For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ram shiromani pathak's Blog – November 2014 Archive (8)

बुद्ध हो गये क्या

बुद्ध हो गये क्या?
शुद्ध हो गये क्या?

मज़ाक मज़ाक में!
क्रुद्ध हो गये क्या?

उसको देख देख!
मुग्ध हो गये क्या?

सफेदी दिखी है!
दुग्ध हो गये क्या?

अपनों के पथ में!
रुद्ध हो गये क्या?
**************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 30, 2014 at 5:00pm — 12 Comments

दर्द भरी सौगात मिली है

दर्द भरी सौगात मिली है।
तनहाई की रात मिली है।।

तेरे दिल में महफूज़ रहा।
ऐसी कोई बात मिली है।।

जिनके कारण जग से लड़ता।
उनसे ही अब मात मिली है।।

उनकी प्यास बुझाता कैसे।
खारेपन की जात मिली है।।

दर्द को ही तकिया बनाया।
ग़मों से अब निजात मिली है।।
*************************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 27, 2014 at 8:55pm — 15 Comments

बेड़ा गर्क कराती क्यों हो

ठूस ठूस कर खाती क्यों हो।
मोटी हो शर्माती क्यों हो।।

एक मासूम सी पत्नी हूँ।
यूँ चुटकुला सुनाती क्यों हो।।

बच्चे डर जाते है हरदम।
इतना गन्दा गाती क्यों हो।।

मुखड़े पर लीपा पोती कर।
मुझको रोज डराती क्यों हो।

आती नहीं बोलनी इंग्लिश।
बेड़ा गर्क कराती क्यों हो।।

खुद खाने के फाकें फिर भी।
भाई को बुलवाती क्यों हो।।
**********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 1:30am — 6 Comments

एक ही सच्चा किरदार

एक ही सच्चा किरदार।
बाकी सब किरायेदार।।

खुद को इंशा कहता है।
उसके गम भी ले उधार।।

कितने भूंखे मरते हैं।
कभी तो पढ़ ले अखबार।।

बड़ा अज़ीब बन्दा है वो।
दुश्मनों से करता प्यार।।

जबसे प्यार कर लिया है ।।
लोग कहते हैं बीमार।।

तुझको फिर से नज़र लगी।
जाके कभी नज़र उतार।।
*********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:57am — 26 Comments

जाते हो तो जाओ आप

जाते हो तो जाओ आप।
अब ना और रुलाओ आप।

मुझे जीने का शौक नहीं।
अपनी खैर बताओ आप।।

अंदर कोई सो गया है।
आके उसे जगाओ आप।।

हँसना नहीं आता हो गर।
आकर कभी रुलाओ आप।।

आपका कुछ छूट गया है।
जो भी है ले जाओ आप।।
********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:46am — 6 Comments

ऐसी कोई वजह बनों

झगड़ा ना हो सुलह बनों।
ऐसी कोई वजह बनों।।

चर्चा हो सारे जग में।
ऐसी भी इक जगह बनों।।

तारीफ भी करना खूब।
पहले उसकी तरह बनों।

बेगुनाह को सजा न हो।
ऐसी कोई ज़िरह बनों।।

वाह वाह होगी तेरी।
पहले ऐसी गिरह बनों।।

-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 22, 2014 at 11:00am — 8 Comments

दोहे १८(विविधा)

मन को दुर्बल क्यों करें'क्षणिक दीन अवसाद।

आगे देखो है खड़ा'आशा का आह्लाद।।

रिश्ते भी अब हो गये'ज्यों दैनिक अखबार।

आज पढ़ लिया प्रेम से'कल फिर से बेकार।।

ह्रदय प्रेम से भर गया'देखा अनुपम प्यार।

कामदेव दुन्दुभि लिये'आये मेरे द्वार।।

खुद को भी आवाज़ दे,खुद को ज़रा पुकार!

एक रात तू भी कभी,खुद के साथ गुजार।!

आप कहो कुछ मै कहूँ'बातें हो दो चार।

तुम खुश मैं भी खुश रहूँ'बना रहेगा…

Continue

Added by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 1:58pm — 16 Comments

"थोड़ी अपनी ही ज़वानी कहो"

बच्चे सोयें वो कहानी कहो।
थोड़ी अपनी ही जवानी कहो।।

बुढ़ापे का ज़ख्म अब रफ़ू करो।
आँसुओं को फिर से पानी कहो।।

ये शहर रौशन नहीं वर्षों से।
इक शाम ही सही सुहानी कहो।।

मोहब्बत का महकता ख़त रहा।
कभी बातें वही पुरानी कहो।।

बहुत ख़त लिखे बहुत ख़त पढ़े।
अब दिल की बातें जबानी कहो।।
**********************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक। अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 2, 2014 at 10:09am — 18 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
12 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service