आदरणीय साथिओ,
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ट्रॉली की समस्या
सालों पहले पूछा गया सवाल आज सच बनकर उसकी ज़िन्दगी के सामने खड़ा था। "रेलवे ट्रैक पर एक अनियन्त्रित ट्रॉली तेज़ गति से आ रही है। जिस ट्रैक पर ट्रॉली आ रही है उस पर पाँच व्यक्ति इस प्रकार बंधे हैं कि हिल भी नहीं सकते। आप वहीं लीवर के पास खड़े हैं। अगर आप लीवर खींच देंगे तो ट्रॉली दूसरे ट्रैक पर चली जाएगी। पर समस्या यह है कि उस दूसरे ट्रैक पर भी एक व्यक्ति बंधा है। आप क्या करेंगे? बिना कुछ किये पाँच लोगों को मर जाने देंगे या लीवर खींच कर एक की जगह पाँच को बचाएँगे?" सवाल ख़त्म होते ही सबसे पहले उसने उत्तर दिया, "वैरी सिम्पल प्रोफेसर! मैं एक की जगह पाँच को बचाऊँगा।" आज वही छात्र पटरियों के बीच लीवर के पास खड़ा था और ट्रॉली सचमुच उसकी तरफ़ आ रही थी। उसे जल्द ही कोई फ़ैसला लेना था।
एक साँस में शराब की बची हुई बोतल ख़त्म करने के बाद उसने उस पटरी की तरफ़ देखा जहाँ पाँच लोग बंधे थे। उन्हें देखते ही वो चौंक गया। उनमें से एक उसकी प्रेमिका थी। उसने फिर से वही दोहराया, "मुझ शादीशुदा औरत से प्यार करके तुम्हें क्या मिलेगा? किसी अच्छी लड़की को ढूँढो और उससे शादी कर लो। दो लोगों के मिलने से अगर सौ लोगों को तकलीफ़ पहुँचे तो ऐसे मिलने से न मिलना बेहतर।" और उसने फिर से वही सोचा, 'बलि हमेशा प्यार करने वाले की ही क्यों ली जाती है?'
उसने दूसरी वाली पटरी की तरफ़ देखा। वहाँ पर उसकी माँ बंधी थी। उसे यकीन नहीं हुआ। 'ये कैसे हो सकता है? माँ तो मर चुकी है।' पर उसका चौंकना अभी और बाकी था। माँ के पास ही उसके पिता जी बैठे थे जो माँ की रस्सियाँ खोलने का अथक प्रयास कर रहे थे। 'पर पिताजी ने तो ख़ुदकुशी कर ली थी?'
उसका सर चकरा गया। उसने फिर से दूसरी वाली पटरी की तरफ़ देखा। वहाँ उसका दोस्त खड़ा था। वो हमेशा की तरह चिल्लाया, "तेरी माँ तेरा हाल देखकर सदमे से मर गयी और तेरे पिता ने इस ग़म से फाँसी लगा ली कि तू एक शादीशुदा औरत से प्यार करता है। पर उसने क्या किया? एक बार तेरा हाल तक न पूछा? उसके घरवालों को तुम दोनों के बारे में पता क्या चल गया उसने डर के मारे तुझसे रिश्ता ही ख़त्म कर लिया?" उसने दोनों हाथ अपने कानों पर रख लिए पर फिर भी उसकी आवाज़ आती रही। "तू बेवक़ूफ़ है और वो ख़ुदगर्ज़। उसे मालूम था कि तुझ फटेहाल के साथ उसे बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा। इसीलिए उसने अपने पति और बच्चों को चुना, तुझे नहीं। अभी तो तू सिर्फ़ पागल हुआ है अगर तू मर भी जाए तो उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा।"
ट्रॉली बिलकुल पास आ चुकी थी और समय बेहद कम था। उसने अपना हाथ लीवर पर रख दिया। इससे पहले कि वो लीवर खींचता उसने आख़िरी बार माँ की तरफ़ देखा। इस बार उधर सिर्फ़ उसकी माँ ही नहीं बल्कि कुछ और लोग भी बंधे थे जिनकी शक्ल हू-ब-हू उसके जैसी थी। उसने दूसरी पटरी की तरफ़ देखा। उधर अब पाँच नहीं बल्कि पूरा ज़माना बंधा था। उसमें हर वो शख्स शामिल था जिसके कारण वो आज अकेला था चाहे वो उसकी प्रेमिका के घरवाले हों या उसके यार-रिश्तेदार।
समय लगभग ख़त्म हो चुका था। उसने अपना हाथ लीवर से हटा लिया और ट्रॉली उस तरफ़ बढ़ गयी जिधर पाँच लोग बंधे थे।
(मौलिक व अप्रकाशित)
आगाज के लिए हार्दिक बधाई, आ. महेंद्र कुमार जी ,दूसरों के लिए सदैव अपनी बलि तो नही दी जा सकती।सादर
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया अर्चना जी. हार्दिक आभार. सादर.
आदाब। ओपनबुक्सऑनलाइनडॉटकॉम पर लाइव लघुकथा गोष्ठी के दो दिवसीय स्वर्ण जयंती आयोजन में आपकी इस पहली बेहतरीन लघुकथाग्राफ़ी के साथ आपका हार्दिक स्वागत अभिनंदन जनाब महेंद्र कुमार साहिब। ग़ज़ब की प्रवाहमय तुलनात्मक बिम्बात्मक परिकल्पनायुक्त यथार्थपूर्ण रचना हेतु हार्दिक बधाई। जीवन का कड़वा सत्य बाख़ूबी शाब्दिक किया है। अंततः आज यही अंतिम निर्णय लेने होते हैं। सादर।
सादर आदाब आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और आत्मिक टिप्पणी का हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
// समय लगभग ख़त्म हो चुका था। उसने अपना हाथ लीवर से हटा लिया और ट्रॉली उस तरफ़ बढ़ गयी जिधर पाँच लोग बंधे थे। //
बेहतरीन आदरणीय महेंद्र कुमार जी, मुझे नहीं लगता इससे बेहतर इस रचना को कोई अंत होता.... कल्पना की ऊँची उड़ान में वाकई आपका जवाब नहीं. आयोजन की पहली सुंदर और लाजवाब रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई जी. वैसे चलते-चलते मैं ये बता दूँ भाई जी कि रचना के शीर्षक से मैं संतुष्ट नहीं हूँ. न जाने क्यूँ मुझे लगता है कि इसका शीर्षक कुछ जिन्दगी के सवालों से जिन्दगी की कशमकश के बीच कहीं होता. सादर भाई जी.
कथा के अन्त को लेकर मैं थोड़ा संशय में था पर आपने मेरा डर दूर कर दिया. आपकी इस सार्थक टिप्पणी का हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत शुक्रिया.
//रचना के शीर्षक से मैं संतुष्ट नहीं हूँ. न जाने क्यूँ मुझे लगता है कि इसका शीर्षक कुछ जिन्दगी के सवालों से जिन्दगी की कशमकश के बीच कहीं होता.//
दरअसल "ट्रॉली की समस्या" (Trolley Problem) नीतिशास्त्र से सम्बन्धित एक 'थॉट एक्सपेरिमेंट' है और ये इसी नाम से प्रचलित है. यही कारण है कि मैंने इसे यथावत रहने दिया ताकि जो पाठक इससे परिचित नहीं है वो इसे सन्दर्भ के रूप में ग्रहण कर सकें. पर आप यदि सन्तुष्ट नहीं हैं तो मैं अवश्य ही इस पर विचार करूँगा. सादर.
शुक्रिया आपने मेरी टिप्पणी को मान दिया। 'ट्रॉली की समस्या' थ्योरी का जानकर अच्छा लगा। इसके संदर्भ में ये शीर्षक उचित ही कहा जायेगा। हाँ शायद इसे न जानने वाले इसे रचना के साथ सही से नहीं जोड़ पाएंगे, जैसे शायद मैं। सादर भाई जी।
थ्योरी का न जानते हुए भी आप रचना के मर्म तक पहुँच पाए यह आपका पाठकीय कौशल ही है. रचना पर आपकी टिप्पणी हमेशा ही हम लोगों का मार्गदर्शन करती है. आपके अमूल्य विचारों की हमेशा प्रतीक्षा रहती है. रचना पर आपके आगमन के लिए पुनः आभार. सादर.
जिंदगी की अजीब कश्मकश को दर्शाती कथा के लिये बधाई आद० महेन्द्र कुमार जी ।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता जी. इस लघुकथा को लिखते वक़्त मुझे वाकई कश्मकश से गुज़रना पड़ा था. आपका हार्दिक आभार. सादर.
सिद्धांतों की परीक्षा परिस्थितियों को स्वयं जीकर ही होती है जीवन का सीधा गणित ये ही है। बढ़िया कथा। शुरू से अंत तक दिलचस्पी बानी रहती है। हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र जी।
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