Added by ram shiromani pathak on January 31, 2015 at 10:00am — 25 Comments
Added by ram shiromani pathak on January 6, 2015 at 10:55am — 6 Comments
देखो फिर से हो गया
मुख प्राची का लाल।
रविकर के आते हुआ सुन्दर सुखद प्रभात।
तरुअर देखो झूमते नाच रहें हैं पात।
किरणों ने कुछ यूँ मला इनके गाल गुलाल।
मंद मंद यूँ चल रही शीतल मलय बयार।
प्रकृति सुंदरी कर रही अपना भी शृंगार।।
फ़ैल गया चारो तरफ किरणों का जब जाल।
जन जीवन सुखमय हुआ,समय हुआ अनुकूल।
कोयल भी अब गा रही,खिले खिले हैं फूल।।
ठिठुरे तन को घूप ज्यों शुक को मिले रसाल।
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on January 5, 2015 at 10:30am — 19 Comments
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