आदरणीय साथिओ,
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राष्ट्रीय खेल हॉकी की वर्तमान स्थिति से हर सच्चा हिन्दुस्तानी दुखी है, बस इसी दर्द को उजागर करने का प्रयास किया थाI आपका अनुमोदन मिला तो जान में जान आई आ० राजेश कुमारी जीI
लघुकथा - ढहते किले का दर्द
बेटे की आस में जब तीन बेटियों का आगमन हो गया तो मिस्टर और मिसेज़ तिवारी ने तीनों बेटियों को ही अपनी तकदीर मान कर तन मन धन से पारंपरिक संस्कार और आधुनिक विचारों की परवरिस दी थी। तीनों बेटियों में सबसे लाडली बेटी सोनल के एलान से कि - " वो शादी करेगी तो सिर्फ अनुज महतो से ही,नहीं तो नहीं करेगी, किसी और लड़के को अपने जीवन साथी के रूप में सोच भी नहीं सकती।" सुन कर दोनों सकते में गए।
" मैं कितना समझाती थी कि लड़कियों को लड़कियों की ही तरह पालो,लड़कों की तरह ज्यादा छूट दे कर खुद को आधुनिक सोच वाले साबित करने के चक्कर में लड़कियों को इतना सिर मत चढ़ाओ कि नाक ही कटने की नौबत आ जाये " माँ अपनी भड़ास निकालने लगी।
"मुझसे बच्चियों की पालन पोषण और मार्गदर्शन में कहाँ,कब ,क्या गलती हो गयी माया !,जो मेरे प्यार और विश्वास का मेरी बेटियाँ ये सिला दे रही हैं। ठीक है कि हम छुआछूत नहीं मानते, सभी धर्म जाति ,समुदाय वालों का सम्मान करते हैं ,उनके साथ आचार व्यवहार रखते हैं,इसका मतलब ये तो नहीं कि मैं अपनी बेटी को निम्न जाति के परिवार में ब्याह दूँगा।" घर में पसरे मातमी माहौल में कुछ दिन यूँ ही माँ बाप और सोनल को अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए निकले ही थे कि दूसरी बेटी शीतेश महेन्द्रु और तीसरी बेटी असलम से शादी करने की घोषणा कर के सोनल के साथ खड़ी हो गयीं।
मुह्तरमा मंजू साहिबा ,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा
के लिए , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ - -
बस इसी पीड़ा को दर्शाने का प्रयास किया था प्रीत सीमा जी, आपको प्रयास पसंद आया जान कर दिल को अति-संतोष मिला.
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आ० प्रतिभा पाण्डेय जी.
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