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Sushil Sarna
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Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव से सन्तुष्ट हूँ सर । सादर नमन "
6 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।।छोटी-छोटी बात पर, होने लगे तलाक ।पल में टूटें आजकल, रिश्ते सारे पाक ।।छोटे से परिवार में, दो -दो हैं औलाद ।उसमें भी होते नहीं, आपस में संवाद ।।पति-पत्नी के प्रेम का, अजब हुआ है हाल ।प्रेम जाल में गैर के, दोनों हुए हलाल ।।कत्ल प्रेम में आजकल, अब होते हैं आम ।नाता जोड़ें गैर से, फिर होते बदनाम ।।धोखा ही धोखा मिले, प्रेम पाश में आज ।आडम्बर में प्रेम के, लूटें दैहिक लाज  ।प्रेम नाम पर आजकल, मुश्किल है…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Aug 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो गया है। "
Aug 13
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म से रिश्ते झूठे । मन में भोग-विलास, आचरण दिखें अनूठे । कर्मों के परिणाम , देख फिर हरदम रोते । करें न मन को शुद्ध , गंग में बस तन धोते ।सुशील सरना / 10-8-25मौलिक एवं अप्रकाशित See More
Aug 13
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार । ऐसे मार्गदर्शन ही सृजन को पुष्ट करते हैं । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Aug 12

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी।    इस जग में उद्धार , धर्म से रिश्ते झूठे ।मन में भोग-विलास, आचरण रखें अनूठे .....  दिखें अनूठे करना भाव को तार्किक रूप…"
Aug 12
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म से रिश्ते झूठे । मन में भोग-विलास, आचरण दिखें अनूठे । कर्मों के परिणाम , देख फिर हरदम रोते । करें न मन को शुद्ध , गंग में बस तन धोते ।सुशील सरना / 10-8-25मौलिक एवं अप्रकाशित See More
Aug 12
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट पर पाबन्दी लग गई है सो देखते हैं फिर कब मिलन होता है ।"
May 21
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
May 19
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी । खैर जैसी आपकी  इच्छा । सादर नमन "
May 12

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सुशील सरनाजी, यदि आप चर्चा की गंभीरता को वाकई समझ रहे हैं तो यह अवश्य ही उचित है, कि संवादो को विराम दिया जाय. अन्यथा मैं भी अपने शब्द वापस लेता हूँ. आप संवेदनशील हैं. हम सभी स्वीकारते हैं. लेकिन जिस लिहाज में आदरणीय योगराज भाईजी को लेकर, जो…"
May 11
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"परम आदरणीय गिरिराज भंडारी जी एवं सौरभ पाण्डेय जी  इस वार्ता को यहीं समाप्त करना  उचित होगा ।मेरे मन की मैंने कह दी आपने  अपनी कह दी । इस दौरान यदि मेरे शब्दों से किसी वरिष्ठ जन को ठेस पहुँची हो तो बन्दा क्षमा प्रार्थी है । सादर…"
May 11

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सुशील भाई .                               मंच के सभी सदस्यों  की अपनी अपनी विधा में रचनाये करने , सीखने , सिखाने के सिवाय भी एक और ज़िम्मेदारी है . और वो है , इस…"
May 11

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"//कोशिश रहेगी सरना की रचनाएँ कम से कम मंच पर पोस्ट हों //    नहीं, आदरणीय. रचनाओं के गठन में सशक्तता हो. विन्यास वैधानिक हों. रचनाओं की पंक्तियाँ व्याकरण सम्मत हों. विचारों में परिपक्वता हो. यही किसी अच्छी रचना के मानक…"
May 11

Profile Information

Gender
Male
City State
Jaipur-Rajasthan
Native Place
New Delhi
Profession
Retired from Central Govt.Service as Superintending Officer
About me
I am a simple,sentimental and transparent person.Poetry is my hobby and passion

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दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविध

मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।।

छोटी-छोटी बात पर, होने लगे तलाक ।

पल में टूटें आजकल, रिश्ते सारे पाक ।।

छोटे से परिवार में, दो -दो हैं औलाद ।

उसमें भी होते नहीं, आपस में संवाद ।।

पति-पत्नी के प्रेम का, अजब हुआ है हाल ।

प्रेम जाल में गैर के, दोनों हुए हलाल ।।

कत्ल प्रेम में आजकल, अब होते हैं आम ।

नाता जोड़ें गैर से, फिर होते बदनाम ।।

धोखा ही धोखा मिले, प्रेम…

Continue

Posted on August 19, 2025 at 3:16pm — 2 Comments

कुंडलिया. . . .

 

धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार ।
कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार ।
इस जग में उद्धार , धर्म से रिश्ते झूठे ।
मन में भोग-विलास, आचरण दिखें अनूठे ।
कर्मों के परिणाम , देख फिर हरदम रोते ।
करें न मन को शुद्ध , गंग में बस तन धोते ।

सुशील सरना / 10-8-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Posted on August 10, 2025 at 7:00pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . अपनत्व

दोहा पंचक. . . . .  अपनत्व

अपनों से मिलता नहीं,  अब अपनों सा प्यार ।

बदल गया है  आजकल,  आपस का व्यवहार ।।

अपने छूटे द्वेष में, कल्पित है व्यवहार ।

तनहा जीवन ढूँढता, अपनों का संसार ।।

क्षरण हुआ विश्वास का, बिखर गए संबंध ।

कहीं शून्य में खो  गई, अपनेपन की गंध ।।

तोड़ सको तो तोड़ दो, नफरत की दीवार ।

इसके पीछे है छुपा, अपनों का संसार ।।

आपस में अपनत्व का, उचित नहीं पाखंड ।

रिश्तों को अलगाव का, फिर मिलता है दंड ।।

सुशील सरना /…

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Posted on May 7, 2025 at 4:41pm — 15 Comments

दोहा पंचक. . . नया जमाना

दोहा पंचक. . . . . नया जमाना

अपने- अपने ढंग से, अब जीते हैं लोग ।

नया जमाना मानता, जीवन को अब भोग ।।

 मुक्त आचरण ने दिया, जीवन को वो रूप ।

जाने कैसे ढल गई, संस्कारों की धूप ।।

मर्यादा  ओझल हुई, सिमट गए परिधान ।

नया जमाना मानता, बेशर्मी को शान ।।

सार्वजनिक अश्लीलता, फैली पैर पसार ।

नयी सभ्यता ने दिया, खूब इसे विस्तार ।।

निजी पलों का आजकल, नहीं रहा अब मोल ।

रहा मौन को देखिए, नया जमाना खोल ।।

सुशील सरना / 6-5-25

मौलिक…

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Posted on May 6, 2025 at 8:40pm

Comment Wall (35 comments)

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At 9:12pm on August 13, 2021, Om Parkash Sharma said…

आदरणीय सुशील सरना जी ,

सादर अभिवादन , आपके नाम और सावन पर लिखे सभी दोहे मन मोह गए । दोनों कविताएं 'मौसम को' व प्रश्न गंभीर भावों को लिए हुए है। साधुवाद । 

At 11:15pm on September 17, 2016,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय सुशील सरना जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी "कविता : कितना अच्छा होता" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन

At 1:35am on May 6, 2016,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आपका मेल बॉक्स ब्लॉक होने के कारण मेल सेंड नहीं हो रहा है. 

At 1:29am on May 6, 2016,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आदरणीय सुशील सरना सर, विलम्ब से प्रत्युत्तर हेतु क्षमा. आपको मेल कर दिया है. सादर 

At 10:17pm on April 7, 2016, केवल प्रसाद 'सत्यम' said…

आ० सरना भाई जी, सादर  प्रणाम!

आपका हार्दिक स्वागत है.  मित्रता से भाग्योदय होता है ,  मैं धन्य हुआ. सादर

At 9:46am on April 1, 2016, Dr Ashutosh Mishra said…

आदरणीय सुशील जी ..महीने का सक्रिय सदस्य चुने जाने पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

At 6:02am on March 20, 2016, केवल प्रसाद 'सत्यम' said…

आ०  सुशील सरना भाई जी, सादर प्रणाम!  आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" चुने जाने पर बहुत-बहुत बधाई. सादर

At 4:22pm on March 16, 2016,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय

सुशील सरना जी,
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में विगत माह आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करें | प्रशस्ति पत्र उपलब्ध कराने हेतु कृपया अपना पता एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | ध्यान रहे मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई है |
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका सहयोग इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन

At 9:00pm on February 17, 2016, Tasdiq Ahmed Khan said…

मोहतरम जनाब सुशील सरना  साहिब ,  यह  आप सब की हौसला अफ़ज़ाई का नतीजा है  , जिसके लिए   आप का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

At 8:47pm on January 11, 2016, सतविन्द्र कुमार राणा said…
धन्यवाद आदरणीय sushil Sarna जी।आपको भी सपरिवार सादर हार्दिक शुभकामनाएं!
 
 
 

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