For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाने सूरज कब निकले है वक्त अभी रुसवाई का------गज़ल

22 22 22 22 22 22 22 2

नैन में रैन गँवाए जाऊँ, वक्त पहाड़ जुदाई का

जाने सूरज कब निकले, है वक्त अभी रुसवाई का

उनको कोई ग़रज़ नहीं जो पूछें हाल हमारा भी

कोई दूजी वज्ह नहीं, परिणाम है कान भराई का

हमनें चाँद के दाग पे केवल शेर पढ़ा इक, महफ़िल में

चहरे का रँग बोल रहा था हाल खुदी हरजाई का

खुद की ख़ता भी खुद को सज़ा भी, रोना धोना कैसा फिर

देवी उसको बना दिया, फिर मुद्दा कहाँ रसाई का

यारों चिंता कोई न करिए, रोज़ मिलूँगा राहों में

याद में जलना, शेर में ढ़लना, काम है इस सौदाई का

मौलिक अप्रकाशित

Views: 822

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Tiwari on January 13, 2018 at 5:54pm

आदरणीय पंकज जी, अच्छे अशआर हुए हैं, हार्दिक बधाई.

यूं तो इस बह्र में १२१२ या २१२१ की संरचना का प्रयोग अक्सर किया गया है, लेकिन वस्तुतः यह एक अरूजी असावधानी है जो मीर द्वारा हुई और दूसरे शायरों द्वारा उसी का अनुकरण किया गया. इस लिए इससे बचना ही बेहतर होगा.

सादर      

 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 13, 2018 at 5:49pm

आदरणीय ब्रज जी बहुत शुक्रिया

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 13, 2018 at 5:49pm

आदरणीय सुरेंद्र जी सादर धन्यवाद

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 13, 2018 at 5:48pm

आदरणीय काली प्रसाद जी सादर आभार

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 13, 2018 at 1:16pm

बड़ी ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..सादर

Comment by surender insan on January 12, 2018 at 2:46pm

     आदरणीय पंकज कुमार जी ,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 11, 2018 at 8:35pm

आ पंकज कुमार जी ,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , बधाई स्वीकार करें 

Comment by Samar kabeer on January 11, 2018 at 5:11pm

ठीक है ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 11, 2018 at 4:28pm

आदरणीय सुरेंद्र सर मैंने समुचित संशोधन का प्रयास किया है

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 11, 2018 at 4:27pm

आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम मसला की जगह पर भी मैंने परिणाम कर दिया है अभी फिलहाल इतना ही

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service