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मित्रों दोहों के रूप में कुछ अपने जीवन के अनुभव और विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ अपने विचार अवश्य रखें प्रसन्नता होगी

==========दोहे =========

पीर पराई देख के , नैनन नीर बहाय
दया जीव पे जो करे, वो मानव कहलाय

सब धर्मों का एक ही, तीरथ भारत देश
सबको देता ये शरण, कैसा भी हो वेश

मोक्ष आखिरी लक्ष्य है, हर मानव का दीप
मोती पाना कठिन है, गहरे सागर सीप

दीप जलाओ ज्ञान का, मन से मन का मेल
बाती जिसमें शास्त्र की, रीतों का हो तेल

मधु पाता श्रम जो करे, उसको मिलता मान
श्रम ही उत्तम मार्ग है,  श्रम का हो सम्मान

बादल बरसे हर बरस, फिर भी सूखा होय
संचय गुण जिसका नहीं, पटक पटक सिर रोय

ह्रदय द्वार को बंद कर, बाहर दीप जलाय
ब्रह्मा उसका क्या करे, कौन उसे समझाय

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by Dr.Prachi Singh on July 14, 2012 at 7:14pm

इन सुन्दर दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई संदीप जी

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 13, 2012 at 11:03pm

वाह भाई संदीप आपका ये सुफियानापन दोहों में सूफी संतो की आत्मा प्रवेश कर गई है...... जय हो ....बहुत सुन्दर

बधाई बधाई बधाई बधाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 3:41pm

आदरणीय आशीष जी, अलबेला सर जी, भ्रमर जी
आदरणीया रेखा जी , राजेश कुमारी जी , दीप्ति जी
आप सभी ने दोहे पसंद किये मेरा लिखना सफल हो गया
आपका अनुपम स्नेह मिला मेरे लेखन को इसके लिए आपका आभारी हूँ
ऐसे ही मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन करते रहिये

Comment by Rekha Joshi on July 13, 2012 at 3:05pm

सदीप जी 

मोक्ष आखिरी लक्ष्य है, हर मानव का दीप 
मोती पाना कठिन है, गहरे सागर सीप ,एक से बढ़ कर एक बढ़िया दोहे ,बहुत बहुत बधाई  
Comment by deepti sharma on July 12, 2012 at 10:53pm

बहुत ही सुंदर दोहे भा गये बहुत बधाई 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 12, 2012 at 10:33pm

पीर पराई देख के , नैनन नीर बहाय
दया जीव पे जो करे, वो मानव कहलाय

मधु पाता श्रम जो करे, उसको मिलता मान 
श्रम ही उत्तम मार्ग है,  श्रम का हो सम्मान 

प्रिय संदीप जी अति उत्तम ...ऐसा हो जाए तो जग बदल ही जाए ....प्यारी रचना ..दोहों में जान आ गयी 

 ...बधाई 
भ्रमर ५  .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2012 at 10:14pm

बहुत सुन्दर दोहे दीप जी एक से बढ़कर एक 

Comment by Albela Khatri on July 12, 2012 at 9:43pm

गज़ब की दोहावली...........
अनुपम दोहावली
उत्तम दोहावली

बादल बरसे हर बरस, फिर भी सूखा होय
संचय गुण जिसका नहीं, पटक पटक सिर रोय

___वाह वाह संदीप पटेल दीप जी...बधाई !

Comment by आशीष यादव on July 12, 2012 at 9:20pm

कथ्य एवँ शिल्प, दोनो प्रकार से उत्तम दोहे।
बधाई स्वीकार करें।

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