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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-55 (विषय: घर संसार)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-55 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-55
विषय: घर संसार
अवधि : 30-10-2019  से 31-10-2019 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं। 
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

 आभार नीताजी

हार्दिक बधाई इस बढ़िया रचना के लिए आदरणीय अजय गुप्ता जी| आपकी शुरुवात की पंक्तियाँ /फत्ता और नफे दोनों रिक्शा चलाते हैं। अभी 10 दिन से दोनों की जान पहचान हुई है। और दोनों की ऐसी पटी कि रोज़ शाम को पव्वे का कार्यक्रम साथ ही होता है। कल शाम की मुलाकात/ यहाँ १० दिन से ज्यादा होते तो की क्या फर्क पड़ता या कम होते तो क्या फर्क पड़ता? आगे तो गुणीजन ही स्पष्ट कर पायेंगे| 

 शुक्रिया कल्पना भट्ट जी। जैसा कि आपने जानना चाहा है उसका उत्तर देने की चेष्टा कर रहा हूँ।

दस दिन का समय इसलिए दिया गया कि ज्यादा पुराना संबंध हो और दारू का साथ हो तो ये घर का सिस्टम पहले से पता होता। और 3-4 दिन में कोई किसी को घर की बात बताता नहीं। कम से कम 10-12 दिन तो एक दूसरे से पटरी बैठने में लग जाते हैं।

कुछ दिन भी एक आप्शन हो सकता है, मेरे ख्याल से| आगे गुणी जन मार्गदर्शन करेंगे ऐसा मुझको लगता है| सादर| 

जी बिल्कुल। कुछ दिन बेहतर विकल्प है। सुझाव के लिए आभार

आदाब। दरअसल ऊपर की भूमिका रूपी दो-चार पंक्तियों की आवश्यकता ही नहीं लगती। वे बातें दोनों पात्रों के संवादों में पिरोई जा सकती हैं। अंत में //.. मेरी देखा-देखी घर वाले भी छूट लेने लगे तो? // बहुत महत्वपूर्ण हैं और कथ्य में निवेश करतीं हैं। //...कि ये 'पव्वा' किसे कह रहा है।//.. मैं इस वाक्यांश को, इस की आवश्यकता या संदेश को नहीं समझ पा रहा हूं। सादर।

शुक्रिया उस्मानी साहब आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए

 

 आदरणीय अजय गुप्ता जी बहुत बहुत बधाई बहुत शानदार लघुकथा सबको आमेज़,सादर

 

  • आभार आसिफ़ ज़ैदी साहब

लघुकथा बहुत अच्छी है, बधाई प्रेषित है। आ० तेजवीर सिंह जी की बात का संज्ञान लें

अंदर की बात  -  लघुकथा  -

"बड़े भैया आपसे एक विनती करनी है।" छोटे ने दोनों हाथ जोड़ कर बड़े भाई से डरते डरते निवेदन किया|

"अबे ऐसे क्यों गिड़गिड़ा रहा है? तू हमारा छोटा भाई है। बेधड़क बोल क्या बात है?"

"भाई साहब, लगभग दो ढाई साल  से अधिक हो गया,  माँ बाबूजी को मेरे पास रहते हुए। अब उन्हें आप ले जाते तो अच्छा रहता।"

"क्यों क्या हुआ अचानक? तुझे कोई समस्या हो रही है क्या?"

"भाई साहब , आजकल मेरा बज़ट गड़बड़ा रहा  है।"

"कैसी बेसिरपैर की बात करता है? दो प्राणी, वे भी सत्तर पार। कितना खर्चा होता है उनकी दाल रोटी में? मुझसे ले लिया कर।"

"भाई साहब, बात दाल रोटी के खर्चे की नहीं है।"

"तो फिर क्या समस्या है? खुलकर क्यों नहीं बोलता?"

"आप तो ठहरे जिले के बड़े सरकारी अधिकारी। मैं एक प्राइवेट कंपनी में मामूली सा मुलाज़िम। आपके  पास रहने से उनका  इलाज़ मुफ़्त होता रहेगा। मुझे हर महीने हज़ारों रुपये प्राइवेट अस्पतालों में इनकी दवाओं पर खर्च करने पड़ते हैं।"

"यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। तू उनके मैडीकल बिल मुझे भेज दिया कर। मैं उनको रिएंम्बर्स करा कर तुझे पैसे भेज दिया करूँगा।"

"भाई साहब, इतना बखेड़ा खड़ा करने से तो  अच्छा होगा कि आप उन्हें अपने पास ही रख लेते।"

"अबे यार छोटे, तू समझता क्यों नहीं है? उनको मेरे पास रखने में मुझे बहुत बड़ी स्टेटस प्रॉब्लम फेस करनी पड़ती है।"

मौलिक एवम अप्रकाशित

अच्छी लघुकथा हुई तेजवीर जी। कथानक बहुत पुराना है पर आपने उसे नई शैली में गढ़ा है जिसमें स्टेटस, फाइनेंस और मां-बाप की सहूलियत तीनों पक्षों को दिखाया है। कुछ बदल चुका है, कुछ बदल रहा है, कुछ बदलना पड़ेगा। बहुत ख़ूब।

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