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मुझे विरासत में मिलीं
कुछ हथौड़ियाँ
कुछ छेनियाँ
मिला थोड़ा-सा धैर्य
कुछ साहस
थोड़ा-सा हुनर

मैं तराशने लगा
निर्जीव पत्थरों को

बना दिया
सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ
जो कई अर्थों में
श्रेष्ठ हैं
ईश्वर द्वारा बनायी गयीं
सजीव मूर्तियों से
जिन्हें नहीं पता रिश्तों की मर्यादा
नही कर पातीं ये भेद
दूधमुँही बच्चियों, युवतियों और वृद्ध महिलाओं में

काश
एक अदद कलम
मुझे मिली होती
विरासत में

मैं होता
एक न्यायाधीश
लिखता निर्विघ्न फैसला
उन बलात्कारियों का
और तोड़ देता निब को

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2019 at 10:52pm

उत्साहवर्धन करती सराहना युक्त टिप्पणी हेतु हृदय से आभार आदरणीय अजय तिवारी जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2019 at 10:51pm

सराहना एवं रचना पर उपस्थिति हेतु दिल से आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2019 at 10:49pm

मोहतरम आरिफ़ साहब, रचना पर इस विवेचनात्मक टिप्पणी हेतु दिल से आभार व्यक्त करता हूँ.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2019 at 10:48pm

कविता पर खुबसूरत टिप्पणी और सराहना हेतु आभार आदरणीया कल्पना भट्ट जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2019 at 10:47pm

दिल से आभार आदरणीय शलेश चंद्राकर जी.

Comment by Ajay Tiwari on October 26, 2018 at 5:08pm

आदरणीय गणेश जी, एक और बहुत ही सामयिक और प्रभावशाली कविता के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Mahendra Kumar on October 26, 2018 at 12:02pm

बेहद उम्दा और शानदार अतुकान्त है आदरणीय इंजी. गणेश जी "बाग़ी" जी। ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

Comment by Mohammed Arif on October 26, 2018 at 11:05am

आदरणीय गणेश 'बाग़ी'जी आदाब,

                              बहुत ही सशक्त और विचारोत्तेजक अतुकांत कविता । आजकल क़लम भी अपना वह रंग नहीं दिखा पा रही है जो क़लम की ताक़त आज़ादी की लड़ाई में उभर कर आई थी । बहुत कुछ लिखा जा रहा है और विरोध भी किया जा रहा है मगर कलयुग सबकुछ हजम कर जाता है । आवाज़ उठाना जैसे बेईमानी हो गया है । विरोध प्रदर्शन हास्यास्पद हो गया है । न्याय बहुत दूर की कौड़ी हो गई है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on October 26, 2018 at 10:34am

//  मायनों के स्थान पर अर्थों लिखना क्या उचित होगा ?//

जी,मुनासिब है ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 25, 2018 at 11:44pm

आदरणीय गणेश बागी जी बहुत सुंदर अतुकांत लिखी है आपने जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई | 

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