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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-103

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 103वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहमद फराज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो "

221     2121      1221       212

मफ़ऊलु    फाइलातु      मफाईलु       फाइलुन       

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ )

रदीफ़ :- मुझे न दो  
काफिया :- आएँ( सदाएँ, बलाएँ, दुआएँ, हवाएँ,आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 जनवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदरणीय शिज्जू भाई बहुत ही बेहतरीन उम्दा ग़ज़ल हुई बधाइयां स्वीकार करें

आ. भाई शिज्जू शकूर जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय शिज्जु भाई बहुत अच्छी गजल आप ने कहीं दिली मुबारकबाद पेश करता हूं

जी चाहता है खोया रहूँ अपने आप में
इतना करम करो कि सदाएँ मुझे न दो ...वाह!

उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी. सादर.

आदरणीयशिज्जू शिकूर साहब, आदाब. मुशायरे में उम्दा ग़ज़ल की पेशकश पे दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें. सादर

जनाब शिज्जु साहब शानदार मतले के साथ उम्दा गजल कही आपने बहुत मुबारकबाद इस उत्तम पेशकश हेतु|

 

आदरणीय शिज्जु जी बहुत ही बेहतरीन शेर कहे हैं हर शेर मे रवानी है ..... मेरी तरफ से ढेर सारी दाद और मुबारकबाद कबूल कीजिये|

अहसास होता है कि अभी जान बाकी है
अच्छी है बेख़ुदी ये दवाएँ मुझे न दो

आदरणीय शिज्जु शकूर जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई क़ुबूल कीजिए 

वाह्ह्ह्ह व्काह शिज्जू भैया शानदार गजल हुई हेई दिल से मुबारकबाद पेश करती हूँ 

जीने की इस जहाँ में दुआएँ मुझे न दो,
और बिन बुलाई सारी बलाएँ मुझे न दो।

मर्ज़ी तुम्हारी दो या वफ़ाएँ मुझे न दो,
पर बद-गुमानी कर ये सज़ाएँ मुझे न दो।

सुलगा हुआ तो पहले से भड़काओ और क्यों,
नफ़रत की कम से कम तो हवाएँ मुझे न दो।

वाइज़ रहो भी चुप जरा, बीमार-ए-इश्क़ हूँ,
कड़वी नसीहतों की दवाएँ मुझे न दो।

तुम ही बता दो झेलने अब और कितने ग़म,
ये रोज रोज इतनी जफ़ाएँ मुझे न दो।

तुम दूर मुझ से जाओ भले ही खुशी खुशी,
पर दुख भरी ये काली निशाएँ मुझे न दो।

करता 'नमन' 'फ़राज़' को जिसने कहा है ये,
*हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो।*

मौलिक व अप्रकाशित

मोहतरम जनाब वासुदेव जी 'नमन' को आदाब व नमन बधाई बहुत बहुत मुबारकबाद शानदार उम्दा बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बस ज़रा..ज़रा, रोज़-रोज़, ख़ुशी-ख़ुशी में नीचे बिंदी छूट गई शायद माज़रत सादर

आ0 आसिफ़ जैदी जी आपसे ग़ज़ल को मान मिला, आपका तहे दिल से शुक्रिया।

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