1-
लड़ती पीट तालियाँ, हज़ार देती गालियाँ,
अच्छे भले दिमाग का, दही कर देती है |
हर पल तंग करे, उल्टे पुल्टे कर्म करे,
मंगल जैसे ग्रह को, शनि कर देती है |
यदि देख लिया पैसा, पूछे नही कि है कैसा,
झट-पट बटुए को, खाली कर देती है |
भूल से भी पूछ लिया, पैसा कहाँ खर्च किया,
इतनी सी बात पे ही, ठोक पीट देती है |
२-
वाणी में मधुरता थी ,जब कहती थी स्वामी !
याद वो आते है दिन ,रुआंसा हो जाता हूँ !!
वो पुराने दिन अब, सपने से लगते है !
पति कम ज्यादा अब ,टॉमी बन जाता हूँ !!
हरदम आगे पीछे ,दुम हिलाना पड़ता है !
इतना बुरा हाल है ,नौकर कहाता हूँ !!
इतनी बड़ी सजा को ,जैसे तैसे झेल रहा !
मान बैठा नियति मै,गमो को पी जाता हूँ !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार केवल भाई ///////////
हार्दिक आभार अशोक सर/////////
आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी, सुप्रभात व सादर प्रणाम! वाह अतिसुन्दर, लाजवाब, हास्य ही हास्य। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
सुन्दर घनाक्षरियाँ भाई राम शिरोमणि जी हार्दिक बधाई स्वीकारें.
हार्दिक आभार योगी जी ///
वाणी में मधुरता थी ,जब कहती थी स्वामी !
याद वो आते है दिन ,रुआंसा हो जाता हूँ !!
वो पुराने दिन अब, सपने से लगते है !
पति कम ज्यादा अब ,टॉमी बन जाता हूँ !!
मेरा भी हाल कुछ तेरे जैसा है , अब मुझसे ज्यादा उसे प्यारा पैसा है ! हहहाआआअ गज़ब का लिखते हैं आप राम शिरोमणि जी
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