For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रकृति और मानव (दोहा)

घर मकान की आड़ में , बचा नहीं कुछ शेष!
मानव मद में डूबकर,बदल दिया परिवेश !!१

जल थल दूषित हो रहे, मानव फिर क्यों मौन ?
नयन खोल जब सो रहा , इसे जगाये कौन!!३

बूँद बूँद संचय करो, पौधे भी दें रोप!
स्नेह करेगी फिर धरा,झेलेगा न प्रकोप!!४

माता जिसको कह रहे , उस पर ही अन्याय !
मानव प्रतिदिन मारता, अनगिन कोड़े हाय !!५

धरती हरी भरी रहे ,रंग बिरंगे फूल!
कुछ तो ऐसा कार्य कर ,धरती के अनुकूल!! ६

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 3823

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on August 4, 2013 at 2:00pm

१.  (तुम) बूँद-बूँद संचय करो  

२.  (आप) पौधे भी दें रोप

४.  (तू) झेलेगा न प्रकोप !!

अब बताइये किसी छंद में यह किस तरह का व्याकरण है ?

आदरणीय सौरभ जी मै  आपके  कहने का अर्थ समझ गया आगे से ध्यान रखूँगा ,आपका बहुत बहुत आभार  //सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2013 at 12:24am

मेहनत हुई दीख रही है लेकिन अभी और की बहुत गुंजाइश है.  अच्छे वाले दोहे पर पहले बधाई ले --

माता जिसको कह रहे , उस पर ही अन्याय !
मानव प्रतिदिन मारता, अनगिन कोड़े हाय !!५

वाह वाह

 

बूँद बूँद संचय करो, पौधे भी दें रोप!
स्नेह करेगी फिर धरा,झेलेगा न प्रकोप!!४

यह ऐसा दोहा है जिसमें शुतुर्गुर्बा नहीं,  पाठक को बिलरमुर्गा का दोष दीखे तो अन्योक्ति न समझियेगा. यह तो अच्छा हुआ कि ऐसे दोषादि ग़ज़ल को ही मुबारक हैं, छंदों को नहीं.  :-))))

इस दोहे में  तू, तुम और आप का बेजोड़ सम्मिलन है !  इसका आप भी मजा लीजिये --  

१.  (तुम) बूँद-बूँद संचय करो  

२.  (आप) पौधे भी दें रोप

४.  (तू) झेलेगा न प्रकोप !!

अब बताइये किसी छंद में यह किस तरह का व्याकरण है ?

जय-जय

Comment by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 7:49pm

हार्दिक आभार आदरणीय विजय मिश्र  जी  //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 7:48pm

हार्दिक आभार भाई अरुण शर्मा जी  //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 7:48pm

हार्दिक आभार भाई वीनस जी //सादर 

Comment by विजय मिश्र on July 26, 2013 at 12:38pm
दोहों के भाव प्रेरणा से संतृप्त हैं और सजगता का आमंत्रण देती है . बधाई लें भाई राम शिरोमणिजी
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 26, 2013 at 11:44am

भाई राम शिरोमणि पाठक साहब दोहों पर आपका प्रयास बहुत ही सुन्दर हुआ है. इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

बूँद बूँद संचय करो, पौधे भी दें रोप!
स्नेह करेगी फिर धरा,झेलेगा न प्रकोप!!४ इस दोहे में प्रवाह बाधित प्रतीत हो रहा है कृपया पुनः देख लें. 

गुरुजन कृपया मार्गदर्शन करें.

बूँद बूँद ? क्या इसमें जगण दोष नहीं है ?

क्या ष के साथ का प्रयोग किया जा सकता है ?

Comment by वीनस केसरी on July 26, 2013 at 3:10am

बहुत खूब राम शिरोमणि भाई

Comment by ram shiromani pathak on July 24, 2013 at 9:06pm

hardik aabhar adarneeyaa annpurna ji///saadar

Comment by ram shiromani pathak on July 24, 2013 at 9:06pm

hardik aabhar adarneey bhai brijesh ji////saadar

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service