For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा गीत (सुबह -सुबह)

देखो फिर से हो गया
मुख प्राची का लाल।

रविकर के आते हुआ सुन्दर सुखद प्रभात।
तरुअर देखो झूमते नाच रहें हैं पात।
किरणों ने कुछ यूँ मला इनके गाल गुलाल।

मंद मंद यूँ चल रही शीतल मलय बयार।
प्रकृति सुंदरी कर रही अपना भी शृंगार।।
फ़ैल गया चारो तरफ किरणों का जब जाल।

जन जीवन सुखमय हुआ,समय हुआ अनुकूल।
कोयल भी अब गा रही,खिले खिले हैं फूल।।
ठिठुरे तन को घूप ज्यों शुक को मिले रसाल।

-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 7, 2015 at 1:16pm

आ० सौरभ जी

स्वीकार्य है i  सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2015 at 9:16pm

:-))

लीजिये .. आदरणीय, मैं भी तो वही कह रहा था.
सादर.. :-)))

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 6, 2015 at 9:13pm

आ 0 सौरभ जी

शुद्ध छान्दसिक रचनाओं में लेश मात्र परिवर्तन का यह मंच हामी नहीं है. संदर्भ लें, ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव. यहाँ किसी छन्द के मूलभूत विन्यास में लेशमात्र परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है.-------------------------------- यही मेरा  भी स्टैंड है i सादर

 नवगीत विधा पर जब काम होता है, या, विभिन्न मर्यादाओं की अन्यान्य रचनाएँ प्रस्तुत होती हैं तो छन्द की मात्र अक्षुण्णता धारण-ध्यान का विषय नहीं रहती, बल्कि शास्त्रीय छन्दों की नैसर्गिक विशालता प्रभावी दिखती-------------  बिलकुल सहमत , सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2015 at 8:06pm

आदरणीय गोपाल नारायनजी, सादर निवेदन है, आप मेरी उक्त टिप्पणी को कृपया पुनः एक बार देख जायें.
मैंभी छन्दों की गरिमा का वैसा ही हिमायती हूँ. जैसा होना चाहिये.

शास्त्रीय छन्द लेकिन असीम जल-स्रोत हैं. जिससे विभिन्न छोटी-मोटी धारायें प्राण पाती हैं, पाती रहती हैं. जितनी जिसकी औकात उतने छन्द-जल से वह प्राणवान.

छन्द के अक्षुण्ण रहने और उससे प्रभावित गीत-नवगीत रचने में सदा से अन्तर रहा है. शुद्ध छान्दसिक रचनाओं में लेश मात्र परिवर्तन का यह मंच हामी नहीं है. संदर्भ लें, ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव. यहाँ किसी छन्द के मूलभूत विन्यास में लेशमात्र परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है.
परन्तु, नवगीत विधा पर जब काम होता है, या, विभिन्न मर्यादाओं की अन्यान्य रचनाएँ प्रस्तुत होती हैं तो छन्द की मात्र अक्षुण्णता धारण-ध्यान का विषय नहीं रहती, बल्कि शास्त्रीय छन्दों की नैसर्गिक विशालता प्रभावी दिखती है.
विश्वास है, आप मेरे कहे से आश्वस्त होंगें.

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 6, 2015 at 7:16pm

आओ सौरभ जी

मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि आप मेरी टीप पर भी आते है और मार्गदर्शन करते  है i छंद के मीटर पर गीत लिखने की परंपरा नयी नहीं है पर उसे छंद के नाम से जोड़ देना  मुझे उचित नहीं लगता क्योंकि छंद अपनी शास्त्रीय  मर्यादाओ से बंधा होता है i वहाँ तो हिलना डुलना मना है i मैंने अभी आपके प्रदत्त रूपमाला छंद के आधार पर गीत लिखा है और उसमे स्वतत्रता यह ली है कि अंतरे में  चारो पद सम तुकांत  रखे है जबकि छंद में यह आजादी नहीं है पर मैं इसे रूपमाला गीत भी नहीं कह सकता नव गीत की तो कहन ही अलग है उसकी यहाँ चर्चा शायद असंगत होगी i  कुछ अत्युक्ति हुई हो तो क्षमा करेंगे i सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2015 at 5:52pm

आदरणीय गोपाल नारायनजी,
भाई राम की प्रस्तुति के शिल्प पर आपकी आपत्ति को संज्ञान लेते हुए कुछ निवेदन कर रहा हूँ.


आदरणीय, आपकी आपत्ति से यह प्रतीत हो रहा है कि आप जैसा विद्वान पाठक ’नवगीत’ जैसी विधा के प्रादुर्भाव और इसके शिल्प पर अधिक मंथन नहीं कर पाया है.


वस्तुतः, नवगीत गीत का ही प्रसंस्कारित प्रारूप है. अतः यह कई-कई प्रचलित छन्दों के टुकड़ों को लेकर ही रचा जाता रहा है.
अभी हाल ही में इसी मंच पर आदरणीय हरि वल्ल्लभ शर्मा जी का ’सार-छन्द’ पर आधारित बहुत ही सुन्दर नवगीत प्रस्तुत हुआ है.
अनेकानेक उदाहरण हैं आदरणीय.
मेरे निम्नलिखित नवगीत ’आज के बाज़ार पर’ को आप देख सकते हैं जो अंतरराष्ट्रीय पत्रिका गर्भनाल के दिसम्बर’१४ के अंक में भी स्थान पा चुका है. पिछले दिनों आयोजित नवगीत महोत्सव’१४ में भी इस गीत को सराहना मिली है. इस नवगीत का मुखड़ा दोहा छन्द का एक पद है तथा अन्तरा की सारी पंक्तियाँ उल्लाला छन्द में निबद्ध हैं.

http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:500863

आदरणीय, बहुतायत नवगीत प्रति पंक्ति १६ मात्राओं में होते हैं, जो, चौपाई छन्द का विन्यास है.
नवगीतों को उर्दू ग़ज़लों-नज़्मों की बहर पर भी बाँधा जाता है.

मेरा निवेदन यही है कि छन्दों या बहरों के ऐसे प्रयोग से उस छन्द या बहर की गरिमा में कोई कमी नहीं आती.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2015 at 5:33pm

भाई रामशिरोमणी, एक अच्छी रचना से मन प्रसन्न हुआ. ढेर सारी शुभकामनाएँ.. ढेरसारी बधाइयाँ.

वैसे दोहा-नवगीत न कह कर इसे गीत ही कहें. यह रचना नवगीत की भी श्रेणी में नहीं जायेगी. अगर यह नवगीत भी होता तो ये दोहा-नवगीत कोई सम्बोधन नहीं है. आचार्यजी ने संभवतः प्रस्तुति-कौतुक किया है.
 
लेकिन, ये श्रृंगार क्या शब्द है ? न मुझे समझ में आया है, न मैं समझना चाहूँगा. आपसब अब भी ऐसी अशुद्धियाँ बर्दाश्त करवाते हैं जिसपर इतनी-इतनी बातें हो चुकी हैं.. !
शुभ-शुभ

Comment by ram shiromani pathak on January 6, 2015 at 4:01pm
जी आदरणीय गोपाल जी।।

वैसे इसमे अन्तर व् मुखड़ा गीत के अनुरूप लिखने का प्रयास किया हैहै मैंने।।बस मात्रिक विधान दोहे का है।।यदि इसे केवल नवगीत कहे तो भी शायद सही होगा।।अनुमोदन व् सुझाव हेतु आपका आभारी हूँ आदरणीय।।सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 6, 2015 at 3:05pm

राम शिरोमणि जी

आचार्य सलिल जी ने एक नया प्रयोग किया है  और नाम दिया है-दोहा नव गीत i यह बात तो दोहा की शास्त्रीय परम्परा से हटकर है इसमें तो कोई संदेह नहीं है i पर प्रायशः प्रयोग  ही साहित्य की नयी धारा का निर्माण भी करते है तभी आज् अतुकांत कविता का वर्चस्व बन पाया है i आपने इस नवीन प्रयोग से अवगत कराया i इसके लिए आपको धन्यवाद i  संभवतः इस तरीके से गीत का शिल्प भी शास्त्रीय पद्धति पर बन सके i  सादर i अच्छी रचना के लिया आपको पुन: बधाई i

Comment by ram shiromani pathak on January 6, 2015 at 10:48am
सोमेश भाई हार्दिक आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
35 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service