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ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या, माह दिसम्बर, 2017 – एक प्रतिवेदन -                डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव

ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या, माह दिसम्बर, 2017 – एक प्रतिवेदन -                डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव

भारत के इतिहास में दिनांक 17 दिसम्बर  मुगल सम्राट जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ  बेगम के निधन हेतु भले न याद किया जाये, किन्तु यह तारीख लाठीचार्ज में शहीद हुए लाला लाजपत राय के बलिदान का बदला लेने हेतु भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव द्वारा सांडर्स की हत्या करने के लिए सदैव याद रखा जाएगा. इस ऐतिहासिक तिथि के दिन रविवार 17.12.2017 को ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या संयोजक डॉ. शरदिंदु मुकर्जी के आवास 37, रोहतास एन्क्लेव में एक बार फिर गीत के गुलदस्तों और गज़ल  के गुलदानों से राशि-राशि सज्जित हुई. कार्यक्रम की अध्यक्षता सुनाम कथाकार डॉ. अशोक शर्मा ने की और संचालन का भार मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ ने उठाया.

संचालक द्वारा की गयी वाणी–वंदना के साथ ही प्रथम पाठ के लिए ग़ज़लकार भूपेन्द्र सिंह ‘शून्य’ को आमंत्रित किया गया. आपने कुछ ग़ज़लें तहद में सुनाईं, पर आख़िरी रवायती ग़ज़ल  को उन्होंने बातरन्नुम पेश किया. इस ग़ज़ल का मतला उद्धृत किया जा रहा है –

अब अश्क है आँखों में, है  दर्द खयालों में

दिल टूट गया जब से,  इन प्यार की राहों में

कवि शिवनाथ सिंह ने कुछ गंभीर कवितायें सुनाईं. उनकी रचनाओं में आध्यात्मिक संकेत दिखते हैं. ‘ये नियति है, उस नियंता की’ शीर्षक उनकी कविता का एक नमूना निम्न प्रकार है –

लगता ऐसा जैसे अम्बर इस धरती से मिलता जाता

मत सोचो तुम कैसे सूरज यहाँ ज्योति पुंज से है आता

डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने पहले एक लघुकथा ‘तमाशबीनपढ़ी जिसमें आज के युग में अन्याय के प्रति चुप्पी साधने वालों पर कटाक्ष किया गया है. इसके बाद उन्होंने अपनी रचनाशीशमहलपढ़कर सुनाया. इस कविता में उनका सकारात्मक पक्ष उभर कर आया है –

मेरे लहूलुहान पैरों को

कोई शिकायत नहीं,

बस, बटोर रहा हूँ

काँच के इन टुकड़ों को

इनकी धार, इनकी चमक और खनक से

बनेगा नया शीशमहल

जिसके रास्ते में खिलेंगे सुर्ख गुलमोहर,

मेरे सपनों के ख़ून की ताज़गी लिये.

कवयित्री संध्या सिंह ने ग़ज़ल के तौर-तरीकों वाला एक गीत पढ़ा जिसमें बिम्ब के सशक्त प्रयोग ने एक बार पुनः उनकी क्षमता का लोहा मनवाया. गीत का एक अंश इस प्रकार है –

भारी पड़ा है मुझको, महफ़ूज हो के जीना

मेरे हर्फ दब गए हैं, मेरी जिल्द के वजन से

संचालक मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ ने अपने व्यक्तित्व का काव्यात्मक परिचय देते हुए सारे भारत के युवाओं की नुमायन्दगी अपनी ओजस्वी शैली में कुछ इस प्रकार की –

मरने का डर नहीं मुझे है, किन्तु मुक्ति से प्यार नहीं

कायरता से भरा हुआ मेरा हरगिज व्यवहार नहीं

कवयित्री एवं कथाकार कुंती मुकर्जी ने सरल शब्दों में एक पहाड़ी स्त्री की व्यथा को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया –

अभी सुबह नहीं हुई थी

लेकिन वह जाग गयी थी

सर पे गागर लिए

ज़िंदगी की खोज में निकल पड़ी थी

लखनऊ के साप्ताहिक समाचार पत्र “विश्वविधायक” के सम्पादक मृत्युंजय प्रसाद गुप्त एक पत्रकार होने के साथ ही अच्छे रचनाकार भी हैं. उन्होंने अपने उदात्त स्वर में माँ सरस्वती वंदना प्रस्तुत की.

डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने अब्दुर्रहीम खानखाना द्वारा ईजाद किये गए ‘बरवै’ पर आधारित कुछ छंद पढ़े जो ‘आस और विश्वास’  शीर्षक के अंतर्गत थे. इनकी बानगी यहाँ प्रस्तुत है -

रूप-रंग  सब  ढरिगा  रही न वास

फूल डारि पर अटका पिय की आस

मन के भी तुम काले सचमुच कृष्ण

आस भरी  वह  राधा  मरी सतृष्ण

इसके बाद उन्होंने कुछ दोहों का पाठ किया जिनमे ‘प्रकृति और पर्यावरण’ विषयक दोहे आकर्षण का केंद्र बने -

पथ-प्रशस्त तो हो गया बचा न कोई वृक्ष I

शीतलता छाया गयी  दाहकता प्रत्यक्ष  II

नहीं महकती बौर भी पवन नहीं निर्बंध I 

गाँवों में मिलती नहीं अब महुआरी गंध II

कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष डॉ. अशोक शर्मा ने प्रकृति के जड़-चेतन स्वरुप में बिखरे ईश्वर के अस्तित्व को काव्य की नई दृष्टि से निहारते हुए अपना निष्कर्ष कुछ इस प्रकार प्रकट किया -

कभी-कभी मुझको लगता है

ईश्वर भी कविता करता है

ओबीओ लखनऊ चैप्टर के संयोजक डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने सभी साहित्य अनुरागियों को सहभागिता के लिए धन्यवाद दिया.

                वीणा-वादिनि कीजै, अस संजोग

                नव-रस झम-झम बरसै, भीजैं लोग

                सिमिटि-सिमिटि सब आवैं, तोरे द्वार

                बहै काव्य मन्दाकिनि शत-शत धार

                                    -बरवै छंद ,  सद्य रचित

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बहुत ख़ूब। हार्दिक आभार आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहिब। बेहतरीन शिल्प में ऐसे सारगर्भित प्रतिवेदनों से भी हम घर बैठे देश के साहित्यिक केन्द्रों पर सम्पन्न साहित्यिक गतिविधियों से रूबरू  व लाभान्वित हो पाते हैं। सभी आदरणीय आयोजक-संचालकगण और सहभागियों को हार्दिक बधाई और नव वर्ष की मंगलकामनाएं।

आ०  आपने हमारा हौसला बढ़ाया . हम आपके आभारी हैं . आपको नए वर्ष  की मंगल कामना .

आपका हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी कि आपने इस प्रस्तुति को इतने ध्यान से पढ़ा. बहुत दिनों बाद ओबीओ परिवार के किसी सदस्य ने मासिक गोष्ठी के प्रतिवेदन की सराहना की यद्यपि हर महीने लखनऊ चैप्टर की गोष्ठी होती है और हर महीने डॉ गोपाल नारायण जी द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है. आपके इस पहल से वास्तव में हमारा उत्साह वर्धन हुआ है. ओबीओ लखनऊ चैप्टर परिवार की ओर से आपको और पूरे ओबीओ परिवार को नए साल के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ.  

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