आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी।
जनाब TEJ VEER SINGH जी आदाब बहुत बहुत बधाई ओमप्रकाश जी के अल्फ़ाज़ों को दोहराते शानदार लघुकथा सादर ।
हार्दिक आभार आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी साहब जी।
बहुत बढ़िया सार पूर्ण लघुकथा तेजवीर जी । बधाई।
हार्दिक आभार आदरणीय कनक जी।
संवाद शैली में प्रदत्त विषय पर कही गई शानदार कथा। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी । ऐसी समझदार दादी हर घर में हो।
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।
आदाब। घर-घर की दास्ताँ। हर वर्ग की कहानी। ... तेरी-मेरी... टेढ़ी-मेढ़ी कहानी। एक सहज कथानक पर विषयांतर्गत सबसे अलग रचना। हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
एक सुझाव। शुरू की कुछ पंक्तियों को हटाया जा सकता है मेरे विचार से। सीधे यह लिख कर शुरू कर सकते हैं : // भोजन की थाली फेंके जाने पर गूंजी आवाज़ सुनकर .... //.... फिर सीधे कथनोपकथन। शीर्षक पर भी पुनर्विचार किया जा सकता है। /सीख/ ... /अहसास/... //दादी का आइना...//....
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।आपके सभी सुझाव बहुत कारगर और उचित मार्गदर्शन हेतु उत्तम है। प्रयास करुंगा कि इनका समुचित प्रयोग कर सकूं। वैसे मैंने पहले शीर्षक "दादी की सीख" ही रखा था।
आदरनीय तेजवीर जी , सुंदर लघुकथा के लिए बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।
"स्त्री"
हालांकि अब भी हमारा झगड़ा चल रहा था।
कि रात को करेले कड़वे क्यों बनाए,और चाय सुबह फीकी क्यों बनाई?जबकि मुझे या घर में किसी को शुगर भी नहीं थी!
लेकिन पत्नी चाहती थी कि आइंदा किसी को शुगर ना हो!
वह मुंह फुलाए रसोई में बिज़ी थी, मैं सोच रहा था ये क्या किया ?
वह सही तो है मैं ही ग़लत था! अब करूं क्या? बात बिगड़ तो गई है!
अब जब तक लंच की भरपूर तारीफ़ न करूंगा, समझौता होगा नहीं!
इसी उधेड़बुन में मेरी नज़र ससमाचार पत्र पढ़ते समय एक छोटे से कालम पर जा टिकी!
जिसमें लिखा था 'दुबई में एक स्त्री ने अपने पति से इस बात पर तलाक मांग लिया, कि शादी के 25 सालों में उसने कभी भी बीवी की फ़रमाइश को पूरा करने में देर नहीं की, कोई पाबंदी नहीं लगाई, यहाँ तक कि रसोई में भी हाथ बँटाता था, कभी झगड़ा नहीं किया!
इस बात से हताश पत्नी ने तलाक की मांग कर डाली!
के भला ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी है?
जिसमें पति कभी भी शिकायत या छोटा-मोटा झगड़ा भी न करे?
मैं ये सब पढ़कर खुशी से उँचक गया, और गर्व से पत्नी के सामने वह समाचार पत्र कर दिया...।
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