For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

हर बार नई बात निकल आती है

बात यहीं खत्म होती तो और बात थी 

यहाँ तो हर बात में नई बात निकल आती है 

यूँ लगता है जैसे कि ये कोई बरगद का पेड़ है 

जहां से भी खोदो एक नई साख निकल आती है 

उलझने ऐसी है कि कोई छोड़ मिलती ही नहीं 

एक को खींचो तो संग मे दो चार चली…

Continue

Added by AMAN SINHA on February 26, 2024 at 11:30am — No Comments

दोहा त्रयी .....

दोहा त्रयी. . . . .

जीवन में ऐश्वर्य के, साधन हुए अनेक ।
अर्थ दौड़ में खो गया, मानव धर्म विवेक ।।

चले न कोई साथ जब, साथ निभाता नाथ ।
संचित कितना भी करो, खाली रहते हाथ ।।

गौण हुईं अनुभूतियाँ, क्षीण हुए सम्बंध ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।

सुशील सरना / 23-2-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 22, 2024 at 1:31pm — 2 Comments

दोहा त्रयी. . . . . .

दोहा त्रयी. . . .

मन के मधुबन से हुई , लुप्त नेह की गंध ।
काई देती स्वार्थ की, रिश्तों में दुर्गन्ध ।।

बदल गया परिवार में, रिश्तों का अब रूप ।
तीखी लगती स्वार्थ की,  अब आँगन में धूप ।।

अर्थ रार में खो गए, रिश्ते सारे खास ।
धन वैभव ने भर दिया, जीवन मैं संत्रास ।।

सुशील सरना / 11-2-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 11, 2024 at 2:06pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . .

दोहा सप्तक. . . . 

बन कर ख़याल रह गया, जीवन का हर मोड़ ।

अपने सब कब चल दिये, तनहा हमको छोड़ ।1।

बदला जीवन आज का, बदली जीवन सोच ।

एक पेट भरपेट है, क्षुधित कहीं पर चोंच ।2।

पर धन की है लालसा, कुत्सित घृणित विचार ।

जीवन को मत दीजिए, दागदार  उपहार ।3।

रह -रह कर मन मीत का,आता मधुर ख़याल ।

दिल की यह बेचैनियाँ, बदलें जीवन चाल ।4।

वैसा होता आचरण, जैसी होती सोच ।

रोटी तब अच्छी बने,जब आटे में…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 6, 2024 at 2:19pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . नैन

दोहा पंचक. . . नैन

नैन द्वन्द्व में नैन ही , गए नैन से हार ।

नैनों को अच्छी लगे, नैनों से  तकरार ।।

नैनों से तकरार का, लगे  अजब आनन्द ।

हृदय पृष्ठ पर प्रीत के, अंकित होते छन्द ।।

नैनों के संवाद की, अद्भुत होती नाद ।

नैन सुनें बस नैन के, अनबोले संवाद ।।

नैनों से होती सदा, मौन सुरों में बात ।

नैनों की मनुहार में, बीते सारी रात ।।

नैनों के संसार की, किसने पायी थाह ।

नैन तीर पर हो सदा, लक्षित…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 3, 2024 at 1:53pm — 2 Comments

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

121 22 121 22 121 22 121 22

हज़ार लोगों से दोस्ती की हज़ार शिकवे गिले निभाये।

किसी ने लेकिन हमें न समझा सभी से हमने फरेब खाये।



हमारे जीवन में अब तुम्हारी जगह तो कोई नहीं है लेकिन,

दुआ में होठों से फिर ये निकला खुदा तुम्हारे दरस दिखाये।

किसी के दिल में बसे रहो तुम,हमारे दिल को मसलने वाले,

यही तकाज़ा है दोस्ती का फरेब खाकर करे दुआये।

हमारी आँखें फ़टी रही पर पलट के तुमने कभी न देखा,

अजीब उलझन है जिंदगी की न याद आये न भूल…

Continue

Added by मनोज अहसास on February 2, 2024 at 8:40pm — No Comments

धूम कोहरा

धूम कोहरा

उषा अवस्थी

धूम युक्त कोहरा सघन

मचा हुआ कोहराम 

किस आयुध औ कवच से

जीतें यह संग्राम?

एक नहीं, अनगिन बने

कारण, होती वृद्धि

रोके से रुकता नहीं 

क्रम,कैसे हो शुद्धि?

ढेरों टन कोयला दहन 

कर विद्युत संयंत्र

धूम्र उगलते; जो जाकर

मिले बूंद के संग

वही हवा फिर साँस से 

पहुँचे मानव अंग

स्वास्थ्य बिगाड़े,कष्ट दे

करे मनुज का…

Continue

Added by Usha Awasthi on January 31, 2024 at 8:14am — 1 Comment

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

1222   1222   1222   1222

हमारा जिक्र छोड़ो आप कुछ अपनी कहो, बोलो ।

बहुत दिन बाद आये ख़्वाब में कहदो उठो,बोलो।

फिसलते वक़्त की गिनती ने हमको कर दिया गंभीर,

मगर माँ बाप कहते हैं कि बच्चे हो हँसो, बोलो।

कहीं पर सामना हो जाए तेरा मैं रहूँ खामोश,

तेरी आँखे बहे,मुझसे कहें,तुम भी…

Continue

Added by मनोज अहसास on January 28, 2024 at 11:07pm — 3 Comments

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

1222   1222   122

1

मुझे महसूस करते थे खुशी से

मगर ये अब न कहना तुम किसी से

2

मुझे चाहत नहीं है अब किसी की

मुझे चाहत रही है पर सभी से

3

तुम्हारा नाम ही था कॉल में पर

मैं बातें कर रहा था अजनबी से

4

तनाफुर दिखता होगा शेर में अब

मैं शायद थक चुका हूँ शाइरी से

5

मैं अपने ग़म में ही मदहोश हूँ पर

हमें काफिर रिझाते मयकशी से

6

शुतुरगर्बा जबां पर आ गया है

बिठायें संतुलन कैसे सभी से

7

ये ज़ख़्मी शब्द हैं खामोश,रीते

तुझे…

Continue

Added by मनोज अहसास on January 28, 2024 at 10:05pm — No Comments

ग़ज़ल: बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम

221 2121 1221 212

बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम

अपनी ही सुर्ख़ आँख में चुभते रहे हैं हम

ये और बात है की मुकम्मल न हो सका

इक ख़त किसी के नाम जो लिखते रहे हैं हम

सबसे जरूरी काम में पीछे रहे मगर

बाक़ी हर एक बात में आगे रहे हैं हम

वैसे तो हमसे जीतना मुमकिन न था मगर

अपनी रज़ा से आप से पीछे रहे हैं हम

इक रोज़ तन्हा छोड़ गए आप तो हमें

दर्द उम्र भर ये हिज़्र का सहते रहे हैं…

Continue

Added by Aazi Tamaam on January 26, 2024 at 9:30pm — 2 Comments

26 जनवरी 2024 अमृतकाल का 75वा गणतंत्र

भले देख लो जग सारा, सबसे प्यारा देश हमारा.

कण कण में इसके अपनापन, अपना भारत  सबसे न्यारा.

गंगा यमुना सरस्वती जैसे मिल कर संगम हो जाती.

अनेकताएं विविध यहाँ, एक हो हम दम जो जाती.

प्राचीनतम संस्कृति हमारी, सबको समावेशित कर देती.

अपनी पहचान बनाए रख मा, सबको अपना कर लेती.

सदियों आक्रान्ताओं से जूझे हम, नहीं कभी मिटी हस्ती.

है अमरत्व सनातन का, बनी रही अपनी मस्ती.

कालचक्र परिवर्तन में, राजतन्त्र मिट हुआ लोकतंत्र.

अपने शाश्वत…

Continue

Added by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on January 26, 2024 at 1:00pm — 1 Comment

महाराणा संग्राम सिंह

राजपूत राजाओं को संगठित करता

एक मेवाड़ का अद्भुत शासक था

थर-थर कांपते शत्रु जिससे, वह संग्राम सिंह महाराजा था॥

 

वीरता-उदारता का समावेश था जिसमें

सिसोदिया वंश का गौरव था

विस्तार किया जो साम्राज्य का, हिंद देश का रक्षक था॥

 

सौ लड़ाइयाँ लड़ी थी जिसने

खो आँख-हाथ-पैर को बैठा था

एक छत्र के नीचे लाया राजपूतों को, शक्तिशाली ऐसा उत्तर भारत का राजा था॥

 

सतलुज से लेकर नर्मदा…

Continue

Added by PHOOL SINGH on January 23, 2024 at 2:54pm — No Comments

दोहा त्रयी. . . . सन्तान

दोहा त्रयी. . . सन्तान

सन्तानों के  बन गए  ,अपने-  अपने नीड़ ।
वृद्ध हुए माँ बाप  अब, तन्हा बाँटें पीड़ ।।

अर्थ लोभ हावी हुए, भौतिक सुख विकराल ।
क्षीण दृष्टि माँ बाप की, ढूँढे अपना लाल ।।

सन्तानों की आहटें , देखें अब माँ बाप ।
वृद्ध काल में बन गई, ममता जैसे श्राप ।।

सुशील सरना / 19-1-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on January 19, 2024 at 1:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल - ये जो खंडरों सा मकान है

11212    11212

इसी में तो मेरा जहान है

ये जो खंडरों सा मकान है

यूँ ही बोलने से बचा करें

यूँ कि तुंद-ख़ू ये ज़बान है

नया खून है वो है जोश में

अभी ज़िंदगी में उफान है

न है आसमाँ न है तू ज़मीं

तुझे ख़ुद पे कितना गुमान है

तेरी जाति क्या है बिसात क्या

तेरा ज़िस्म ख़ाक समान है

न क़ुसूर कोई 'तमाम' अब

न बची उमंग न जान है

मौलिक व अप्रकाशित

(आज़ी…

Continue

Added by Aazi Tamaam on January 18, 2024 at 4:30am — 6 Comments

दोहा त्रयी. . . शंका

दोहा त्रयी. . . शंका

शंका व्यर्थ न कीजिए, यह दुख का आधार ।
मन का छीने चैन यह , शूलों का संसार ।।

शंका का संसार में, कोई नहीं निदान ।
इसके चलते हों सदा, रिश्ते लहू लुहान ।।

शंका बैरी चैन की, नफरत का यह द्वार ।
प्यार भरे संसार में, यह भरती  अंगार ।।

सुशील सरना / 17-1-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on January 17, 2024 at 2:59pm — 2 Comments

चाहत

अनिमिष नयनों से

वसुधा को

वह गगन निहारा करता है।

शोख पवन 

छूकर अवनी को

यूँ ही इतराया करता है।

कितना बेबस!

होकर सागर…

Continue

Added by Dharmendra Kumar Yadav on January 17, 2024 at 12:49pm — 1 Comment

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य

जिसे कहते भारत का गौरव

आज उस सम्राट की गाथा कहता हूँ

स्वर्णभूमि जो सुख-समृद्धि की, महिमा उस अमरावती की गाता हूँ॥

 

विश्व का केंद्र जो विश्व की धुरी थी

जिसे उज्जयिनी नगरी कहता हूँ

कीर्ति सौरभ जिसका चहुँ ओर था फैला, उसे महाकाल से रक्षित पाता हूँ॥

 

स्वर्ण-रजत मोती-माणिक की न कमी जहाँ पर

धन-धान्य से राजकोष को भरा मैं पाता हूँ

सच्चे परितोष थे नगर के जो, उन्हें संज्ञा नवरत्न से सुशोभित पाता…

Continue

Added by PHOOL SINGH on January 15, 2024 at 10:00am — No Comments

ग़ज़ल नूर की -कुछ थे अधूरे काम सो आना पड़ा हमें.

.

कुछ थे अधूरे काम सो आना पड़ा हमें.

फ़ानी बदन में ख़ुद को समाना पड़ा हमें

.

जश्न-ए-जहान था ही नहीं अपने वास्ते

आ ही गए तो जश्न मनाना पड़ा हमें.

.

फिर जब पहेली मौत…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on January 11, 2024 at 11:53am — 6 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . .

कितनी चंचल हो गई, बूंद ओस की  आज ।

संग किरण के घास पर, नाचे बिन  आवाज ।।

मौसम आया पोष का, लगे भयंकर शीत ।

मुख से निकले प्रीत के, कंपित सुर में गीत ।।

लो धरती पर हो गया , शीत धुंध का राज ।

भानु धुंधला सा हुआ, छुपा ताप का ताज।।

हरित पर्ण पर ओस ज्यों , लगती जीवन आस।

बूँद- बूँद में कल्पना, कवि की भरे उजास ।।

शीत भगाने के लिए, जलने लगे अलाव ।

धीमी-धीमी आँच में, चली प्रेम की नाव…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 10, 2024 at 3:29pm — 3 Comments

आँख मिचौली

आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली 

बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए 

पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना 

ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं 

मैं आऊँ मैं आऊँ…

Continue

Added by AMAN SINHA on January 6, 2024 at 11:14pm — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service