उसको होती नहीं फिर हमारी दरकार

क्या मित्र सजनी ??? ना मित्र सरकार



जब आती है कली कली खिल जाती है

भंवरों के गुन्जन को गती मिल जाती है

उसके आने से मिल जाए दिल को करार

क्या मित्र सजनी ??? ना मित्र बहार



उसके बिना सब फीका सा लगता है

छप्पन भोग भी नीका न…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 1:16pm — 7 Comments

किरण

ढोल- नगाड़े

हाथी- घोड़े

आतिशबाजी

इतने रंग

सब हैं संग

कभी पालकी लिए

कभी रणभूमि

कभी रंगभूमि

चले जा रहे हैं

भागे जा रहे…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 10:59am — 4 Comments

"मौन एक सशक्त अभिव्यक्ति है "

"मौन एक सशक्त अभिव्यक्ति है "



लब खामोश हैं


कुछ कम्पन है

कहना चाह रहे हैं

पर खामोश हैं

फिर भी कोई तो है

जो कर रहा है बात

चुप चुप…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 6:30pm — 3 Comments

नाखून

कभी अपने नाखून देखे हैं

अपने अल्फाजों के नाखून

हाँ यही बहुत पैने हैं तीखे हैं

चुभते हैं

ज़रा तराश लो इन्हें

इनकी खरोंचों से चुभन होती है

ये विदीर्ण कर जाते हैं

मेरे मोम से कोमल ह्रदय को…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 2:59pm — 9 Comments

चिंगारी

सब जानते हैं

क्या चल रहा है

कैसे चल रहा है

हल भी है

लेकिन चुप है

क्यूंकि इनके दिलों ने

धडकना छोड़ दिया है

वो केवल फड-फडाता है

घुटन पसंद हैं इन्हें…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 10:00am — 12 Comments

==========दोहे =========

मित्रों दोहों के रूप में कुछ अपने जीवन के अनुभव और विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ अपने विचार अवश्य रखें प्रसन्नता होगी



==========दोहे =========



पीर पराई देख के , नैनन नीर बहाय

दया जीव पे जो करे, वो मानव कहलाय



सब धर्मों का एक ही, तीरथ भारत देश

सबको देता ये शरण, कैसा भी हो वेश



मोक्ष आखिरी लक्ष्य है, हर मानव का दीप

मोती पाना कठिन है, गहरे सागर सीप



दीप जलाओ ज्ञान का, मन से मन का मेल

बाती जिसमें शास्त्र की, रीतों का हो…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 8:38pm — 9 Comments

ये युवा है

देखो

तूफ़ान उठ रहा है

सागर मचल रहा है

लहरें उठ रही हैं

आसमान छू लेने को

चल रहा अपनी धुन में

दुनिया से बेखबर

स्वतंत्र

बाधाओं को लांघते…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 6:23pm — 6 Comments

मैं वो हिंद औ वो वतन ढूंढता हूँ

मैं बंजर जमीं पे चमन ढूंढता हूँ 

यूँ दिल को जलाते जलन ढूंढता हूँ



हैं हर-सू धमाके डराते दिलों को

है आतंक फिर भी अमन ढूंढता हूँ



था इतिहास में जो परिंदा सुनहरा  

मैं वो हिंद औ वो वतन ढूंढता हूँ



जो लिपटे तिरंगा बदन से सुकूँ लूं

वो दो गज जमीं वो कफ़न ढूंढता हूँ



जो पैसा कमाना अभी सीखते हैं

मैं उनमे कलामो रमन ढूंढता हूँ



है अब की सियासत बुरी "दीप"…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 3:00pm — 7 Comments

उनको ही तकते रह गए

उठता यूँ हिजाब देख के

उनको ही तकते रह गए



काला तिल रुखसार पर

लेता जाँ है जाने जिगर

दिल पे है कैसा ये असर

न रही दुनिया की खबर 



रंगत औ शबाब देख के

उनको ही तकते रह गए



लगती है जैसे गुल बदन

उठती है मीठी सी चुभन

धरती है या है वो गगन

सीने में चाहत की अगन



होंठों में गुलाब देख के

उनको की तकते रह गए



गहरा वो कोई सागर

या कल कल सा कोई निर्झर…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 11:44am — 6 Comments

ज्ञान का प्रकाश दे जो दीप वो जलाइए

देश हित वाली बात हिल-मिल सुनाइए
ज्ञान का प्रकाश दे जो दीप वो जलाइए

देश पर विदेशियों की रीत न चलाइए
मान सम्मान अपने देश का बचाइये

अपना संस्कारों वाला देश नव बनाइये
रीत औ रिवाजों वाले गीत अब गाइए

छोटों को गरीबों को कभी मत सताइए
हो सके तो उनको भी गले से लगाइए

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2012 at 3:00pm — 8 Comments

"स्वप्न"

"स्वप्न"



सूदखोर नहीं मानते

आते हैं हाथ जोड़ के

देते हैं कर्ज

चंद दिनों के बाद

दोगुना वसूल करते हैं

सूद

ले जाते हैं लूट के सारे सुन्दर स्वप्न

छाती फुला के अकड़…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 10, 2012 at 7:07pm — 6 Comments

"दीपदान"

रात आई

काली चुनरी ओढ़ के

नीले व्योम को ढँक लिया

घुप्प अँधेरा,

सन्नाटे बातें करते हैं

हवाओं से

दूर से आती हैं कुछ आवाजें

डरावनी सी भयानक सी

कानों में खुसफुसाती…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 6, 2012 at 3:30pm — 5 Comments

वक़्त-ए-फुरकत

मरासिम उनसे था मेरा सूफियाना सा

गा भी लेते थे हम

सुना भी लेते थे हम

इबादत उनकी किया करते थे

खुदा से रूठ जाते थे

मना भी लेते थे हम

वक़्त-ए-फुरकत

उनसे वादा किया था

एक कतरा न गिरेगा कभी

ये आब-ए-जमजम

मेरी आँखों से

तो पाकीजा आब से भरे ये प्याले

रोज भरते तो हैं

पर छलकते कभी नहीं

और लोग हमें संगदिल सनम कहते हैं

ये कैसा वादा लेकर वो गए हैं

उस दिन से लेकर आज तक…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 2, 2012 at 5:37pm — 5 Comments

ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो

हुश्न को माह कहते हो कमाल करते हो

आदमी को खुदा बुत को जमाल करते हो



चश्म में डूब कर उनका जबाब देते हैं

मौन पलकें झुका के जो सवाल करते हो



नोट में वोट दे ईमान बेच कर तुम ही

बात सुनते नहीं नेता बबाल करते हो



इश्क की आग में सूखा जला हुआ तन्हा

तुम उसे दीद दे ताज़ा निहाल करते हो



है हकीकत जमाने की तुझे पता लेकिन

ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो



छोड़ के हाथ जिसने तोड़ दिया हर रिश्ता

साथ…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 1, 2012 at 3:38pm — 6 Comments

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