For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"कितनी बार कहा कि ऐसी पवित्र धार्मिक जगहों पर मंद-मंद मुस्कराया मत करो!" रामदीन को कोहनी मारते हुए उसके दोस्त ने कहा - " यहां चलते-फिरते सीसीटीवी कैमरे भी हैं! स्टिंग ऑपरेशन तक हो सकते हैं, समझे!"


"कितने दर्शन और करने होंगे! इस सदी में भी यहां ये कस्टम-सिस्टम! .. और कहां-कहां जाना पड़ेगा!" बड़ी बेचैनी के साथ धार्मिक औपचारिकताएं निभाते हुए रामदीन ने धीरे से कहा।


"आदत डाल ही लो! बड़े नेता के बेटे हो! अब जीवन में यही करना होगा!" - रामदीन के माथे से पसीने की बूंदें अपने गमछे से पोंछते हुए दोस्त ने कहा - " थोड़ी देर बाद एक बस्ती में चलेंगे। चुपचाप मेरे एक साथी की रसोई में ज़मीन पर बैठ कर भोजन कर लेना उसके परिवार के साथ! जो जैसा जहां है, देख लेना और जो कुछ भी जो कहे, सुन लेना! बाक़ी ज़िम्मेदारी हमारी, समझे!"


"लेकिन!"


" लेकिन-वेकिन कुछ नहीं! सारे मीडिया की नज़र तुम पर है! चुनावों के बाद विदेश घूम आना, राहत मिलेगी!"


"लेकिन कब तक बेमन से ये सब करूं! यार, हद हो गई! बड़े भैया होते, तो मेरी ये नौबत न आती!" रामदीन बुरा सा मुंह बनाकर अपनी जूतियां पहनते हुए बड़बड़ाया।


"पिता के नक्शे क़दम चलो, बड़े नेताओं जैसे या फिर देश और घरवाले छोड़ विदेश में जम जाओ!" दोस्त ने रामदीन को फिर से समझाइश दी।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 689

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 25, 2018 at 10:53pm

बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहिब।

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 17, 2018 at 9:45pm

बहुत अच्छी कथा के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 13, 2018 at 2:53am

अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब

विजय निकोरे साहिब।

Comment by vijay nikore on April 11, 2018 at 11:50am

इस खूबसूरत लघुकथा के लिए  हार्दिक बधाई, आदरणीय शैख शहज़ाद उस्मानी जी

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 4:17am

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय के दे कर अपने विचार व्यक्त कर मेरी लेखनी की हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा साहिब, जनाब तेजवीर सिंह साहिब , जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और आदरणीया नीलम उपाध्याय जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 4:14am

बहुत ही गर्मजोशी के साथ हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब। आप भी तो लघुकथा संग कुछ विधाओं में मंच पर सक्रिय सहभागिता निभा करव टिप्पणियों से हमें प्रेरित व मार्गदर्शित करते रहते हैं न।

Comment by Mohammed Arif on April 10, 2018 at 4:17pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                        भीषण गरमी के प्रकोप में ओबीओ के पटल पर आपकी सर्वश्रेष्ठ लघुकथाओं का दौर चल रहा है । तापमान में वृद्धि के साथ ही श्रेष्ठता का ज़बर्दस्त प्रदर्शन बड़ा ही सराहनीय है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 9, 2018 at 5:38pm

आदरणीय शेख उस्मानी जी शानदार कटाक्ष करती इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on April 9, 2018 at 1:33pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा।अच्छा कटाक्ष।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 9, 2018 at 12:18pm

आदरणीय उसमानी जी, नमस्कार । बहुत बढ़िया लघुकथा । प्रस्तुति के लिए बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service