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फूल की कहानी -फूल की जबानी

मैं सक्षम, हूँ विलक्षण

निर्मल करता, विचलित मन

पुलकित कर तेरे, तन मन

सुगन्धित करता, वन उपवन

प्रकृति का श्रृंगार कर

महक का प्रसार कर

चिंतन करता हर एक क्षण

खुशियाँ देता मैं पल पल

न्योछावर अपना जीवन कर

कभी मंदिर, कभी जमी में

कभी रेंगता धूलि में

जीवन की प्रवाह ना कर

खुशियाँ बाटता हर एक क्षण

कभी कंठ की शोभा बनता 

कभी बढाता शोभा शव

कभी गजरा नारी बनता

कभी में देता सेज सजा

क्षण भर के इस जीवन को

खुश होता तुम्हे अर्पण कर

कली से सुंदर फूल बन

मोहित करता सबका मन

सूझ देता मैं इस जग

आग नहीं फूल तू बन

ना अधीर हो ना हताश

सामना कर जटिल समाज

मन में रख दृढ़ विश्वास

ह्रदय अपने प्रेम भर

मानव का कल्याण कर

"मौलिक और अप्रकाशित"

 

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Comment

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Comment by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 11:00am

आदरणीय फूल सिंह जी, पुष्प को केंद्र बनाकर बढ़िया रचना हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. 

1. //जीवन की प्रवाह ना कर// या "जीवन की परवाह न कर"?

2. //कभी मैं देता सेज सजा//

देख लीजिएगा. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on January 16, 2019 at 6:07am

आद0 फूल सिंह जी सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है,, बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by PHOOL SINGH on January 9, 2019 at 12:37pm

"कबीर साहब" हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Samar kabeer on January 8, 2019 at 2:59pm

जनाब फूल सिंह जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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