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Ram shiromani pathak's Blog – January 2015 Archive (3)

बदन पे वही लिबास भाई।

22 22 22 22
बदन पे वही लिबास भाई।
दिखता फिर से उदास भाई।।

कड़वी बातें क्यों करते हैं।
कुछ तो रखिये मिठास भाई।।

वादों की बौछार न करिये।
सच में हो इक प्रयास भाई।।

मरा भूख से फिर भी देखो।
लगते क्या क्या कयास भाई।।

चाँद तारे किस काम के जब।
दीपक से घर उजास भाई।।
********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on January 31, 2015 at 10:00am — 25 Comments

मेरे गृह भी आये दिनकर(नवगीत)

नभ के हाँथ गुलाल हो गया

मुख प्राची का लाल हो गया

मेरे गृह भी आये दिनकर



प्रथम किरण के साथ साथ ही

तम को जैसे जेल हो गया

रवि आते हैं तम जाता है

लुका छिपी का खेल हो गया

बदली के पीछे से देखो

ताँक झाँक करते रह रहकर

मेरे गृह भी आये दिनकर



मादक सी अँगड़ाई लेती

कलियों की मुस्कान देख लो

कोयल गाती है किस धुन में

उसकी प्यारी गान देख लो

ताली बजा रहें है पत्ते

झूम झूमकर नाचे तरुअर

मेरे गृह भी आये दिनकर



इन्द्र… Continue

Added by ram shiromani pathak on January 6, 2015 at 10:55am — 6 Comments

दोहा गीत (सुबह -सुबह)

देखो फिर से हो गया
मुख प्राची का लाल।

रविकर के आते हुआ सुन्दर सुखद प्रभात।
तरुअर देखो झूमते नाच रहें हैं पात।
किरणों ने कुछ यूँ मला इनके गाल गुलाल।

मंद मंद यूँ चल रही शीतल मलय बयार।
प्रकृति सुंदरी कर रही अपना भी शृंगार।।
फ़ैल गया चारो तरफ किरणों का जब जाल।

जन जीवन सुखमय हुआ,समय हुआ अनुकूल।
कोयल भी अब गा रही,खिले खिले हैं फूल।।
ठिठुरे तन को घूप ज्यों शुक को मिले रसाल।

-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on January 5, 2015 at 10:30am — 19 Comments

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